Thursday 17 July 2014

आकर्षण और प्रेम - सुधीर मौर्य

ओ ! मेरी प्रेयसी 

तुम्हारी आँखों के 

आकर्षणपाश में बंधा 

में तुम्हे अब 

भी प्रेम करता हूँ। 

जानती हो 

तिफ्ली के आखिरी पड़ाव पर 

जब तुम 
बतख की मानिंद 

उछलते हुईं स्कूल जाती, तो 

तुम्हारी कमर की अंगडाई पर 

में सम्मोहित हो जाता 

स्कर्ट से बाहर झांकती, तुम्हारी 

गोरी थरथराती पिंडलियाँ 

मेरे ह्रदय को थरथरा देतीं 

और मैं आँखे बंद करके 

तुम्हारी पिंडलियों के ऊपर 

स्कर्ट में छुपी 

तुम्हारी जाँघों और नितम्बो के 

बनाव, गठाव के 

ख्वाबो के तिलिस्म में 

खो जाता 

मेरे दोस्त इसे तुम्हारे प्रति 

इसे मेरा आकर्षण कहते 

उस वक़्त तुमने इसे क्या समझा 

क्या मालुम 

पर में जानता था 

तुम्हारे लिए ये मेरे प्रेम की शुरवात थी 

उस प्रेम की जिसे तुमने 

अपनी अधमुंदी आँखों को नीचे करके 

अपने कांपते गुलाबी होठों से 

कबूल कर लिया 

ये तुम्हारे महकते बदन की 

मादकता और नाजुकता का 

आकर्षण था या फिर 

मेरे ह्रदय का 

तुम्हारे ह्रदय से प्रेम 

जो में हर घडी, हर पल बस तुम्हे 

निहारना चाहता था 

बस तुमसे गुफ्तगू करना चाहता था 

आकर्षण और प्रेम के मध्य 

अगर कोई झिल्ली है भी 

तो वो झिल्ली 

उस रात 

तुम्हारे कौमार्य की 

की झिल्ली के साथ टूट गई 

जब मेरे गरम कांपते अधरों ने 

तुम्हारे यौवन कमलों को 
स्पर्श किया 

उस रात 

हम एक - दुसरे से आलिंगनबद्ध 

प्रेम की अन्नत यात्रा पर निकल पड़े 

तुम्हारे शरीर का फिगर 

अगर मुझे आकर्षित करता था तो 

तो मेरा मन 

तुम्हारे मन को 

अन्नंत गहराइयों से 

प्यार करता था 

ऐ मेरे गुज़रे दिनों की प्रियतमा 

सच तो ये है 

में आकर्षण की 

सभी हदें लांघ कर 

तुम्हे प्यार करते थे 

तुम्हे प्यार करते हैं 

तुम इसे आकर्षण का नाम देकर 

राह बदल कर जिस प्रेम की मंजिल 

को हासिल करने गए थे 

तुमने झाँका नहीं 

वो मंजिल 

मेरे मन के भीतर ही थी 

ख़ैर मैं खड़ा हूँ 

उसी मोड़ पर, 

आकर्षण की झिल्ली के उस तरफ 

जहाँ सिर्फ प्यार है 

और कुछ नहीं 

जबकि में जानता हूँ 

तुम अब तिफ्ली के नहीं 

जवानी केशिखर पर हो 

-सुधीर मौर्य 

गंज जलालाबाद , उन्नाव
209869

Thursday 10 July 2014

लायक (लघुकथा) - सुधीर मौर्य

प्रस्तुत संग्रह से प्रकाशित मेरी एक लघुकथा।
दबंग नेता के दबंग लड़के की बात जब बहुत दिनों तक लड़की ने मानी तो वो उसे जबरन अपने फार्म हाउस पर उठा लाया।
तमाम चिरौरी, एवम लड़की के लाख हाथ पैर जोड़ने के बाद भी दबंग लड़के ने उसका बेरहमी से रैप करते हुए कहा - यही सब मै प्यार से मांग रहा था पर तू मानी।अब आज के बाद तू किसी के लायक नहीं रहेगी।
बलात्कार के बाद दबंग लड़का चैन से सो गया वो अब तक नग्न था। कराहते हुए लड़की उठी पास में ही टेबल पर फल की टोकरी और छुरी थी।
लड़की ने पूरी ताकत से छुरी का वार दबंग लड़के के गुप्तांग पर किया, मांस का एक लोथड़ा छिटक कर दूर जा गिर। लड़का दर्द से तड़प का उठ बैठा।
लड़की मुस्कराते हुए बोली, मै तो फिर भी किसी के साथ सो सकती हूँ पर तू किसी के साथ सोने के ''लायक'' नहीं रहा।
--सुधीर मौर्य


Saturday 5 July 2014

तुम्हे लौटा लाएगा - सुधीर मौर्य

रूबरू दुनिया के जुलाई 2014 के अंक में अंतिम कवर पेज पर प्रकाशित मेरी नज़्म 'लौटा लाएगा तुम्हे' .

मैं जनता हूँ
तुम्हे लौटा लाएगा
एक दिन
मेरा प्रेम

तुम्हे लौटा लाएंगे
मेरे हाथ के
लिखे खत

तुम्हे लौटा लाएंगे
मेरी आँख से
झरते अश्रु

तुम्हे लौटा लाएंगी
हरसिंगार की कलियाँ
मेरे घर की
मेहंदी की महक

तुम्हे लौटा लायंगी
तुम्हारी गलियों में बहती हवा
मेरी अटारी से उड़ती पतंग 

तुम्हे लौटा लाएंगे
तुम्हारी आँखों में
बसते मेरे ख्वाब

तुम लौट आओगी
इसलिए नहीं कि
मै करता हूँ तुम्हे प्रेम

इसलिए
कि मैं प्रियतम हूँ तुम्हारा।


--सुधीर मौर्य