Tuesday 29 December 2015

बचपन की लड़कियाँ - सुधीर मौर्य



बचपन मे
कुछ  लड़कियाँ तितली होती है
कुछ चिड़ियाँ
कुछ पारियां
और कुछ लड़कियां होती है
सिरों की बोझ
बचपन में
कुछ लड़कियों के नाम होते है
गुड़िया, बैबी और एंजेल
और कुछ लड़कियां
पुकारी जाती है
नासपीटी और कलमुहिं कहकर
बचपन में
कुछ लड़कियां स्कूल जाती है
कुछ सीखती हैं अभिनय
नृत्य और वादन
और कुछ लड़कियाँ जाती हैं खेतों पर
बड़े लोगो के घरो में
करती हैं हाड़तोड़ मेहनत
बचपन में कुछ लड़कियां
सोती है नरम मुलायम बिस्तरों पे
ओढ़ती हैं ढाका का मलमल
और कुछ लड़कियां
बिछती हैं चादर की जगह
ओढ़ती हैं अपने बिखरे बचपन का कफ़न
कुछ लड़कियां
बचपन में खेलती है गुड़ियों और टैडीबेयर से
कुछ लडकिया बचपन में
लड़कियां नहीं रहती
बन जाती हैं औरत
ढोती है जीवन भर किसी का गुनाह
कोख से लेकर गोद तक
और रह जाती है स्वप्नलोक की कहानी बनकर।
--सुधीर मौर्य     

Saturday 26 December 2015

अबूझ किताब - सुधीर मौर्य

उसने कहा था एक दिन खुली किताब हूँ मैं। पढ़के जान लो मुझे। एक सर्द शाम में, मैं ये जान पाया था। उस किताब की भाषा मेरे लिए अबूझ थी। और उसी शाम मुझे अनपढ़ कह कर उसने वो किताब किसी पढ़े हुए की सेल्फ में रख दी थी।
और कुछ बरसों बाद उस पढ़े हुए इंसान ने उस सेल्फ को बेच दिया था कबाड़ खाने में उस किताब के साथ।
आज गर्द से सनी वो किताब मेरे सामने है पर आज भी उस किताब की भाषा मेरे लिए अबूझ ही है।
--सुधीर मौर्य

Thursday 17 December 2015

कच्ची उमर का प्रेम - सुधीर मौर्य



टीन एज
लड़के - लड़कियाँ भी
करते हैं प्रेम
उनका प्रेम हमेशा आकर्षण नहीं होता
कभी पहाड़ो से उतरते पानी
और कभी पहाड़ो को देखकर
करते है प्रेम निभाने के वादे
भागती बाईक पे
बॉयफ्रेंड के पीठ से
चिपका कर अपने स्तन
लड़कियां जताती है अपना प्रेम
टीन एज जोड़े
कभी - कभी उतर जाते है
प्रेम की गहराई में
लड़के करते हैं जतन 
अपनी प्रेमिका को
बिनब्याही माँ बनने से बचाने का
   
वो भी देखते हैं 
एक - दूसरे के सपने    
लड़के स्कूल की किताब
हाथ में लेकर सोते हुए
खोये रहते है
अपनी प्रेमिका के
गुलाबी होठों और
बादामी रंग के स्तनों में
और लड़कियां बिताती है रात
अपनी नींद भरी आँखों में
अपने प्रेमी की
बदमाश शरारती सपनो से
सिहरती हुई।
--सुधीर मौर्य

Saturday 12 December 2015

दिसम्बर की आवारा धूप - सुधीर मौर्य

दिसम्बर के महीने में
वो मिली थी उस धूप के बादल से
दिन और तारीख उसे अब याद नहीं
सुबह और शाम की 
ठिठुरती ठण्ड में
कितना प्यारा लगता था
उसे धूप का साथ
और एक सर्द शाम में
सो गई थी वो
ओढ़ कर धूप की चादर
और अगली सुबह
महसूस किया था उसने
अपनी देह के  भीतर
धूप के एक नर्म टुकड़े को
और जब वो खुश होकर
बताना चाहती थी
अपनी देह का ये परिवर्तन
चूम कर धूप का माथा
तो उसे पता चला था
क़ि धूप का वो बादल
आवारा बादल था 
जिसे ओढ़ा करती थी वो
खुद को ज़माने की ठण्ड से
बचाने के लिए

वो दिसम्बर की
एक सर्द शाम थी
एक उदास शाम
जिसका दिन, तारीख और साल
अब वो कभी भूल नहीं पायेगी।

--सुधीर      

Thursday 10 December 2015

प्रेम - परिंदे - सुधीर मौर्य


नहीं मैं नहीं चाहता
तुम मेरे लिये
संयोग और वियोग की नज़्में लिखो 
नही मैं नहीं चाहता
तुम अपने मन के किसी कोने में
मुझे धारण करके
मेरी इबादत करो
नहीं मे नहीं चाहता
मुझे हर जन्म में
तुम अपना देवता मान लो

बस प्रिये !
मैं चाहता हूँ
तुम मेरे साथ चलो
उस राह पे
जिस राह पे
तेरे - मेरे नाम के साथ
लिखा हो प्रेम - परिंदे।

--सुधीर

Thursday 3 December 2015

इच्छापूर्ति - सुधीर मौर्य


मैं जब भी निकलता
उस गली से अपने बचपन के दिनों में
तो मुझे लगता
इस गली के किनारे बानी ईमारत में
जरूर आबाद होगा
कोई होटल, भोजनालय
या फिर कालेज की कोई मैस
तभी तो पड़े रहते है वहां पे
बैंगन और बैंगन के कुछ टुकड़े

जब मैं कुछ बड़ा हुआ
तो ये सोच कर थोड़ा हैरान हुआ था
क्या ये जगह के लोग
बैंगन के आलावा नहीं कहते कोई सब्जी
क्योंकि मेरी आँखों ने
कभी वहां बैंगन के आलावा
कभी कोई सब्जी नहीं देखी

जब मैं थोड़ा ओर बड़ा हुआ, तो  
मुझे मालूम पड़ा
उस ईमारत में कोई होटल या भोजनालय नहीं है
हाँ उसमे एक मैस जरूर विद्यमान है
जिसमे खाना खाती है
ईमारत में रहने वाली डिग्री कालेज की लडकिया
और उस मैस का वार्डन
परेशान रहता है उन लड़कियों से
जो अक्सर उठा ले जाती चुपके से
सब्जी के लिए लाये गए
बैंगनों को अपनी इच्छापूर्ति के लिए।

--सुधीर मौर्य

Wednesday 2 December 2015

गुज़िश्ता प्रेयसी - सुधीर मौर्य

आज


कितनी उलझनो के बाद
कितने मोड मुडने के बाद
तूं मिली
चेहरे पे एक उदासी लिए
मै समेट लेना चाहता था
तुम्हारे गम का हर टुकडा
उस रूमाल मे
जिससे पोछे थे तुमने
जाने कितनी बार
मेरे चेहरे से दुखो के बादल
मेरी दुखनी !
तुमने तो प्यार मे
हदे लाघीं थी
राह दी थी कभी
सांप को अनछुऐ बिल मे घुसने की
और उतार दिया मैने जहर
तुम्हारी देह मे अपनी देह का

मेरी प्रेयसी !
यही प्रायश्चित है मेरा
तुम रहोगी सदा प्रेयसी 
मेरी रूह की.
--सुधीर मौर्य