मुक्कमल ख़ामोशी रही थी। कुछ देर शांत बैठे रहने के बाद संदीप उठा अपने हाथो से उसने बच्चे के चेहरे से कपडा हटाया, सिर्फ कुछ पल निहारा था उसे और फिर के कमरे से वो बहार चला गया। कुदरत, श्रृष्टि सबसे बड़े शाहकार हैं उसने अजूबे को दिया था। में जो पल्लवी के साथ जिस्मानी तौर पर कभी सोया था। जिसने कभी उसे सम्पूर्ण देखा था उससे पैदा हुए बच्चे की शक्ल मेरी थी। -क्या यही आत्मा का प्यार था। -इश्क रूहों का। -मिलन के मन के हिलोरों का।
उपन्यास 'एक गली कानपुर की ' का अंश सुधीर मौर्य
उपन्यास 'एक गली कानपुर की ' का अंश सुधीर मौर्य
हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच} की पहली चर्चा हिम्मत करने वालों की हार नहीं होती -- हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल चर्चा : अंक-001 में आपका सह्य दिल से स्वागत करता है। कृपया पधारें, आपके विचार मेरे लिए "अमोल" होंगें | आपके नकारत्मक व सकारत्मक विचारों का स्वागत किया जायेगा | सादर .... Lalit Chahar
ReplyDeleteहिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच} किसी भी प्रकार की चर्चा आमंत्रित है दोनों ही सामूहिक ब्लौग है। कोई भी इनका रचनाकार बन सकता है। इन दोनों ब्लौगों का उदेश्य अच्छी रचनाओं का संग्रहण करना है। कविता मंच पर उजाले उनकी यादों के अंतर्गत पुराने कवियों की रचनआएं भी आमंत्रित हैं। आप kuldeepsingpinku@gmail.com पर मेल भेजकर इसके सदस्य बन सकते हैं। प्रत्येक रचनाकार का हृद्य से स्वागत है।
ReplyDeleteji jarur, dhanywad
Deleteबहुत सुन्दर .कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं
ReplyDeleteji dhanywad....aapko bhi krishna janmashtmi ki shubhkamnaye
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