Wednesday, 9 November 2011

हमराही





                                                       
ऐ हमराही
मेरी बिछड़ी राहो  के
कभी-उन राहो पे
वापस गुज़र के देख
जहाँ मेरे कदमो से
तुने-कभी
कदम मिलाये थे

राहो
के  किनारे के
पेड़ो से चुन कर 
हरसिंगार के फूल 
जब तुम-मेरी
जेब में रखा 
करते थे

मचल कर 
सुनसान होते ही 
राह-जब
पकरिया के
पेड की ओट में
तुम मेरे गले लगा
करते थे

बहते ही बसंती हवा 
जब-तुम
शोखियों के साथ
अपने सिने से
लहरा के-आँचल
मेरे कंधे पे रखा
करते थे
और मेरे देखने पर
यूं हया से
आँख नीची कर
राह को तकने 
लगते थे

ओ मेरे
बिछड़े हमराही
आ कर देख
उन राहो को
जो अब बेबसी से
निहारती हे -मुझे
जब में-अकेला
लड़खाताते कदमो से
गुज़रता हूँ -उन से

            सुधीर मौर्या 'सुधीर'
संपर्क- ग्राम और पोस्ट- गंज जलालाबाद 
           जनपद - उन्नाव (उ.प.) 
           पिन - २४१५०२   
शिक्सा - बी.ऐ, प्रबंधन में पोस्ट ग्रादुअते डिप्लोमा , अभियांत्रिकी में डिप्लोमा
जन्म-  ०१/११/१९७९ , कानपूर
मोबाइल - ९६१९४८३९६३/९६९९७८७६३४

   

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