Saturday, 25 February 2012

तेरा शहर तेरा गाँव


ये तेरा शहर
ये तेरा गाँव
मुबारक हो तुझे

मेरा क्या हे
में तो बस मेहमान हूँ
दो पल के लिए
महकता ही रहे
चहकता ही रहे
ये तेरा घर
ये आँगन तेरा
क्या हुआ
जोन न  रहा कोई फूल
मेरी ग़ज़ल के लिए

तूं सवरती ही रहे
तूं निखरती ही रहे
अपने साजन के लिए
भूल जा दिल से मुझे

तूं अपने कल के लिए

'सुधीर' के दामन में
ड़ाल दो
सब कांटे अपने
हर फूल हर सितारा
रख ले तूं
अपने आचल के लिए.   

'लम्स' से
सुधीर मौर्या 'सुधीर'
गंज जलालाबाद, उन्नाव
२४१५०२
०९६९९७८७६३४  

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