तुझे शमा कहूँ या कहूँ शबनम
जान कहूँ या कहूँ हमदम
तेरे होठों की सुर्खी ले ले कर
हर फूलने आज किया सिंगार
तेरे ज़ुल्फ़ की खुशबु मौसम में
तेरे दम से कलियों पे हे निखार
जिस महफ़िल में तुम आ जाव
वहाँ एक सुरूर आ जाता है
मेरे शानो जब सर रखती हो
मुझे खुद पे गुरुर आ जाता है
जब दूर कभी तूं होती है
तेरी याद सहारा देती है
खुशबु तेरे आंचल की मुझको
हर वक़्त सहारा देती है...
कविता संग्रह 'हो न हो' से...
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