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Saturday, 4 August 2018

सदियों पुरानी अनार्य स्त्री (कविता) - सुधीर मौर्य

 
तुमने बड़ी असभ्यता से
हमें घोषित कर दिया था असभ्य
तुहारी इस घोषणा के साथ ही है
तुम बन गए थे सभ्यता के प्रतीक
और फिर हमें असभ्य बताकर
तुमने छीन लिए हमसे
हमारे ही पहाड, जंगल और ज़मीन
घोषित करके नदियों को पवित्र
तुमने प्रतिबंधित कर दिया जल छूना तक हमारे लिए 
तुमने न केवल व्यंग्य कसे
हमारे रंग और देह पर
अपितु अपने मनोरंजन और सामर्थ्य प्रदर्शन के लिए
तुमने काट लिए
हमारे कान, नाक, हाथ, पाँव और स्तन
खुद को आर्यश्रेष्ठ और पुरोहित की घोषणा के साथ ही
तुम्हे मिल गया था अधिकार
हमें दासी बनाने और हमसे शैय्या सहचरी का
तुमने उजाड़ दिए छल से
हम द्रविड़ो के हँसते खेलते गढ़
तुम्हरी लिप्सा के भेंट चढ़ गए
शंबर, वृत्र , बलि और रावण से
न जाने कितने अनार्य
तुमने घोषित करके सरस्वती को देवी
छीन लिया हमसे लिखने पढ़ने का अधिकार
और बना लिया हमें
अपना जरखरीद दास सदा - सदा के लिए 
और हमने भूल कर अपन यश गौरव
कबूल कर ली तुम्हारी दासता
अपने भाग्य को सोया मानकर
किन्तु सुनो !
अब हमारे सन्तानो की नींद टूट चुकी है
बस प्रतीक्षा है उनके उठ कर खड़े होने की।
--सुधीर मौर्य 

Friday, 31 March 2017

ओ मेरी सुघड़ देवि ! (कविता) - सुधीर मौर्य

ओ मेरी सुघड़ देवि !

मैं कामना करता हूँ 
कि तुम लौट आओ 
मेरी ज़िन्दगी में 
और बचा लो 
मेरी बची हुई उम्र को 
शापित होने से। 

ओ मेरी सुघड़ देवि !
मैं दुआ मांगता हूँ 
सोते - जागते 
हर घडी 
कभी अपने 
तो कभी तुम्हारे देवताओं से 
कि वो भेज दें तुम्हे 
मेरे संग उस राह पे 
जिसकी मंज़िल के भाग्य में लिखा है 
कि वो तुम बिन मुझसे मिल नहीं सकती। 


ओ मेरी सुघड़ देवि !
तुम चली आना 
किसी रोज, ख्वाब के ही रस्ते 
और मुझे गढ़ना, उस लायक 
कि मै बन  संकू 
जरा सा तुम्हारे लायक। 

ओ मेरी सुघड़ देवि !
तुम पाट  देना 
मज़हब के दहकते दरिया को 
अपनी पलकों की शीतल जुम्बिश से 
और बांध लेना मुझे 
अपनी ज़ुल्फ़ों में हमेशा के लिए। 

ओ मेरी सुघड़ देवि !
देखना कहीं ऐसा न हो 
कि हमारे मज़हबों का अलग होना 
हमारी मन्नतों से बड़ा हो जाये। 
--सुधीर मौर्य  

Friday, 30 December 2016

दूसरी सुजाता (कविता) - सुधीर मौर्य

ओ सुजाता ! 
Gaanu Prasadi

मै तकता हूं तेरी राह
और चखना चाहता हूं
तेरी हाथ की बनी खीर
देख 
मै नही बनना चाहता बुद्ध
न ही पाना चाहता कैवल्य
मै तो बस चाहता हूँ 
छुटकारा
दुखो से अपने

देवी !
दान दोगी न मुझे
एक कटोरा खीर का
न सही बुद्ध की 
मेरे लिए 
दूसरी सुजाता बनके। 
--सुधीर मौर्य 

Sunday, 25 December 2016

दिसम्बर और मुरादों के दिन - सुधीर मौर्य


देख लड़की मैं जानता हूँ
तूँ देखा करती थी कनखियों से किसी को
 अपनी छत पे टहलते हुए
हाथो में कोई खुली किताब लिए
देख लड़की मैं जानता हूँ 
तूँ कामना करती थी
मुरादों के दिन की 

दिसम्बर की कंपकपाती रात की तन्हाई में
अपनी सांवली गुदाज़ उंगलियों से
अपनी कमर से इज़ारबंद खोल के
देख लड़की तेरी कजिन ने बताया था मुझे
तूँ प्रेम करती है किसी को डर - डर के
देख लड़की आज कहता हूँ मैं तुझसे 

प्रेम कभी डर - डर के नहीं होता
या तो प्रेम होता है या नहीं होता
देख लड़की ये दिसम्बर का महीना है
और तेरे प्रेमी की आँखे सूनी हो चली है
तेरे इंतज़ार में
देख लड़की जा और जाके सजा दे
अपने प्रेमी की सूनी आँखों में प्रेम के सितारे
और हांसिल कर ले अपने मुरादों के दिन
देख लड़की कहीं देर न हो जाये
कि दिसम्बर का ये आखिरी हफ्ता है।
 --सुधीर मौर्य 

Tuesday, 26 April 2016

Dedicated to Veengas (Pakistani Journalist)


देख लड़की !
जो तूँ माथे पे बिंदी न सजाती
तो
'उस पार'
न जाने कितनी लड़कियां
सुहागन न बनती।

--सुधीर मौर्य 

O’ Girl !
If you hadn’t put bondi on your forhead;
So many girls on ‘other side’ would not have gotten Suhagan.
--Translate by Sunil Dixit