Thursday 31 May 2012

ख्वाब की किरचें..


वक़्त ने

मेरी बाहं थाम कर

मेरी हथेली पर

अश्क के
दो कतरे बिखेर दिए

मेरे सवाल पर
बोला
ये अश्क नहीं
बिखरे ख्वाब की किरचे हे

सभांल कर रखो
तुम्हे ये याद दिलायंगे
की मुफलिस
आँखों में ख्वाब
सजाया नहीं करते..



By-Sudheer Maurya 'sudheer'

Tuesday 29 May 2012

स्याह जिन्दगी है..



हम नीमजदा को भी अंगडाई आ गयी

महफ़िल में जो वो रुखसार फरोजा हो गए



वो महफ़िल में आये बनके रकीबे हयात
उनके तीरे नज़र से चाक गरेबा हो गए

स्याह जिन्दगी है बेनूर हें फिजायं 
जिस रोज से दोस्तों वो बेवफा हो गए

खामोश हो गए हम उनकी जीस्त के लिए
ज़माने को लगा 'सुधीर' बेजुबा हो गए

'लम्स' से
सुधीर मौर्या 'सुधीर'
गंज जलालाबाद, उन्नाव
२०९८६९
०९६९९७८७६३४

Sunday 27 May 2012

मुफलिसी




ऐ मुफलिसी ये क्या हुआ, ऐ बेबसी ये क्या हुआ

कल हमारा था जो, वो आज गैर हो गया
वो महताब आज तारों में कही पे खो गया
मे नाकारा जगता हूँ सारा आलम सो गया
ऐ मुफलिसी ये क्या हुआ, ऐ बेबसी ये क्या हुआ 

रात हंस हंस कर ये बोले तेरा साथी मयकदा 
गोद में साकी के जा तु जो हे गमजदा
तेरे किस कम के ये अब काबा और बुतकदा
ऐ मुफलिसी ये क्या हुआ, ऐ बेबसी ये क्या हुआ

यूँ लगा की मुकम्मल मेरा अरमा हो गया
मेरे घर में दो घडी जो चाँद मेहमां हो गया
चलते ही ठंडी हवा फिर हाय तूफां हो गया
ऐ मुफलिसी ये क्या हुआ, ऐ बेबसी ये क्या हुआ

अपने हाथो से मुकद्दर आज अपना तोड़ दूँ
जो बचा हे पास मेरे उसको भी अब छोड़ दूँ
इस गम-ऐ जिन्दगी को मौत के जानिब मोड़ दूँ
ऐ मुफलिसी ये क्या हुआ, ऐ बेबसी ये क्या हुआ

सुधीर मौर्या 'सुधीर'
गंज जलालाबाद, उन्नाव
२०९८६९
०९६९९७८७६३४

Thursday 24 May 2012

मौत



मौत- इसने  छोड़ा किसे
क्या तैमुर क्या बाबर
क्या नादिर क्या सिकन्दर

सबने कहा-
क्या नानक-क्या कबीर
क्या फरीद-क्या अमीर
यही एक सच

इसे तआकुब सभी की
क्या रजा-क्या रंक
सबको दसे इसका डंक

केसा दस्तूर ये 
इस वफादार महबूबा पर
किसी को यकीन नहीं
सभी चाहते इस से दूर रहना

पर क्या करे-
ये तो वफ़ा निभागी
एक दिन
कनार में लेगी जरुर

'लम्स' से
सुधीर मौर्या 'सुधीर'
गंज जलालाबाद, उन्नाव
२०९८६९  

Sunday 20 May 2012

प्रीत का दीप जला देना



जब तेरे शब्दों की दुनिया
परिवक्व पल्लवित हो जाये
जब तेरे आँचल में खुशियाँ 
अपार अपिर्मित हो जाये
तब चुपके से आकर होले से
तुम प्रीत का दीप जला देना

जब गंगा तट पर गंगा की लहरें
आशीष तुम्हरे ही सर दे
जब नील गगन में उड़ने को
परियां तुमको अपने पर दे
तब चुपके से आकर होले से
तुम प्रीत का दीप जला देना

जब रात खोल कर आँखों को
तेरी आँखों मे ख्वाब सजाने लगे
जब सतरंगी हवा उपवन से बहकर
तेरे पाँव में महावर लगाने लगे
तब चुपके से आकर होले से
तुम प्रीत का दीप जला देना

सुधीर मौर्या 'सुधीर'
गंज जलालाबाद, उन्नाव
२०९८६९
०९६९९७८७६३४


dastan-e-husn



दोशीजा होठो पे शबनम के कतरे
लचके बदन पे कसाव जो निखरे
सावन को खुमारे जिस्म की याद
कंधो  पे खुलकर ज़ुल्फ़ हरसू बिखरे.




ज़ुल्फ़ खुल गए रात की अंधियारी हे
दुनिया पे उनका खुमार तारी  हे
सितारों का सुकूत दस्तक देता हे
कोई तूफ़ान आने की तय्यारी हे.




सुधीर मौर्या 'सुधीर'
गंज जलालाबाद, उन्नाव
209869
09699787634

Friday 18 May 2012

दिन

चोबीस से बीस

घंटे खींचता हे वो
कभी रिक्शा, कभी बीडी के कश  



Thursday 17 May 2012

सितारों की रात


हाँ वैसी ही चांदनी रात
जेसी कभी तेरे
कनार में हुआ करती थी
पर आज कुछ तो
जुदा था
कुछ तो अलग 
आज तुन
गैर हो रही थी
मेरी आँखों के सामने.

तेरे गैर होते ही
मे निकल आया
तेरे मंडप से
हाँ वैसी ही
चांदनी रात
सितारों से भरी हुई
पर अब मेरे खातिर
सब वीरान था
हाँ वैसी ही चांदनी रात में
में भटकता रहा
और पहुँच वहां 
जहाँ रहता था वो मलंग. 
जिससे मिलना कभी 
ख्वाहिश रही थी मेरी
शायद
आगाह था वो
दर्द से मेरे
तभी तो उसने
बताई वो जगह
जहाँ इकट्ठे होते है
वो सितारे
जिनका अपना कोई दर्द नहीं
औरों के दर्द के आगे

और यूँ
शुक्रगुज़ार हो के
उस मलंग का
मे पहुँच गया
उस जगह जो थी दरम्यान 
पहाडो के

हाँ वो सितारों की रत
हाँ वो बिखरी चांदनी
और तनहा वहां पे मे
तेरे दर्द के साथ

मुझे इंतज़ार था
उन सितारों का
जो बकोल-ऐ -मलंग
नुमाया होते हैं
यहाँ इस रात को

रात का पहला पहर
और मेरी 
मुन्तजिर आँखे
खैर और ज्यादा
मुझ इन्जार करना न पड़ा

ठंडी सबा बह चली थी
अचानक ही महक उठी थी
हर सिम्त
और वो साया
हवावो में लहराता हुआ
आकर मेरे करीब 
खड़ा हो गया था
कुछ ही फासला था
दरम्या हमारे


वो होले से बोली
तलाश हे तुझे 
मुहब्बत की क्या
मैंने सर हिलाया था
इकरार मे
मैंने सुने,
उसके वो लफ्ज़
जो दिल के साथ रूह तक
उतर रहे थे
क्या हे तुझ में जब्त
मुहब्बत का?
क्या निभाई तुने वफ़ा ?
मे कुछ कहता
उससे पहले ही
वो बोली थी
अरे मैंने तो अपने हाथ से
उसकी दुल्हन सजाई हे
और मेर होटों से सिसकारी निकली
'परवीन"
परवीन शाकिर
मेर बोलते ही
वो साया 
गर्दूं की तरफ 
उड़ चला और मे
सकित वहीँ खड़ा रहा.

रात खिसकी


चांदनी छिटक चली थी

मुझे लगा
जैसे फजाओ में
बांसुरी बज 
रही हो
हवावो में
संगीत घुल चला हो
मैंने देखा
ठंडी हवा के साथ
लहराते हुए
एक साया
मेरे सामने आ गया था
वो बोली
प्रेम चाहता हे न तू
हाँ- मेरे लब हिले थे
आसान नहीं हे
प्रेम पाना
पीना पड़ता हे
हलाहल इसके लिए
वो बोलती 
जा रही थी
त्याग करना होता हे
घर का- लाज का
तब होता हे प्राप्त
कहीं प्रेम
जेसे होंटों पे मेरे 
नाम हे मेरे प्रेमी
गिरधर का
वेसी ही तपस्या
करनी पड़ेगी तुझे
मेरी आवाज़ निकली
"मीरा"
प्रेम और भक्ति की देवी
"मीरा"

मैंने महसूस किया

मेरे सर पर
उसके साये को
फिर ओझल हो गई 
वो मेरी नजरों से 

रात  गहरा रही थी
अचानक हर तरफ
शांति छा गई  थी
हवायं स्थिर हो चली थी
मैंने देखा
दूर पत्थर पे एक
साया बैठा हे
जिसकी काया 
स्वर्ण की तरह हे
मुखमंडल पर आभा
देवों की मानिंद
'प्रेम की खोज में हो'
मुझे ऐसा लगा
जैसे सारा माहोल
यह आवाज़ सुनने को
बेचैन था
वो आगे बोला
प्रेम-किसी सुन्दर शरीर
को पाने का नाम नहीं
प्रेम
अरे प्रेम पाना हे 
तो जाव उन बस्तियों में
जहाँ कराहते हें पीढ़ा से लोग
जानवरों के झुण्ड की तरह
हांकें जाते हें
वो जिन पर प्रतिबन्ध है
इश्वर की पूजा तक पर
जा हांसिल कर
मानव जाती का प्रेम
बन जा उनका और
उन्हें अपना बना ले
और-मे
मेरी ख़ुशी का
ठिकाना न रहा
मैंने गगन भेदी नारा लगाया
'बुध'- मेरे आराध्य
और मैंने देखा
मुस्कराते हुए वो साया
फजाओ में विलीन हो गया

अचानक
रात के सन्नाटे में
घंटे बजने की
आवाज़ आने लगी
ज्यूँ चर्च में बजते  हे
मेरे सामने
एक साया था
जिसके पैरहन फटे थे
और शरीर पे-ज़ख्म
मुहब्बत का
मारा हे न तू -वो बोला
यकीनन हांसिल होगी 
तुझे  मुहब्बत
तू जा उन लोगो के दरम्या
जिनके खेत
मठाधीशों ने
गिरवी रख लिए
जिनके ढोर
मठों में रहने वाले हांक ले गए
वो जो निएअप्राध हें
फिर भी रोज सताए  जाते हें
जा ले सकता हे तो
ले ले उन मज़लूमो का दर्द
हांसिल कर ले उनकी मुहब्बत
हांसिल कर ले
मे धीरे से बोला
'खलील'-खलील जिब्रान

रात ढल चली थी

फजाओ में सादगी मचल रही थी
और में रूबरू था उस साये के
प्रेम-यही अबिलाषा हे
न तुझे
अरेमुर्ख-प्रेम तो मैंने किया हे
अपने देश से-अपने धर्म से
देख सकता हे तो देख
यह स्वर्णिम देह
जो बार-बार
कुचली गई
विधर्मियो के हाथ
'नासिर' उसे भी इश्क था
धर्म से-वतन से
भुला दिया
तुने हमारा वो बलिदान
अरे जा
प्रेम कर - धर्म से
कुर्बान हो जा-उस पर
मिट जा
और अमर कर दे
खुद को प्रेम में
मे आत्मविभोर
होकर बोला
देवल-देवाल्देवी

हाँ भोर का तारा
उग चला था 
और मेरे कानो में
आवाज़ पड़ी थी-उसकी
आ-मे बताती हूँ
तुझे इश्क के बाबत
वो चांदी सी खनकती आवाज़ में बोली
- मैंने एक दुनिया बेच दी
 और दीन खरीद लिया 
 बात कुफ्र की कर दी
 मैंने आसमान के घड़े से
 बदल का ढकना हटा दिया
 एक घूंट चन्दनी पि ली
 एक घडी कर्ज ले ली
 और जिन्दगी की चोली सी ली

 हर लफ्ज़ 
उसका अमृत था
जिसने मेरी
रूह के साथ
मेरी हसरतों को
भी अमर कर दिया
मैंने सरगोशी की थी
अमृता- अमृता प्रीतम

रात ख़त्म हो चली थी
सितारे
सहर की रौशनी में
विलीन हो चले थे
और में
आज जिसे
प्रेम का ज्ञान हुआ था
जो प्रेम की-
परिभाषा 
समझ पाया था
चल पड़ा था
एक नाइ
ताजगी- के साथ
एक नए
मकसद की जानिब. 


from 'Lams'
by Sudheer Maurya 'sudhir'
Ganj Jalalabad, Unnao
209869
09699787634

Sunday 13 May 2012

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                                                           facebook se sabhar


अपहरण के बाद जबरन इस्लाम  कबूल  करवाके  निकाह करवाने के बाद भी आतताइयों  का जी नहीं भरा हे . खबर आई हे की मियां मिट्ठू  रिंकल को या तो मरने की सोच रहा हे या फिर उसे अरब देशो में sex 
slave के रूप में बेचना चहता हे. ये एक रिंकल का मामला नहीं हे ऐसे कई केस सिंध में हो रहे हे. 

Saturday 12 May 2012

रिंकल जिसे जबरन फ़ारयाल बना दिया गया
















"२४ फरवरी को अपहृत रिंकल कुमारी को मुस्लिम बनने एवं नवेद शाह से निकाह करने
को बाध्य किया ।

विरोध जताने पर उसके दादा को गोली मारी परिवार वालों को गुंडों ने जान से
मारने की धमकी दी।

पाकिस्तान सुप्रीम कोर्ट के बाहर सहायता के लिए चीखती रही लेकिन कोर्ट ने
हमेशा की तरह उन मुस्लिमों के पक्ष में निर्णय दिया।

कुछ दिन पहले खबर आई की रिंकल के साथ कई दिनों तक सामूहिक बलात्कार हुए तथा वह
अस्पताल में मरणासन्न स्थिति में है ।

कोई नहीं जानता वह जीवित है अथवा नहीं!!!!!!!!!

Thursday 10 May 2012

गर्लफ्रेंड



पार्टी मेंअपनी 
 गर्लफ्रेंड

के साथ आये
मेरे दोस्तों ने
जब मुझसे
मेरी गर्लफ्रेंड
के बारे में पूछा
तो मैंने
पर्स से
तुम्हारी तस्वीर
निकाल कर दिखा दी

आज पूरी रात

मुझे
नींद न आई


आज

मैंने
किसी और की
बीवी को
अपनी गर्लफ्रेंड बताया.



Sudheer Maurya 'sudheer'
VPO-Ganj Jalalabad, Unnao
209869
09699787634

Wednesday 9 May 2012

दिनचर्या


दिन गुज़रा जब रो रो के
और आँखों से बरसात हुई 
दिल और भी तब बेचैन हुआ 
जब साँझ ढली और रात हुई

घडी की हर एक टिक टिक का 
सम्बन्ध बना मेरी करवट से
तेरी याद में कितना तडपा हूँ
पूछो चादर की सलवट से

छिपते ही आखिरी तारे के
मेरी आँख की नदिया फूट पड़ी 
सूरज की पहली किरन के संग
तेरी यादें मुझ पर टूट पड़ी 

दिन गुज़रा जब रो रो के
और आँखों से बरसात हुई

सुधीर मौर्या 'सुधीर'
गंज जलालाबाद, उन्नाव
२०९८६९
०९६९९७८७६३४

Thursday 3 May 2012

आनलाइन बायफ्रेंड




शानू के लेपटाप की स्क्रीन पर चेट बाक्स में लिख कर आता हे, जानू वेट १५ मिनेट में आता हूँ. जरा लंच कर लूँ.
शानू भी तेजी से टाइप करती हे - ओ.के.
आज सन्डे हे सो शानू घर पर हे, वो पदाई के लिए अपने मामा के घर लखनऊ आई हे.
शानू के पास १५ मिनेट हे क्योंकि उसका आनलाइन बायफ्रेंड लंच करने गया हे. वो भी फ्रेश होने के लिए बाथरूम जाती हे. उसके मामा का लड़का राहुल लंच कर रहा हे उससे दो या तीन साल छोटा यही कोई १७, १८ का.
शानू पानी पीती हुई राहुल से कोई बुक मांगती हे. राहुल बोलता हे- दीदी रूम में टेबल पर हे ले लीजिये.
शानू पानी पीती हुई राहुल के कमरे में जाती हे और टेबल पर बुक खोजती हे. राहुल का लेपटाप चालू हे शायद टार्न आफ करना भूल गया हे. शानू ऐसे ही ही देखती हे.
फेसबुक पर अफरोज नाम की आई डी ओपन हे. अभी-अभी चेट्बक्स में मेसेज पोस्ट हे- जानू वेट १५ मिनेट में आता हु. जरा लंच कर लूँ.
उसके निचे रिप्लाई हे शिवानी नाम की आई डी से- ओ.के.
शानू को चक्कर सा आ जाता हे . राहुल के कमरे से  तेजी से निकलती हे. पीछे से राहुल की आवाज आती हे , दीदी बुक मिली क्या, वो कोई जवाब नहीं देती हे.
शानू अपने लेपटाप पर उलझी हे और तेजी से अपनी फेक आई डी शिवानी को डिलीट कर रही हे.   


सुधीर मौर्या 'सुधीर'
ग्राम और पोस्ट- गंज जलालाबाद
जिला - उन्नाव
पिन- २०९८६९
फोन - 09699787634

साँझ, मई २०१२


साँझ के मई २०१२ के अंक में,
अतीत से, में शहरयार की ग़ज़ल और परवीन शाकिर की नज़्म.
कव्यधरा में, अंकिता पंवार, विनीता जोशी,सुधीर मौर्या 'सुधीर' की कवियाये और बरकतुल्ला अंसारी की ग़ज़ल.
कथासागर में, सुधीर मौर्या 'सुधीर' की लघुकथा.