Saturday, 25 February 2012

तेरा शहर तेरा गाँव


ये तेरा शहर
ये तेरा गाँव
मुबारक हो तुझे

मेरा क्या हे
में तो बस मेहमान हूँ
दो पल के लिए
महकता ही रहे
चहकता ही रहे
ये तेरा घर
ये आँगन तेरा
क्या हुआ
जोन न  रहा कोई फूल
मेरी ग़ज़ल के लिए

तूं सवरती ही रहे
तूं निखरती ही रहे
अपने साजन के लिए
भूल जा दिल से मुझे

तूं अपने कल के लिए

'सुधीर' के दामन में
ड़ाल दो
सब कांटे अपने
हर फूल हर सितारा
रख ले तूं
अपने आचल के लिए.   

'लम्स' से
सुधीर मौर्या 'सुधीर'
गंज जलालाबाद, उन्नाव
२४१५०२
०९६९९७८७६३४  

Saturday, 11 February 2012

प्रेम की नाव

उसकी बातो में
लगने लगा हे
बहुत कुछ
बनाव इन दिनों.

किसी और की
गली से
गुजरने लगे हे
उसके पावं इन दिनों.

मागने लगा हे
कोई और
उसके जुल्फों की
छाव इन दिनों.

हाँ चर्चे हे
उसके एक और
अफएर   के
गाँव में
इन दिनों.

हो न हो
वो सवार हे
प्रेम की
दो नाव में इन दिनों.

सुधीर मौर्या 'सुधीर'
गंज जलालाबाद, उन्नाव
209869
०९६९९७८७६३४/09619483963

Wednesday, 8 February 2012

Unki kitaab me

फूल पाने की कोशिश में कांटे चुभे देखे
तेरे इश्क में हमने महीनो रतजगे देखे

ये केसा प्यार था तेरा, ये केसी दोस्ती तेरी
हजारो ज़ख़्म मैंने अपने दिल पर लगे देखे

उस दिन से मेरी दुनिया वीरान हो गई
जिस दिन तेरे दस्त हिना से सजे देखे

अँधेरे दूर करने की ये कोशिश नाकाम हो गई
रोशन चिराग करते ही हवाऔ से बुझे देखे

फ़साना दुश्मनों का मेरे केसे मुक़म्मल हो पाता
अपनी आस्तीनों में मैंने अपने सगे देखे

उस दिन से हिरासा हु जिस दिन से 'सुधीर'
उनकी किताब में ख़त रखे गैर के देखे

सुधीर मौर्या 'सुधीर'
गंज जलालाबाद, उन्नाव-२४१५०२
०९६९९७८७६३४

Saturday, 4 February 2012

Aankh ki nadiya sukh gai he

सुन्दर गोरी और
जवान
ऊपर से ऊँची
जात की वो.
अपने घर के
नोकर से ही
बाज़ी हार गई
जज्बात की वो.



कुछ आँखों ने था
देख लिया
छुप-छुप कर
मिलते बागो में
वो तीन दिनों से
गायब हे
जो रहता था
उसकी आँखों में.



कल शाम नहर के बांध में
उसकी ही
लाश पाई गई
वो रो न सकी
कुछ कह न सकी
उसकी आँखों की नदिया
हो न हो
शायद सूख गई.





सुधीर मौर्या 'सुधीर'
गंज जलालाबाद, उन्नाव
पिन- २४१५०२
09699787634 
 

Wednesday, 1 February 2012

वो अधरों के स्वर





नीले अम्बर के 

मंडप तले 

वो नीले नेनो का 
जादू मुझे बेकल कर गया



कली गुलाबो के से

वो अधरों के स्वर

मेरे लफ्जों को
देखो ग़ज़ल कर गया



काली घटाओ के से

उन जुल्फों का उड़ना

उनके कदमो का लम्स
मेरी झोपडी को महल कर गया



अपने गमो को

आखिर भुला ही बेठे

मेरी आँखों को हाय
फ़साना दर्द का उनका सजल कर गया




'लम्स' से

सुधीर मौर्या 'सुधीर'

०९६९९७८७६३४