Wednesday, 9 May 2012

दिनचर्या


दिन गुज़रा जब रो रो के
और आँखों से बरसात हुई 
दिल और भी तब बेचैन हुआ 
जब साँझ ढली और रात हुई

घडी की हर एक टिक टिक का 
सम्बन्ध बना मेरी करवट से
तेरी याद में कितना तडपा हूँ
पूछो चादर की सलवट से

छिपते ही आखिरी तारे के
मेरी आँख की नदिया फूट पड़ी 
सूरज की पहली किरन के संग
तेरी यादें मुझ पर टूट पड़ी 

दिन गुज़रा जब रो रो के
और आँखों से बरसात हुई

सुधीर मौर्या 'सुधीर'
गंज जलालाबाद, उन्नाव
२०९८६९
०९६९९७८७६३४

2 comments:

  1. बहुत सुंदर और उत्तम भाव लिए हुए.... खूबसूरत रचना

    संजय कुमार
    हरियाणा
    http://sanjaybhaskar.blogspot.in

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  2. कविता के लिए ...आभार

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