Saturday, 8 September 2012

सोलहवां साल ये तेरा...



रुक जाव कुछ लम्हे अभी अरमान अधुरा है
गुजरने वाला वो हद से अभी तूफ़ान अधुरा है

कली से फूल बन्ने का लो आया है हसीं मौसम
मुहब्बत में ह्या का अब नहीं कुछ कम है हमदम
बिन तेरे चाँद से चहरे के, दिल का आसमान अधुरा है  

तेरे रसभरे होठ, छलकती मय से ये आँखें
लगाए दिल में आग मेरे, तेरी गर्म ये सांसे
बिन रुखसार के बोसे, ये तेरा मेहमान अधुरा है

तेरी ये मरमरी बाहें, तेरे ये चाँद से पावं
की अब्र से भी बढकर है तेरी ज़ुल्फ़ की छावं 
बिन पाजेब के तेरे संगीत का सामान अधुरा है

हवाओं में उड़े आँचल की हाय हाल ये तेरा
बड़ा ही दिलकश है जाना सोलहवां साल ये तेरा
एक तेरे बिना यारा,मेरा जहां अधुरा है.

कविता संग्रह 'हो न हो' से...   
  

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