Monday, 12 March 2012

तेरा अक्स

तनहइयो ने कब
मेरे हाथ में
जाम दे दिया
कुछ इसका पता नहीं
हर शाम-हर रात
हर सुबह 
बस में और
मेरा जाम
मुझे लगा
अब जिन्दगी
चैन से कट जायगी
ग़लतफ़हमी थी मेरी
अब तो हाथ में
जाम लेने से भी
डर लगता हे

न जाने क्यों
तेरा अक्स
मुझे अब
उसमे नज़र आता हे.

'लम्स' से
सुधीर मौर्या 'सुधीर'
गंज जलालाबाद, उन्नाव
२०९८६९
09699787634 
  

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