Friday 19 April 2013

संकटा प्रसाद के किस्से (लघु व्यंग्य उपन्यास) - सुधीर मौर्य


इधर संकटा के बाल उस्तरा से छीले जा रहे थे थे उधर वो मन ही मन सोच रहे थे की कुँए से भुत अब निकला की तब निकला। सरे बाल छिलते ही संकट के चाचा ने कुंए की मेडार पर रख के जो गोला दगाया तो मनो संकटा पर बिजली टूट पड़ी बेचारे संकटा झटके से उठ गए पर उतनी रफ़्तार से बेचारा नाई अपना उस्तरा संभाल न सका और उसकी धार में मानो भुत आ गया परिणामस्वरूप संकट की नई नवेली घुटी चाँद से खून बह चला।

मांडवी प्रकाशन से  प्रकाशित मेरे व्यंग्य उपन्यास 'संकट प्रसाद के किस्से' से
 
--सुधीर मौर्य

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