उस दिन 16 अगस्त था, सन 1967। दो दिन पहले ही पाकिस्तान का स्वाधीनता दिवस मनाया गया था । मैं स्कूल से घर लौटकर मां का इंतजार कर रही थी। उनके घर आने पर ही मुझे नाश्ता-पानी मिलना था। नानी के मकान में प्रतिदिन शाम को किताब पढने की जैसी बैठकी जमती थी, वैसी ही जमी हुई थी। *** मै मां के न रहने पर अकेली थी, दरवाजे पर जाकर खड़ी हो गई। हाशिम मामा ने कहा, 'जा, बाहर जाकर खेल।'
... मुझे बाहर जाकर खेलने की इच्छा नहीं हुई। मुझे भूख लगी हुई थी। मां जाली की आलमारी में ताला लगा गई थीं। नानी के आंगन के कुएं की बगल से होती हुई नारियल के पेड़ के नीचे से अपने घर के सूने आंगन की सीढि़यों पर पहुंचकर गाल पर हाथ रखकर मैं अपने पैर पसारकर बैठ गई। तभी शराफ मामला उधर आए।
... उन्होंने मुझसे पूछा, 'बड़ी बू कहां हैं ?'
मैने गालों पर हाथ रखे-रखे सिर हिलाकर कहा, 'नहीं हैं।'
'कहां गई हैं?' जैसे अभी उन्हें किसी जरूरी काम से मां से मिलना था, उन्होंने इस तरह पूछा।
शराफ मामा ने सीढि़यों पर-मेरी बगल में पीठ पर हल्का धौल जमाते हुए कहा, 'तू यहां अकेली बैठी क्या कर रही है ?' 'कुछ नहीं' मैंने उदास होकर कहा।
मैने गालों पर हाथ रखे-रखे सिर हिलाकर कहा, 'नहीं हैं।'
'कहां गई हैं?' जैसे अभी उन्हें किसी जरूरी काम से मां से मिलना था, उन्होंने इस तरह पूछा।
शराफ मामा ने सीढि़यों पर-मेरी बगल में पीठ पर हल्का धौल जमाते हुए कहा, 'तू यहां अकेली बैठी क्या कर रही है ?' 'कुछ नहीं' मैंने उदास होकर कहा।
शराफ मामा ने 'बड़ी बू कब तक आएगी?' पूछते हुए गालों से मेरा था हटाकर कोमल स्वर में कहा, 'इस तरह गालों पर हाथ रखकर नहीं बैठते, असगुन होता है । ' मेरा मन कहने को हुआ कि मुझे बड़े जोरों की भूख लगी है, मैं क्या खाऊं? मां अलमारी में ताला लगा गई हैं।
... चल तुझे एक मजे की चीज दिखाऊं ।' यह कहकर शराफ मामा खड़े हो गए और आंगन के पूरब में मेरे भाइयों के कमरे की दक्षिण दिशा में हमारे मकान के अंतिम छोर पर बने काली टीन वाले कमरे की ओर बढ़ने लगे। उनके पीछे मैं भी चल पड़ी । ... शराफ मामा के साथ चलती हुई मैंने झाडि़यों में पैर रखने के पहले कहा, 'शराफ मामला इस जंगल में सांप रहते हैं।'
धत, डर मत । तू दरअसल बहुत बुद्धू है, एक बिलैया है । आ तुझे एक मजे की चीज दिखाऊं, जिसके बारे में किसी को पता नहीं ।'
धत, डर मत । तू दरअसल बहुत बुद्धू है, एक बिलैया है । आ तुझे एक मजे की चीज दिखाऊं, जिसके बारे में किसी को पता नहीं ।'
... 'कैसी चीज, पहले बताओ ।' मैंने उधर जने से हिचकिचाते हुए कहा ।
'पहले बता देने से उसका मजा नहीं रहेगा ।' शराफ मामला बोले।
बाहर से अंगुली डालकर उस दरवाजे को खोलकर शराफ मामा भीतर घुसे। उनके पीछे-पीछे एक ही दौड़ में मैंने भी वह झाड़ी पार कर ली। उस मजे की चीज को देखने के लिए मै अपनी जान हथेली पर रखकर सांप वाली झाड़ी कूदकर चली आई थी। शराफ मामा की उस गोपनीय वस्तु को देखने का मुझमें कौतूहल जग गया था। कमरे में घुसते ही मरे चूहों की दुर्गंध से मेरी नाक सिकुड़ गई। चूहों के दौड़ने की आवाज कानों में आई। कमरे के एक तरफ जलावन की लकडि़यों का ढेर था। दूसरी तरफ एक छोटी चौकी बिछी हुई थी।
बाहर से अंगुली डालकर उस दरवाजे को खोलकर शराफ मामा भीतर घुसे। उनके पीछे-पीछे एक ही दौड़ में मैंने भी वह झाड़ी पार कर ली। उस मजे की चीज को देखने के लिए मै अपनी जान हथेली पर रखकर सांप वाली झाड़ी कूदकर चली आई थी। शराफ मामा की उस गोपनीय वस्तु को देखने का मुझमें कौतूहल जग गया था। कमरे में घुसते ही मरे चूहों की दुर्गंध से मेरी नाक सिकुड़ गई। चूहों के दौड़ने की आवाज कानों में आई। कमरे के एक तरफ जलावन की लकडि़यों का ढेर था। दूसरी तरफ एक छोटी चौकी बिछी हुई थी।
... शराफ मामा बोले, 'यह जगह बढिया है, यहां कोई नहीं है। किसी को हमारे यहां होने का पता ही नहीं चलेगा।' उनकी ऐसी आदत भी थी। वे बीच-बीच में अचानक गायब हो जाते थे। एक बार रसोई के पीछे मुझे बुलाकर ले जाने के बाद कहा था, 'एक मजे की चीज पीएगी?' उन्होंने अपनी जेब से दियासलाई निकालकर बीड़ी जलाई थी। शराफ मामा ने सिगरेट का कश जैसा कश लेकर मुंह से धुआं उगलते हुए उस जलती हुई बीड़ी को मुझे भी देते हुए कहा था, 'ले तू भी पी ।' मैने भी कश लेकर मुंह से धुआं निकाला था ।
... शराफ मामा की भूरी आंखों की चमक और उनके ओठों पर खेलनेवाली उस अनोखी मुस्कान के बारे में ठीक-ठाक बता नहीं सकती। 'अब तुझे वह मजे की चीज दिखाऊं' कहकर उन्होंने एक झटके में मुझे उस तख्त पर लिटा दिया। मैं एक इलास्टिक वाला हाफपैंट पहने हुए थी। शराफ मामा ने उसे खींचकर नीचे सरका दिया।मुझे बड़ी हैरानी हुईा अपने दोनों हाथों से मैं हाफपैंट ऊपर खींचते हुए बोली, जो मजे की चीज दिखाना है दिखाओ। मुझे नंगी क्यों कर रहे हो ?'
शराफ मामा ने हंसते हुए अपने शरीर का पूरा बोझ मुझ पर डाल दिया और दुबारा मेरा हाफ पैंट खींचकर अपने हाफ पैंट से अपनी छुन्नी बाहर निकालकर मेरे बदन से सटा दिया। मेरे सीने पर दबाव बढ़ने से मेरी सांस रुकने लगी थी। उन्हें ठेलकर हटाने की कोशिश करते हुए मैं जोर से बोली, 'यह क्या कर रहे हो? शराफ मामा हट जाओ, हटो।' अपने बदन की पूरी ताकत लगाकर भी मैं उन्हें हिला तक नहीं पाई।
'तुझे जो मजे की चीज दिखाना चाहता था, वह यही चीज है ।' शराफ मामा ने हंसते हुए अपना नीचे का जबड़ा कसकर भींच लिया। पता है, इसे क्या कहते हैं, चुदाई । दुनिया में सभी इसे करते हैं । तेरे अम्मा-अब्बू भी करते हैं, मेरे भी ।' शराफ मामा अपनी इंद्री को बड़े ताकत से ठेल रहे थे। मुझे बहुत खराब लग रहा था। शर्म से अपनी आंखों पर मैंने अपना हाथ रख लिया।
अचानक कमरे में एक चूहा दौड़ा। इस आवाज से शराफ मामा उछल पड़े। मैं अपना हाफ पैंट ऊपर खींचकर उस कमरे से बाहर भागी। झाडि़यों को पार करते वक्त सांप का डर मन में आया ही नहीं। मेरा दिल इतनी जोर से धड़क रहा था, जैसे वहां भी कोई चूहा दौड़ रहा हो। शराफ मामा ने पीछे से अद्भुत स्वर में कहा, 'यह बात किसी से कहना मत । कहेगी तो सर्वनाश हो जाएगा।'
तसलीमा नसरीन
(आत्मकथा: खंड-एक: मेरे बचपन के दिन)
नोट- जिस वक्त की यह घटना है उस वक्त तसलीमा महज पांच वर्ष की थीं।
(आत्मकथा: खंड-एक: मेरे बचपन के दिन)
नोट- जिस वक्त की यह घटना है उस वक्त तसलीमा महज पांच वर्ष की थीं।
झूटी स्टोरी है अगर ५ साल की किसी भी लडकी के साथ ये हादसा पेश आता तो पहली बात वो चल नही सकती। एसा लगता है जेसे किसी की nonvage स्टोरी को कॉपी पेस्ट क्या है....
ReplyDelete