दिन गुज़रा जब रो रो के
और आँखों से बरसात हुई
दिल और भी तब बेचैन हुआ
जब साँझ ढली और रात हुई
घडी की हर एक टिक टिक का
सम्बन्ध बना मेरी करवट से
तेरी याद में कितना तडपा हूँ
पूछो चादर की सलवट से
छिपते ही आखिरी तारे के
मेरी आँख की नदिया फूट पड़ी
सूरज की पहली किरन के संग
तेरी यादें मुझ पर टूट पड़ी
दिन गुज़रा जब रो रो के
और आँखों से बरसात हुई
सुधीर मौर्या 'सुधीर'
गंज जलालाबाद, उन्नाव
२०९८६९
०९६९९७८७६३४
बहुत सुंदर और उत्तम भाव लिए हुए.... खूबसूरत रचना
ReplyDeleteसंजय कुमार
हरियाणा
http://sanjaybhaskar.blogspot.in
कविता के लिए ...आभार
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