ऐ हमराही
मेरी बिछड़ी राहो के
कभी-उन राहो पे
वापस गुज़र के देख
जहाँ मेरे कदमो से
तुने-कभी
कदम मिलाये थे
राहो
के किनारे के
पेड़ो से चुन कर
हरसिंगार के फूल
जब तुम-मेरी
जेब में रखा
करते थे
मचल कर
सुनसान होते ही
राह-जब
पकरिया के
पेड की ओट में
तुम मेरे गले लगा
करते थे
बहते ही बसंती हवा
जब-तुम
शोखियों के साथ
अपने सिने से
लहरा के-आँचल
मेरे कंधे पे रखा
करते थे
और मेरे देखने पर
यूं हया से
आँख नीची कर
राह को तकने
लगते थे
ओ मेरे
बिछड़े हमराही
आ कर देख
उन राहो को
जो अब बेबसी से
निहारती हे -मुझे
जब में-अकेला
लड़खाताते कदमो से
गुज़रता हूँ -उन से
सुधीर मौर्या 'सुधीर'
संपर्क- ग्राम और पोस्ट- गंज जलालाबाद
जनपद - उन्नाव (उ.प.)
पिन - २४१५०२
शिक्सा - बी.ऐ, प्रबंधन में पोस्ट ग्रादुअते डिप्लोमा , अभियांत्रिकी में डिप्लोमा
जन्म- ०१/११/१९७९ , कानपूर
मोबाइल - ९६१९४८३९६३/९६९९७८७६३४
No comments:
Post a Comment