Tuesday 29 October 2013

प्रीत का रंग -सुधीर मौर्य

इन दिनों
पलाश सा खिला है
चेहरा उसका...

कोयल सी कुहक है
होठों पे उसके...

झील सी आँखें करती हैं
अठखेलियाँ उसकी...

खिलने लगी है
चंद्रिमा पूनम की
गालों में उसके...

हिरन सी लचक है
चाल में उसकी...

लगता है जेसे
अवतरित हुआ है मधुमास
शरीर में उसके...

हो न हो...
चड़ने लगा है उसपे
                                                              प्रीत का रंग किसी-का इन दिनों..                                                    .(कविता संग्रह 'हो न हो' से, जो युगवांषिका के २०१२ के वार्षिकांक में भी प्रकाशित)     
--सुधीर मौर्य

Saturday 19 October 2013

देवल देवी: एक संघर्षगाथा (उपन्यास) - सुधीर मौर्य

सल्तनत काल के भारतीय इतिहास में ऐसे अनेक ऐतिहासिक तथा महत्वपूर्ण प्रसंग हैं जिनमे मुस्लिम शासकों के दरबारी, चाटुकार एवं कट्टरपंथी तथाकथित इतिहासकारों ने अपने शासकों के क्रूर कारनामों तथा पराजित हुए युद्धों को छिपाने के लिए उन्हें इतिहास के पन्नों से गायब कर दिया। ऐसा ही एक शौर्यपूर्ण प्रसंग है गुजरात की राजकुमारी देवल रानी तथा धर्म परवर्तित  होकर मुस्लिम बने खुशरो शाह का।
13वीं शताब्दी के अंतिम दशक से पहले दक्षिण भारत मुसलमानों के क्रूर तथा वीभत्स अत्याचारों तथा सामूहिक इस्लामीकरण से अनजान था। अलाउद्दीन खिलजी पहला मुस्लिम शासक था जिसने दक्षिण भारत में हमला करके भीषण नरसंहार किया और अपार धनराशि लूटी। उसने देवगिरि, वारंगल, द्वारसमुद्र तथा मदुरै से अपार धनराशि ही नहीं लूटी बल्कि भारतीय धर्म, संस्कृति, कला को भी नष्ट किया। उसने गुजरात को भी दो बार लूटा। इतना ही नहीं तो गुजरात के शासक बघेल नरेश कर्णदेव की पत्नी कमला देवी को अपनी पत्नी तथा अत्यंत रूपवती राजकुमारी देवल देवी को जबरदस्ती अपने बड़े बेटे खिज्र खां की पत्नी बना दिया। कई मुस्लिम लेखकों ने(खासकर अमीर खुसरो ) यह मनगढ़न्त कहानी रची कि खिज्र खां तथा देवल देवी में प्रेम संबंध था। सचाई यह है कि देवल देवी बरदस्ती विवाह तथा इस्लाम अपनाने पर अपमान का घूंट पीकर भी अपने धर्म, संस्कृति तथा देश की स्वतंत्रता को न भूली तथा उचित मौके की तलाश में रहने लगी। अलाउद्दीन खिलजी की मृत्यु के कुछ ही दिनों बाद उसके दूसरे पुत्र मुबारक शाह ने अपने बड़े भाई खिज्र खां की आंखें निकलवा कर मार डाला तथा देवल देवी से जबरदस्ती अपना निकाह कर लिया। देवल देवी को न पहले खिज्र खां से कोई लगाव था और न अब मुबारक शाह से।
इस अफरातफरी के माहौल  में दिल्ली सल्तनत में एक व्यक्ति- खुशरो शाह अत्यन्त प्रभावशाली बन गया था। सामान्यत: मुस्लिम इतिहासकारों ने या तो उसका वर्णन नहीं किया और यदि किया तो उसे ओछा, पापी, नरकगामी कहा। जबकि खुशरो शाह एक सुन्दर, दृढ़ निश्चयी और बलिष्ठ और वीर युवक था। वह मूलत: एक गुजराती हिन्दू था जिसे पकड़कर दिल्ली लाया गया तथा जबरदस्ती मुसलमान बनाया गया था। उसका नाम "हसन" रख दिया गया था। हिन्दुत्व के दृढ़ भाव को मन में रखते हुए वह योजनापूर्वक मुबारक शाह का सबसे विश्वासपात्र तथा प्रभावशाली सेनापति बन गया। मुबारक शाह ने उसे "खुशरो शाह" की उपाधि दी तथा अपना मुख्या सेनापति नियुक्त किया। खुशरो शाह मन ही मन एक स्वतंत्र हिन्दू राज्य का स्वप्न देख रहा था। उसने गुजरात के शासन पर अपने एक सगे भाई "हिमासुद्दीन" (जो पहले हिन्दू ही था) को मुख्य अधिकारी बनवाया। उसने दिल्ली में लगभग 20,000 ऐसे सैनिक भरती किये जो पहले हिन्दू थे पर जबरन धर्मपरिवर्तन के बाद अब मुसलमान बन गए थे। उसने विलासी मुबारक शाह का पूर्ण विश्वास प्राप्त किया। उसने एक बार मुबारक शाह को पुन: दक्षिण पर आक्रमण के लिए प्रोत्साहित किया तथा स्वयं भी उसके साथ गया। अगली बार वह मुबारक शाह की आज्ञा से स्वतंत्र रूप से गया। उसने दक्षिण भारत में मुसलमानों द्वारा भयंकर लूटमार तथा मारकाट से चारों ओर सामन्तों, राजाओं तथा प्रजा में बेचैनी का अनुभव किया। गुप्त मन्त्रणाओं में उसने इसको प्रोत्साहित किया। उनमें हिन्दुओं में राज परिवर्तन का भाव भी जगाया। साथ ही बाहरी रूप से उसने मुस्लिम विश्वास को भी बनाये रखा। यद्यपि दिल्ली दरबार में उसके क्रियाकलापों से बेचैनी होने लगी तथा उसकी शिकायतें मुबारक शाह से की जाने लगीं। परन्तु मुबारक शाह ने शिकायतों पर किचिंत भी विश्वास न किया। वस्तुत: खुशरो शाह तथा देवल देवी के संयुक्त प्रयास, तलवार की धार और जलती आग पर चलने जैसे थे। परन्तु दोनों ने बड़ी चतुराई, कूटनीति और समझदारी से काम लिया।
पूरी तरह अनुकूल परिस्थिति होने पर खुशरो शाह तथा देवल देवी - दोनों जन्मजात हिन्दुओं ने एक क्रांति को जन्म दिया जो राज्य क्रांति भी थी तथा धर्म क्रांति भी। 20 अप्रैल, 1320 ई. की रात्रि को लगभग 300 हिन्दुओं के साथ खुशरो शाह ने शाही हरम में यह कहकर प्रवेश किया कि इन्हें मुसलमान बनाना है तथा इसके लिए परम्परा के अनुसार सुल्तान के सम्मुख पेश किया जाना है। इस पेशी के समय खुशरो के मामा खडोल तथा भरिया नामक व्यक्ति ने इसका लाभ उठाकर मुबारक शाह की हत्या कर दी। फिर शाही परिवार के भी व्यक्तियों को मार दिया गया। खुशरो शाह ने अपने को सुल्तान घोषित कर दिया और जानबूझकर अपना नाम नहीं बदला। इसके साथ ही उसने देवल देवी से विवाह कर लिया। तत्कालीन मुस्लिम लेखक जियाउद्दीन बरनी ने लिखा कि इसके पांच-छह दिन बाद ही राजमहल में मूर्ति पूजा प्रारंभ हो गई। चारों ओर हिन्दुओं में उत्साह और उल्लास की लहर दौड़ गई।
स्वयं खुशरो शाह ने घोषणा की- "आज तक मुझे केवल बलात मुसलमानों का सा धर्म भ्रष्ट जीवन जीने के लिए बाध्य होना पड़ा। फिर भी मूलत: मैं हिन्दू का पुत्र हूं, मेरा बीज हिन्दू बीज और मेरा रक्त हिन्दू रक्त है। चूंकि आज मुझे सुल्तान का समर्थन और स्वतंत्र जीवन प्राप्त है, इसलिए मैं अपने पैरों की धर्म भ्रष्टता की बेड़ी तोड़ता हुआ घोषित करता हूं कि मैं हिन्दू हूं। अब प्रकट में इस विशाल एवं अखण्ड भरत खण्ड में हिन्दू सम्राट के नाते इस सिंहासन पर आरूढ़ हुआ हूं। इसी तरह कल तक "सुल्ताना" कहलाने वाली देवल देवी जो मूलत: एक हिन्दू राज कन्या है... वह भी इस्लामियत को धिक्कारती है, अब से हिन्दू की तरह ही जीवन बितायेगी। हम दोनों की यह प्रतिज्ञा हमारे बलात्कार जनित अतीत धर्म विमुखता के पाप का परिमार्जन करे।"
यद्यपि यह हिन्दू साम्राज्य लगभग एक वर्ष ही रहा, क्योंकि ग्यासुद्दीन तुगलक तथा अन्य अमीरों के विद्रोह से खुशरो खान मारा गया, परन्तु इससे इसका महत्व कम नहीं हो जाता। वस्तुत: इस राज्य क्रांति का विचार भी दक्षिण भारत में हुआ था। इससे हिन्दुओं में, जो वर्षों से गुलामी के आदी हो गये थे, स्वतंत्रता की आशा तथा स्वाभिमान जागा, जो शीघ्र ही सोलह वर्ष पश्चात (1336 ई. में) विजय नगर साम्राज्य के निर्माण के रूप में हुआ।

सुधीर मौर्य 'सुधीर'
गंज जलालाबाद, उन्नाव
२०९८६९
 प्रकाशक - साहित्य संचय     B-1050, Gali No. 14/15, Pahla Pusta,
Soniya Vihar, New Delhi- 110 094
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email: sahityasanchay@gmail.com

Tuesday 15 October 2013

उपन्यास 'देवल देवी' लिखने की प्रेरणा 'रिंकल' के संघर्ष से मिली - सुधीर मौर्य

पाकिस्तान के सिंध प्रान्त में २४ फ़रवरी २०१२ को एक ह्रदयविदारक घटना घटी। इकिसिवीं शताब्दी में जब सारा विश्व सभ्य होने का दंभ भर रहा था उस समय सिंध के मीरपुर मेथेलो से एक अल्पवयस्क और उक्त देश की अल्पसंख्यक लड़की का जबरन अपहरण करके उसका जबरन धर्म परिवर्तन किया गया। उस लड़की को जबरन बलत्कृत करके उस देश के बहुसंख्यक समुदाय के व्यक्ति से निकाह के लिए बाध्य किया गया। उस लड़की का नाम रिंकल है। वो लड़की और उसके अभिवावक छोटी अदालत से लेकर सर्वोच्च न्यायलय तक की गुहार लगाते रहे पर उनकी आवाज़ को जबरन दबा दिया गया। वो लड़की रिंकल कुमारी आज भी अपने अपहरणकरताओ की कैद में है और दासी सा जीवन जीने को बाध्य है। ऐसा भी नहीं कि उसकी रिहाई के लिए आवाज़ बुलंद नहीं हुई। बहुत से लोगो ने उसकी रिहाई के लिए संघर्ष किया। अमेरिका से सुनील दिक्षित, पकिस्तान की वेंगस और मारवी,भारत से राकेश लखानी और खुद मैने अपने लेखों और और अन्य गतविधियों से रिंकल कुमारी के जबरन अपहरण और जबरन धर्म परिवर्तन के मुद्दे पर संघर्ष किया पर नतीजा ढ़ाक के तीन पात रहा। पिछले कुछ दिनों में अकेले पाकिस्तान में ही जबरन धर्म परिवर्तन के कई केस सामने आये हैं। फिर सारे विश्व में ऐसे कितनी घटनाएं होती होंगी जो प्रकाश में नाइ आ पाती। ऐसी घटनाओ से हमारा देश भारत भी अछुता नहीं है। जब आधुनिक सभ्य्काल में योनि शोषण के लिए लड़कियों का अपहरण किया जा रहा है और हम शोसल नेटवर्किंग साईट से लेस होकर भी रोक नहीं पा रहें हैं तो सोचिये मध्यकाल में कितनी लड़कियों को जबरन सेक्स स्लेव बनया गया होगा। युद्ध में जीती गई संभ्रांत परिवार की लड़कियों के साथ और कठोर व्यवहार किया गया। देवलदेवी भी इसका शिकार हुई पर भाग्य से उसने अपना प्रतिशोध ले लिया। पर उन हजारो - हजार का क्या जो योनि दासी बनकर सारी उमर रोती - सिसकती रही।
रिंकल कुमारी के आपह्रण और न्याय के लिए दिखाए गए उनके अदम्य साहस ने मुझे उपन्यास 'देवल देवी, लिखने की प्रेरणा दी। मेरी ये कृति समर्पित है बहादुर लड़की 'रिंकल कुमारी' को। --सुधीर मौर्य

Sunday 13 October 2013

हाँ में जनता हूँ उसे - सुधीर मौर्य

Sudheer Maurya
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हाँ 
में नहीं जनता उसे 
कभी मिला भी नहीं 
पर उसकी सूरत 
जाने क्यों 
तुमसे मिलती है।

! गंगा के किनारे 
मेरे नाम का 
घर बनाने वाली लड़की 
कभी 
लहरों पे आके देख 
मेने कश्ती पे
तुम्हारे दुपट्टे का 
बादबान बांधा  है।

तूं एक लड़की का 
जिस्म नहीं मेरे लिए 
जिसमे, में डूबू या उतराऊं 
तूं मेरा ही बदन है 
क्योंकि बसाया है 
मेने तुझे 
अपने रूह की 
अन्नंत गहराइयों में।

हाँ मे 
जनता नहीं तुझे,
हाँ 
में जनता हूं  
लड़की !
तेरी आँखों में 
मेरी चाहत का 

                              समुन्दर बसा है।                                                            By - Sudheer Maurya

Saturday 12 October 2013

रूह और तलाश - सुधीर मौर्य,

Sudheer Maurya
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नदी पे 
तैरते अंगारे
उन अंगारों से निकलती
धुंए की स्याह लकीर
उन लकीरों में
दफन होते मेरे ख्वाब
उन दफन क्वाबो में 
भटकती मेरी रूह...

तुम्ही को तलाश करती है
पर तुम खोये कहाँ थे...
तुम तो छोड़ गए थे मुझे
एक बेगाना समझ कर
किसी अपने के लिए...

कौन ढूंढेगा हल इस सवाल का...
क्यों एक गैर को
मेरी रूह तलाश करती है
सदी दर सदी...  From 'ho na ho'

Thursday 10 October 2013

मेरे एक गाँव की लड़की - सुधीर मौर्य

मेरा दिल 
आहे जब 
सर्द-सर्द 
भरने लगा था 
कदम दहलीज पे 
जवानी के जब 
रखने लगा था 
तब मेरे 
आँखों से टकराई थी 
मेरे एक 
गाँव की लड़की
जवानी 
तिफ्ली से उसके 
गले लग के 
हंसती थी 
हिरन और 
मोर तकते थे 

जब के चाल 
चलती थी 
उसकी बाहें 
सुनहरी थी 
जुल्फ काली 
घनेरी थी 
नैन फरिश्तों के 
कातिल थे 
होंठ 
दरिया के 
साहिल थे 
कमल से 
बाल महकते थे 
कलश 
सीने में धडकते थे 
मै उससे प्यार करता हूँ 
वो मेरे दिल की 
मंजिल है
मेरे एक गाँव की लड़की 
मेरी उल्फत का 
हासिल है।
--सुधीर मौर्य