Friday 30 December 2016

दूसरी सुजाता (कविता) - सुधीर मौर्य

ओ सुजाता ! 
Gaanu Prasadi

मै तकता हूं तेरी राह
और चखना चाहता हूं
तेरी हाथ की बनी खीर
देख 
मै नही बनना चाहता बुद्ध
न ही पाना चाहता कैवल्य
मै तो बस चाहता हूँ 
छुटकारा
दुखो से अपने

देवी !
दान दोगी न मुझे
एक कटोरा खीर का
न सही बुद्ध की 
मेरे लिए 
दूसरी सुजाता बनके। 
--सुधीर मौर्य 

3 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (01-01-2017) को "नूतन वर्ष का अभिनन्दन" (चर्चा अंक-2574) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    नववर्ष 2017 की हार्दिक शुभकामनाओंं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. सुन्दर रचना

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