Wednesday, 1 May 2013

सूरज तक प्रेम की राह - सुधीर मौर्य



दिसम्बर के महीने में 
लाल सायकल चलाने में 
तुम्हारे मुंह से 
निकली भाप 
मुझे 
पहाड़ो पे छाई 
धुंध की याद 
दिल देती थी।
और मै खो जाता था 
खुली आँखों में 
तुम्हारा सपना सजा कर 
कल्पनाओ के 
रास्ते पर 
जो जाते थे 
कभी मंदिर 
कभी नहर 
कभी पहाड़ 
और कभी-कभी 
अन्नत दूर 
सूरज तक।

मै बेतहाशा 
भागता रहा 
इन अधबुने 
सपनो के पीछे 
खुद को पुकारने वाली 
हर आवाज को 
अनसुना करके।

और देखो 
जब सपने बिखरे 
मै वहां खड़ा था 
जहाँ सपने थे,
तुम 
मुझे पुकारती 
आवाज़े।

सुधीर मौर्य 'सुधीर'
ग्राम और पोस्ट - गंज जलालाबाद 
जनपद - उन्नाव ( उत्तर प्रदेश )
 पिन – 209869

Monday, 22 April 2013

मोदी !ओ! भारत के लाल तुम्हे दिल्ली बुलाती है - सुधीर मौर्य


फटे कपडे बदन ज़ख़्मी तुम्हे  दुखड़ा  सुनाती  है  
मोदी !! भारत के लाल  तुम्हे दिल्ली बुलाती है    

यहाँ हर मोड़ हर चौराहे पर अब लुटती है लाज़ 
हर तरफ भ्रष्ट नेता हैं हरसू महगाई का है  राज 
दुधमुही बच्चियां, हैवानियत से अब फडफडाती हैं 
मोदी !! भारत के लाल  तुम्हे दिल्ली बुलाती है।

मेरे एक और भूखा  बच्चा एक और सड़ता अनाज है      
करू क्या में हूँ बस  मजबूर मुझपे निकम्मों का राज है  
मेरे अब हाल पर देखो दुनिया ठहाके लगाती है 
मोदी !! भारत के लाल  तुम्हे दिल्ली बुलाती है।

मुझे लुटा कभी गैरों ने कभी अपनों ने हे लुटा 
कोई बर्बर लुटेरा था कोई मक्कार, कोई झूठा 
मेरी गलियां  गोरी, बाबर के नाम गिनाती हैं 
मोदी !! भारत के लाल  तुम्हे दिल्ली बुलाती है।

जब भी मोदी! मोदी! की अब हुंकार उठती है 
मेरे ज़र्ज़र बदन में भी एक झंकार उठती है 
तेरे आने की आहट से दिशाएं मुस्कराती हैं 
मोदी !! भारत के लाल तुम्हे दिल्ली बुलाती है।

---सुधीर मौर्य 'सुधीर'
    गंज जलालाबाद, उन्नाव  
     २०     

Friday, 19 April 2013

संकटा प्रसाद के किस्से (लघु व्यंग्य उपन्यास) - सुधीर मौर्य


इधर संकटा के बाल उस्तरा से छीले जा रहे थे थे उधर वो मन ही मन सोच रहे थे की कुँए से भुत अब निकला की तब निकला। सरे बाल छिलते ही संकट के चाचा ने कुंए की मेडार पर रख के जो गोला दगाया तो मनो संकटा पर बिजली टूट पड़ी बेचारे संकटा झटके से उठ गए पर उतनी रफ़्तार से बेचारा नाई अपना उस्तरा संभाल न सका और उसकी धार में मानो भुत आ गया परिणामस्वरूप संकट की नई नवेली घुटी चाँद से खून बह चला।

मांडवी प्रकाशन से  प्रकाशित मेरे व्यंग्य उपन्यास 'संकट प्रसाद के किस्से' से
 
--सुधीर मौर्य