Thursday 26 December 2013

असीरी - सुधीर मौर्या


 शफक की धुप में
मे जाकर छत पर तनहा खड़ा हो गया
पड़ोस की छत पे
बाल बनाती हुई लड़की
मुस्करा दी
मैंने उसकी जानिब
जब कोई तवज्जो न दी
तो वो उतर कर
निचे चली गई
काश कुछ साल पहले
में एसा कर पाता
किसी की जुल्फों की 
असीरी से खुद को बचा पाता
शायद तब 
ये शफक ये शब् 
मेरे तनहा  न होते
या फिर वही बेवफा न होते
में- छत से उतर कर
एकांत कमरे में
तनहा बैठ गया
'हो न हो' से
सुधीर मौर्या 'सुधीर'
गंज जलालाबाद,उन्नाव-२०९८६९     
०९६९९७८७६३४

Tuesday 17 December 2013

इस्लाम आईने के सामने - सुधीर मौर्य

हर धर्म का सार तो यही होना चाहिए कि वो दूसरे के धर्म का भी भी उतना ही सम्मान करे जितना वो अपने धर्म का करता है। हम अगर कहीं राह से भी गुज़र रहे हो तो हमारा सर राह में आने वाले  मंदिर, मस्ज़िद, मज़ार के आगे झुंकने में भेद नहीं करता। असल में हम इन सब जगहों पर ईश्वरीय वास होने की बात मानते है, हमारा धर्म हमें दूसरे के धर्म का सम्मान करने कि शिक्षा देता है तभी तो हम दूसरे धर्म के उपासना स्थल के आगे अपना माथा नवाते हैं। पर इस्लाम इसकी इजाजत देता है क्या? नहीं। अगर इस्लाम इसकी इजाजत नहीं देता इसका  है कि वो दूसरे के धर्म का सम्मान करने में यकीन नहीं रखता। जो धर्म दूसरे के धर्म के सम्मान  में यकीन नहीं करता वो सदभाव कैसे फैला सकता है? 'इस्लाम खतरे में है' का नारा बुलंद करके बात बात में हथियार उठा  लेने वाले इस्लाम ने क्या कभी मानवता को खतरे से उबारने के लिए तलवार उठाई है।  आख़िर स्वयं मुहम्मद जी ने मक्का के मंदिर की 360 मूर्तियां तोड़ीं थी ? भारत में अधिकांश मुस्लिम शासन काल में हिंदुओं के साथ ज़ुल्म हुए थे ? मंदिर ध्वस्त करने वाले और मूर्तियां तोड़ने वाले को बुत-शिकन कह कर सम्मान दिया जाता है इस्लाम में। जिस धर्म का सार यूँ हो वो मानवता की रक्षा के लिए हथियार उठा ही नहीं सकता। वो तो सिर्फ आतंक स्थापित करने के लिए तलवार उठा सकता है।  कवि इक़बाल ने 'शिक़वा' और  'जवाबी  शिक़वा' में इस्लाम की इन खूबियों का गर्व के साथ उल्लेख करते हैं। एक बाबरी मस्ज़िद के खंडर को गिराए जाने पर लोगो ने हाय तौबा मचाके सवाल दागे, पर कभी भी वो उन लाखो मंदिरो को गिराए जाने पर मौन साध लेते हैं जिन्हे अतताइयों ने इस्लाम के नाम पर गिराया था। 

Tuesday 3 December 2013

तुम्हारी आँखे - सुधीर मौर्य

हाँ तुम मिली तो  
मुझे 
आज  बरसो बाद 
बहुत कुछ कहा भी 
पर ये तुमने कहा 
हमने पूछा 
तुम्हारी आँखे 
अब पहले जैसी 
चंचल 
क्यों नहीं 

--सुधीर मौर्य    

Saturday 30 November 2013

पाकिस्तान में हिन्दू लड़की होना अभिशाप हो गया है - सुधीर मौर्य

दलित और आदिवासी इनकी हालत और इनकी हालत में कैसे सुधार किया जाये ये मुद्दा भारत में तो है, और बहुत से लोग इस पवित्र कार्य में लगे हुए हैं। हमें विश्वास है वो दिन दूर नहीं जब सारे भारत में दलित और आदिवासी अपने हक़ को हासिल करके समाज में बराबर के सहभागी होंगे। पर अप जानते है सरहद पार पकिस्तान में दलित और आदिवासी के उत्थान का कोई मुद्दा नहीं है। पकिस्तान के सिंध में दलित हिन्दू या सवर्ण हिन्दू होने का कोई मुद्दा नहीं है, वहाँ कोई मुद्दा है तो सिर्फ हिन्दू होना। सच कहे तो पाकिस्तान में हिन्दू होना एक अपराध है और हिन्दू लड़की के  तो पाकिस्तान नरक है। हिन्दू लड़की चाहें कुआरिन हो या शादी शुदा उसकी अस्मत का कोई  नहीं है, मुस्लिम जब चाहें उनका अपहरण करके उनका बलात्कार कर सकते, उनका जबरन धर्म परिवर्तन कर सकते हैं। अगर किसी लड़की ने हिम्मत दिखाके विरोध किया तो पकिस्तान कि सरकार और न्यायपालिका भी उन बलात्कारियों का साथ देती है। रिंकल कुमारी का उदहारण हैम सबके सामने है। अभी कुछ दिन पहले कल्पू कोल्ही नाम की एक  शुदा दलित महिला को एपीआई जान देनी पड़ी जबकि एक लैंडलॉर्ड   मोहम्मद खादिम ने उसका बलात्कार करने कि कोशिश की। किसी भी महिला कि अस्मत, इज्जत और योनि मेरी नज़र में सामान ही हैं चाहें वो दलित हो स्वर्ण हो हिन्दू, ईसाई या फिर मुस्लिम ही  न हो। किसी भी औरत के साथ हुआ बलात्कार, बलात्कार ही है पर पकिस्तान में हिन्दू लड़कियों के साथ हो रहे बलात्कार और ज़बरन निकाह के मामले सिर्फ इसलिए हो रहे हैं क्योंकि वो हिन्दू हैं और उन्हें एक मुस्लिम देश में इज्जत से जीने का शायद कोई हक़ नहीं है।                                                                                                                                                            --सुधीर मौर्य 

Thursday 28 November 2013

तेरे होंठ की सुर्खी - Sudheer Maurya


तेरे होंठ की सुर्खी ले-ले कर

हर फूल ने आज किया सिंगार
तेरे ज़ुल्फ़ की खुशबु मौसम में
तेरे दम सेकालियों पे है निखार

जिस महफ़िल में तुम आ जाव
वहां एक सुरूर आ जाता है
मेरे शानो पे जब सर रखती हो
मुझे खुद पे गुरुर आजाता है

कविता संग्रह 'हो न हो' से..
Sudheer Maurya
Ganj Jalalabad, Unnao

Sunday 24 November 2013

हिन्दू

हिन्दू धार्मिक होता है, साम्प्रदायिक नहीं - सुधीर मौर्य

Monday 18 November 2013

क्रिकेट का भगवान् या हाकी का जादूगर - सुधीर मौर्य

          चौबीस साल का शानदार क्रिकेट केरियर, अनगिनत रिकार्ड और सबसे ऊपर भक्तों(प्रशंसक) के द्वारा दिया गया भगवान् का रूतबा। यकीनन सचिन तेंदुलकर भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न के हक़दार हे।                                किसी खिलाड़ी के लिए भारत रत्न का पुरस्कार अपने आप में एक बड़ी बात है  खेल जगत को ये दुर्लभ सम्मान सचिन कि वजह से ही हासिल हुआ। पर जेहन में मेजर ध्यानचंद का नाम आते ही कि सचिन को ध्यानचंद से पहले भारत रत्न का सम्मान देना न्याय संगत नहीं है।  क्रिकेट में सचिन के साथ - साथ  डान ब्रेडमेन जैसे नाम भी  है पर हाकी के खेल में ध्यानचंद सारी दुनिआ के सर्वकालिक सर्वश्रष्ठ खिलाड़ी है।   चाहे  वो हिटलर के सामने खेला गया ओलम्पिक हो या फिर अमेरिका को रौंद देने वाला तूफ़ान, ध्यानचंद हर तरह से सचिन से इक्कीस साबित होते हैं।                                                                           
             मेरे कहने का अर्थ ये कटाई नहीं कि में सचिन की उपलब्धियों को कम करके आंक रहा हूँ या उन्हें भारत रत्न देने पर ऐतराज़ जता रहा हूँ, मेरे कहने का तात्पर्य तो इतना है कि मेजर ध्यानचंद को ये सम्मान   मिलना ही चाहिए और सचिन से पहले।                                                                                                                                                                                                                                                 --सुधीर मौर्य