Monday, 2 April 2012

वो हे वेवफा पर


किया बेवफा जो उसको रक़म हे
मेरे हाथ करता फिर वो कलम हे



किया मुझको रुसवा महफ़िल में एसे
वो हे बेवफा पर मेरा सनम हे



थकी आँख मेरी इंतज़ार में उसके
अटकती हे साँसे अब आखिरी दम हे



'सुधीर' न करना अब उल्फत तुम उनसे
वो सितमकश हाय बड़ा बेरहम हे



मेरे काव्य संग्रह 'लम्स' से

Sudheer Maurya 'sudheer'
VPO-Ganj Jalalabad
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U.P.
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