Tuesday 26 June 2012

गेंग आफ वासेपुर...एक लोमहर्षक फिल्म...







अनुराग कश्यप  ने  इस फिल्म में हर किरदार को उभरने का मौका दिय़ा है। न चाहते हुए भी हम  उनकी इस फिल्म को पसंद करते हैं। वैसे इस फिल्म में  हिंसा, अश्लीलता और बहुत सी गालियाँ हैं ।  फिर भी  उनका सिनेमा पसंद आता है।  अनुराग हमारे अंदर के  किरदार को परदे पर लाने में कामयाब रहे हैं । फिल्म 'गैंग्स ऑफ वासेपुर' के एक सीन में नज़मा जब फरहान के सीने से लग कर रोती है और खुद को उसके बिस्तर पर बिछा देती है। तब शायद ये बात हज़म नहीं होती, क्योंकि हम भारतीय परिवेश में इसे जयय्ज नहीं मानते।  अनुराग आगे बताते है कि नज़मा एक सीमा  के बाद खुद को रोक लेती है और फरहान भी अपनी इच्छाओं को दबा लेता हैं। लेकिन क्या असल में ऐसा मुमकिन  है? क्या उनसे जो सेक्स भोग  कर सेक्स से दूर हैं उनके  जिस्म से कपडे उतरने के बाद बिना सेक्स मैं डूबे वापस कपडे पहा ले ?असल में  अनुराग ने अपनी फिल्म में नज़मा को इस  गुनाह से बचा लेते हैं। आखिर वो हैं तो भारतीय ही    

असल में  अनुराग ने तीन घंटे की एक दिलचस्प  फिल्म बनाई है। एक्शन. कॉमेडी, सेक्स और इमोशन्स... इस फिल्म में उन्होंने हर एक रंग उकेरा  है। लेकिन साथ ही साथ वो अपने धूसर रंग में डूबे, ठेठ बोली बोलते किरदारों को भी नहीं भूलते। आख़िर में 'गैंग्स ऑफ वासेपुर' न केवल अनुराग के निर्देशन में बनी एक अनूठी फिल्म साबित होती हैं, बल्कि ये हिंदी सिनेमा की एक अलहदा रचना बनकर उभरती है। अनुराग निश्चित है बधाई के पात्र हैं।

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