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Sunday, 30 April 2017

पौराणिक उपन्यास पहला शूद्र पे श्री रामप्रसाद राजभर जी की संछिप्त समीक्षा।

उपन्यास पहला शूद्र के साथ रामप्रसाद राजभर जी 
पहला शूद्र
सप्त-सैंधव की षड्यंत्र गाथा
लेखक सुधीर मौर्या जी की सद्य: प्रकाशित कृति है !इतिहास को जितने युगो या विभागो में बांटा गया है उसमें सबकी अलग-अलग अभिरूची होती है पर इतिहास आकर्षित करता है!सप्त- सैंधव यानि सात नदियों वाला स्थान यानि पंजाब जो उनदिनों बहुत बड़ा था!इतना बड़ा कि जहां दो-दो सभ्यता अपने उत्कर्ष के बाद भूमिगत हो गयीं!
सुधीर जी ने रिगवैदिक काल की कथा को विस्तार दिया है!यहकाल ईसापूर्व तकरीबन बारह सौ साल पहिले का राहुल सांकृत्यायन ने निर्धारित किया है!पूरी पुस्तक को पढ़ने के पश्चात् सबसे पहिले मन में उन मुनियों के प्रति रोष उत्पन्न होता है जिन्हे मात्र हम मुनि मानकर आदरणीय समझा करते थे !वे वा्तव में महाषड्यंत्रकारी थे!
आज गोमांस को लेकर हो-हल्ला है पर तब लोग गोमांस भक्षी थे और सोमरस अर्थात् भांग का सेवन किया करते थे!
पहला शूद्र सुदास नामक प्रतापी व न्यायी राजा की वह कहानी है जिसे जमाना भूल गया है!सुदास के पिता दिवोदास व राजा दसरथ समकालीन थे!
मूलनिवासी पणियों और किरातों को बलात् जीतकर भूमि के साथ दूधारू पशुओ का अपहरण कर आर्यों की गाथा है जो युद्धकौशल के साथ षड़यंत्र में भी अव्वल थे!
शायद सुदास के साथ ही वैदिककाल समाप्त हुआ होगा क्योंकि उसके पश्चात जाति-व्यवस्था का जिक्र किया है सुधीरजी ने!
कुछ शब्दों के कोष्टक में अर्थ दे दिये जाते और किताब को अध्याय में विभक्त कर दिया जाता तो और उत्तम होता!
पर पुस्तक पठनीय है !रिग्वैदिक काल की कथा आज के समय में यदि पढ़ ली जाय तो समझिये की लेखक ने अच्छा व सार्थक लिखा है!
मैं बस इतना ही कहूंगा"
बहुत-बहुत बधाई बंधु सुधीर मौर्या जी को!
रामप्रसाद

Sunday, 2 April 2017

पौराणिक उपन्यास 'पहला शूद्र' पे भगवंत अनोमल की समीक्षा।

 पौराणिक उपन्यास 'पहला शूद्र' लेखक - सुधीर मौर्य 
बहुत कम लोग होते है जो साहित्यिक राजनीति से कोशो दूर, पुरष्कार लालसा से मीलो दूर और बिना किसी ढोल नगाड़ा के साहित्य सेवा में नौकरी करते हुए इतने मन से समर्पित रहते है। ऐसे ही है अपने Sudheer Maurya जी। नौकरी करते हुए उनकी अब तक दस से अधिक किताबे प्रकाशित हो चुकी है। यह अपने आप में ही बहुत बड़ी बात है। वैसे तो उनकी हर वर्ष कोई न कोई किताब प्रकाशित हो जाती है परंतु इस बार वह बड़े ख़ास अंदाज में आये है। उनकी पुस्तक Pahla Shudra - पहला शूद्र प्रकाशित हुई है। आज के दौर में युवा लेखक अधिकतर प्रेम कहानियां ही लिखने में लगे पड़े है। परंतु यह पुस्तक इस मायने में अलग एवं महत्त्वपूर्ण है कि यह एक ऐतिहासिक उपंन्यास है। ऐतिहासिक उपंन्यास लिखने वाले लेखक हिंदी में इस वक्त कम ही है। संदीप नय्यर जी का ऐतहासिक उपंन्यास मुझे याद आता है 'समरसिद्धा', जो आज से दो वर्ष पूर्व पेंगुइन हिंदी ने छापा था। इस बीच एक दो उपंन्यास और आए हो तो मुझे जानकारी नहीं है।
पौराणिक उपन्यास 'पहला शूद्र' लेखक - सुधीर मौर्य 
वैसे तो इस बात से कतई इंकार नहीं है कि इस पुस्तक की विषय वस्तु बिलकुल अलग है। इसमें इन्द्र, भरद्वाज, वशिष्ठ और अगस्त्य जैसे मुनियो के द्वारा सप्त सैंधव की षड्यंत्र गाथा है। जैसा कि हम सभी को पता है कि सुधीर मौर्य जी के पास शब्दो का असीम भण्डार है, जो बहुत कम युवा लेखको के पास है । उनकी पिछली किताबो में उर्दू शब्दो का काफी प्रयोग होता था परंतु इस बार इस पुस्तक के अनुसार उन्होंने उस वक्त के शब्दो को प्रयोग किया है। जिसे पढ़ते हुए ऐसा प्रतीत होता है जैसे हम दूरदर्शन पर श्री कृष्णा, रामायण या फिर ओम नमः शिवाय जैसे सीरियल देख रहे हो। जैसे शराब की जगह पर सोम शब्द का उपयोग किया गया है। इस वाक्य में ही आप इस पुस्तक की भाषा का आंकलन कर लेंगे। -

" हाँ देव, ये सोम नहीं, सूरा है। इसके पान से रति विलास का आनंद बढ़ जाता है। और आज की रात तो आप देवी शची ले साथ व्यतीत करने वाले है। " शाश्वती ने नहुष को बंकिम नेत्रो से देखकर कहा।

पुस्तक शुरुआत से अंत की तरफ सीधी बढ़ती जाती है। इसके साथ ही उन्होंने ब्राम्हण वाद का मुनियो द्वारा बनाये गए षणयंत्र का भी उल्लेख किया है-
'ये स्मरण रहे, हमें वही परिपाटी स्थापित करनी है जिसमे हम मुनि सर्वश्रेष्ठ बने रहे। देवो से भी श्रेष्ठ। किसी भी परिस्थिति में हमें अपनी श्रेष्ठता बनाये रखनी है। राजदुहिता आहिल्या का मुनि गौतम से विवाह हमारी इस परंपरा का आरम्भ है। भले ही हम मुनि और राजन्य आर्य हो, किन्तु हम मुनि ब्राह्मण, राजन्य क्षत्रियो से कहीं श्रेष्ठ है और इसलिए उनकी दुहिताओ पर हमारा अधिकार स्वयमेव सिद्ध हो जाता है। अहिल्या का गौतम से विवाह कराकर हमने उसी अधिकार का प्रयोग किया है।
पुस्तक आपको पढ़ने के लिए बांधे रखती है, आगे क्या होगा यह जान्ने के लिए आप पुस्तक बेताबी से पढ़ते रहते है। परंतु इस चक्कर में कहीं कहीं पर ऐसा हुआ है जैसे लग रहा हो सीरियल का रिकैप दिखाया जा रहा हो , लगभग उस रफ़्तार में भाग रही हो। इसका उदाहरण -
वहां से लौटकर इन्द्र अपने एक सेवक तक्ष के पास जाकर बोला, 'तक्ष तुम अपने कुलिश से बंदी विश्वरूप त्रिषिरा का सर काट दो।
" जो आज्ञा पुरून्दर" कहकर तक्ष ने बंदीगृह में जाकर कुलिश के प्रहारों से सोते हुए त्रिषिरा विश्वरूप का सिर काट दिया और फिर आकर उसने अपने इस कृत्य की सूचना इन्द्र को दी, तो प्रसन्न होकर इंद्रा ने पान के लिए उसे सोमरस लाने को कहा।
अंत में मैं यही कहना चाहूंगा कि यह पुस्तक कहीं से भी उनकी पिछली किताबो से मेल नहीं खाती। अगर आपने अब तक सुधीर जी कोई अन्य पुस्तक पढ़कर राय बना ली है तो मैं आपसे कहना चाहूंगा कि इसे पढ़ते वक्त आपको लगेगा ही नहीं कि अपने इस लेखक की पिछली पुस्तक पढ़ी हुई है। अगर आप ऐतिहासिक उपंन्यास के शौक़ीन है तो एक बार इसे ट्राय कर सकते है।
सुधीर मौर्या जी को इस पुस्तक की अलग विषय वस्तु, इस पुस्तक की भाषा शैली के साथ न्याय करने के लिए ढेर सारी शुभकामनाएं। उम्मीद है, आगे हमें और भी बेहतरीन पुस्तके पढ़ने को मिलेंगी।
इस उपंन्यास को Read PubIication ने प्रकाशित किया है।
नोट :- मैं कोई आलोचक नहीं हूँ, इसे पुस्तक पढ़ने के पश्चात् एक पाठक की त्वरित प्रतिक्रिया समझी जाए।
-- भगवंत अनोमल

Sunday, 5 March 2017

सुधीर के वैदिककालीन उपन्यास 'पहला शूद्र' पे श्री गंगाशरण जी की समीक्षा

पुस्तक - पहला शूद्र (वैदिककालीन उपन्यास) 
लेखक - सुधीर मौर्य 
प्रकाशक - रीड पब्लिकेशन 
पृष्ठ - १५२ पेपरबैक 
ISBN-13: 978-8190866446
समीक्षक - गंगाशरण सिंह 
Sudheer Maurya जी जी ऐसे लेखक मित्र हैं जो अमूमन न मुझे पढ़ते हैं न मैं उन्हें :)कहा जा सकता है कि हमारी मित्रता के बीच हमारा लिखना पढ़ना आड़े नही आता :) सुधीर जी लोकप्रिय लेखकों की उस नयी जमात से हैं जिनका अपना एक बड़ा पाठक वर्ग है और उनके मध्य अपने सरस ( ये दूसरा वाला सरस है....रस वाला ) लेखन के चलते वो काफी मक़बूल हैं।
पिछले दिनों पहली बार उनकी जो किताब मैंने पूरा पढ़ा वो है ---- " पहला शूद्र " और इस उपन्यास ने मुझे उनसे ये कहने को बाध्य किया कि वो इस तरह का गंभीर लेखन भी किया करें ताकि मेरे जैसे तथाकथित गंभीर पाठक भी उन्हें पढ़ सकें :)
पहला शूद्र पौराणिक युग की कथा है, जिसके नायक हैं उस युग के महान वीर दिवोदास के पुत्र सुदास। अपने नाम के "सु" को सार्थक करते हुए एक ऐसे महानायक जिन्होंने अप्रतिम साहस और वीरता का परिचय देते हुए अपने समय में अजेय योद्धा की ख्याति अर्जित की।
पुराण काल जहाँ शौर्य और वीरता के अनगिनत उदाहरणों से भरा पड़ा है वहीँ दूसरी तरफ़ शासक और पुरोहित वर्ग के षड्यंत्रों के किस्से भी कम नही हैं। स्वयं के प्रभुत्व को स्थापित करने और पूज्य होने की लालसा में उस समय के पुरोहित गणों ने ऐसे ऐसे राजनीतिक षडयंत्रों को जन्म दिया जिसने तत्कालीन समाज को लम्बे लम्बे युद्धों में उलझाये रखा और अपार जन धन की हानि हुई।
दिवोदास, इंद्र, वशिष्ठ, अहिल्या, विश्वामित्र, अगस्त्य, और अन्य बहुत से छोटे बड़े पात्र मिलकर इस रचना की कथाभूमि को प्रशस्त करते हैं। कहानी के तथ्यों पर कोई टिप्पड़ी करना उचित इसलिए नही है क्योंकि उन रचनाओं से अब तक नही गुजरा हूँ जिन्हें पढ़कर सुधीर जी के मन में इस उपन्यास के बीज अंकुरित हुए। कहानी के विस्तार और प्रस्तुति में गजब का तालमेल है और इसीलिए रोचकता कहीं पर बाधित नही होती। प्रूफ़ की कुछ ग़लतियाँ हैं जो अगले संस्करण में सुधार ली जायेंगी ऐसी उम्मीद है। अपने सरस वाले स्वाभाव के अनुसार लेखक यहाँ भी चूकते नही बल्कि जहाँ भी ज़रा सा अवसर मिला रस भरपूर फैलाया है. :)
सुधीर जी, आपका प्रयास और विशेष कर कथानक के अनुरूप आपकी भाषा की प्रौढ़ता सराहनीय लगी। आशा करता हूँ कि आने वाली रचनाओं में छोटी मोटी खामियों को दुरुस्त करेंगे और आपका लेखन निरंतर प्रौढ़ हो, ये सस्नेह शुभकामना है।

पुस्तक प्राप्त करने का अमेज़ॉन लिंक :-
http://www.amazon.in/Pahla-Shudra-Sudheer-Maurya/dp/8190866443/ref=sr_1_3/254-0123650-6016747?s=books&ie=UTF8&qid=1488705078&sr=1-3 

Tuesday, 1 March 2016

दंगो की पृष्ठभूमि पर पनपती प्रेम कहानी है 'वर्जित' - अंजलि कुशवाहा

अंजुमन प्रकाशन से प्रकाशित मेरे उपन्यास 'वर्जित' पे अंजलि कुशवाहा की सटीक संक्षिप्त टिप्पणी।  - सुधीर मौर्य 

दोस्तों आज पहली बार किसी उपन्यास की समीक्षा अपनी वॉल पर डाल रही हूँ। आशा है कि मैं उपन्यास व लेखक के साथ न्याय करने में थोड़ा सा सफल रही हूँ।
'वर्जित'
लेखक- श्री सुधीर मौर्य
समीक्षा-
वर्जित, साम्प्रदायिक दंगों की पृष्ठभूमि पर पनपती एक प्रेम कथा। कहानी में लेखक ने मानवीय भावनाओं को बखूबी उजागर किया है। लेखक ने कुणाल ( नायक) के माध्यम से जहाँ एक ओर पुरुष वर्ग की कमजोरियों का एक सफल चित्रण दिया है वहीं दूसरी ओर कहानी की नायिका इरम हर कदम पर एक ठोस निर्णय लेती नजर आती है। कहानी का नायक कुणाल जो कि एक लेखक है, इरम नामक मुस्लिम लड़की को बहुत प्यार करता है परन्तु अवनि जो कि उसके मकान मालिक की बेटी है और कुणाल को बहुत प्यार करती है, से सम्बन्ध बना लेता है। उपन्यास की नायिका इरम एक मुस्लिम लड़की जो सैफी ( कुणाल) को बेहद प्रेम करती है और प्रेम में पूर्णतया समर्पित है ,सैफी की वास्तविकता (एक हिन्दू लड़का) जानकर एक कठोर निर्णय लेकर स्वयं को कुणाल के लिए वर्जित घोषित कर देती है।
कुणाल की निर्णय ले पाने की अक्षमता के कारण ही वह स्वयं को अवनि और इरम के बीच फँसा हुआ पाता है। अवनि भी कुणाल को प्रेम करती है और कुणाल की खुशी के लिए कुछ भी करने को तैयार है। कहानी में तन्जीला का प्रवेश एक नया मोड़ ले आता है। तन्जीला एक जर्नलिस्ट और इरम की कजिन है।वह एक बोल्ड एवं आजाद ख्याल की लड़की है जो अपने विचारों से कुणाल और इरम को प्रभावित करती है। कुणाल और इरम दुनिया की सारी रिवायतैं तोड़ते हुए शादी कर दूर चले जाते हैं लेकिन शहर में हो रहे दंगे उन्हें वापस ले आते हैं और कहानी का अंत दंगों के दुष्परिणाम के साथ होता है ।

--अंजलि कुशवाहा

इस उपन्यास को अमेज़ॉन के इस लिंक से मगाया जा सकता है।

http://www.amazon.in/varjit-sudheer-maurya/dp/938396975X/ref=sr_1_2?s=books&ie=UTF8&qid=1456904188&sr=1-2&keywords=sudheer+maurya

Thursday, 18 June 2015

डॉ अर्चना प्रकाश का कहानी संग्रह 'दुष्यंती फेरे' - सुधीर मौर्य

अतीत और वर्तमान की कड़ियों को मिलाकर एक सशक्त कथानक के निर्माण करने में  कथाकार डाक्टर अर्चना प्रकाश को महारत हासिल है।  लेखिका का प्रस्तुत कहानी संग्रह दुष्यंती फेरे इसका ज्वलंत उदहारण है।  संग्रह की मुख्य कहानी दुष्यंती फेरे लेखिका की सर्वश्रेष्ठ रचना है।  इस कहानी में लेखिका ने नायक सिद्धांत और नायिका संजना को लेकर जिस ताने बाने को लेकर कथानक का सृजन किया है वो अभूतपूर्व है। लेखिका ने अपने संग्रह में उन तमाम सामाजिक मुद्दो को सजीवता से उठाया है जो समाज के लिए नासूर बनते जा रहे है। कहानी वापसी में अर्चना प्रकाश जी ने  जिस तरह से लव जिहाद के मुद्दे को सजीव किया उसके लिए वे धन्यवाद की पात्र है। इसके अतरिक्त कहानी उसके बाद में, उन्होंने  सामूहिक बलात्कार की झकझोर देने कथानक का चित्रण किया है। समाज के अन्य मुद्दे जैसे - ढोंगी साधुओं पे भी जम कर प्रहार किया गया है। लेखिका की कहानी सिद्धिप्रभा स्त्री विमर्श के नए आयाम स्थापित करेगी।
कुल जमा अगर कहे दुष्यंती फेरे ऐसा कहानी संग्रह है जिसके पैन पलटते ही आप वर्तमान में अतीत  को भी जिन्दा होते पायगे।  मैने ऐसा ही किया और ये सचमुच अनोखा अनुभव है।  अब आपकी बारी है।
शुभकामनाये।
सुधीर मौर्य

अम्बरनाथ, मुंबई