Friday, 24 August 2012

Rinkle'S latter for lord Krishna...











एक पुकार पर
द्रौपदी का
चीरहरण रोकने वाले...
निर्लज्जों के बीच 
उसकी लाज बचने वाले...
है अबलाओं के रछक 
द्वारिका के नाथ
मे भी तो
पुकारती हूँ तुम्हे...
हर उस पल 
जब होता है मेरा 
चीरहरण...
कहाँ सोये हो तुम...
कहाँ खोये हो तुम...
क्या मेरी आवाज़ 
पहुँच नहीं पाती
तुम्हारे कानो तक...
या फिर मुझसे कोई
सरोकार ही नहीं रखते तुम...

है अन्तर्यामी
तुम जानते हो
मेरे मन की
है कृष्ण !
अब न देर करो
इस अबला से
न इतना
वैर करो...
सज़ा दो इन
निर्लज्जो को
अब और न होने दो
चीरहरण मेरा...

विष से
मीरा की रच्छा 
करने वाले...
उसकी आत्मा को
आत्मसात करने वाले...
बात ही बात में
सोलह हज़ार 
कुमारियों को
स्वतंत्र कराने वाले...
है चक्रधारी !
क्यों नार 
फेर रक्खी है...
मुझ से,
आपने....
हाँ में भी तो हूँ
मीरा और द्रुपद कुमारी 
की तरह
तुम्हारी शरणागत...
'रिंकल कुमारी'

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