Sunday, 15 December 2019

मणिकपाला महासम्मत (आदिकालीन उपन्यास) - सुधीर मौर्य

किसी महान पुरुष से ही जाति या वंश की परम्परा चलती है। कभी कभी जब जाति की किसी पीढी मे कोई अन्य महान व्यक्ति जन्म ले लेता हे तो फ़िर उस वंश की आगे की पीढ़ियां उसके नाम से जानी जाती है।
शाक्यों का वो महान वंश जिसमे गौतम बुद्ध, चंद्रगुप्त मौर्य, अशोक महान और चित्तौड़ नगर का निर्माण करने वाले महराज चित्रांगद मौर्य आदि कई महान ऐतिहासिक महापुरुषों ने जन्म लिया उस महान शाक्य वंश के मूल पुरुष महासम्मत है। महासम्मत का अर्थ है, वो व्यक्ति जिसे सर्वसम्मति से राजा चुना जाए। महासम्मत का व्यक्तित्व सूर्य की भांति देदीप्यमान था इसलिए कई ग्रन्थ शाक्य वंश को सूर्यवंश भी कहते है।
बचपन के दिनों में जब मैं इतिहास के प्रति सजग हो रहा था तो मै महावस्तु अवदान, महावंश और सुमंगल विलासिनी जैसे बौद्ध ग्रंथो के संपर्क में आया। ये सभी ग्रंथ महासम्मत को जम्बूद्वीप का पहला राजा मानते है और उनकी वंशावली प्रस्तुत करते है।
बौद्ध ग्रंथ महावंश के अनुसार महासम्मत के पश्चात क्रमश: रोज, वररोज, कल्याणक (प्रथम और द्वुतीय), उपोषथ, मान्धाता आदि से ओक्काक के राजा बनने तक का वर्णन है। इतिहास साक्षी है कि यही ओक्काक जिन्हे कुछ ग्रंथ भ्रमवश इच्छवाकु कहते है उन्ही के वंश में ग्यारहवे महासम्मत काल में गौतम बुद्ध ने जन्म लिया।
बौद्ध ग्रंथ इन महासम्मत के पराक्रम एवं इनके काल में घटित घटनाओ का वर्णन करते हुए उनके पुत्र एवं पत्नी की चर्चा करते है। रोज महासम्मत के पुत्र थे और विष्णु की भगिनी मणिकपाला इनकी पत्नी।
बौद्ध ग्रंथ अब तक हुए २८ बुद्धो के बारे में बताते है। इनमे गौतम बुद्ध, कस्सप बुद्ध, कोनगमन बुद्ध और ककुसंध बुध ये चार प्रमुख है। ककुसंध बुद्ध का काल आठवे महासम्मत के वंशकाल से संबंधित है। मैने इसी काल, ककुसंध बुद्ध और महासम्मत को केंद्र में रख कर इस आदिकालीन उपन्यास को लिखने का प्रयास किया।
उपन्यास कैसा बन पड़ा, मैं अपने प्रयास में कितना सफल रहा ये तो आप सब सम्मानित लोग ही बतायेगे।
महासम्मत और बुद्ध को शीश नवाते हुए आपका
सुधीर मौर्य, मुंबई

Sunday, 21 July 2019

स्वपन में स्वपन मेरा पालती है - सुधीर मौर्य

स्वपन मे स्वपन मेरा पालती है
मेरी आँखों में आकर झांकती है।

वो लड़की गॉव की उडती हवा सी
कभी चंचल कभी अल्हड़ जरा सी
कि उसकी देह पर तिफ्ली का मौसम
युगुल आंखें किसी काली घटा सी।
वो एक बहती हुई अचिरावती है
स्वपन में स्वपन मेरा पालती है।

उसकी बाते किसी नटखट के जैसे
उसकी पलकें किसी पनघट के जैसे
उसके माथे पे सूरज का ठिकाना
बदन लचके किसी सलवट के जैसे।
मेरे सर पर वो साया तानती है
स्वपन में स्वपन मेरा पालती है।

जी करे उस पे कोई गीत लिख दूं
उसके पॉव मे संगीत लिख दूं
जो उसकी रूसवाई का डर न हो
अपना उसे मै मनमीत लिख दूं।
कभी देवल कभी पदमावती है।
स्वपन में स्वपन मेरी पालती है
मेरी आँखों में आकर झांकती है।
--सुधीर मौर्य

अचिरावती - रावी नदी का पौराणिक नाम
देवल - आनिहल्वाड की राजकुमारी देवलदेवी

Wednesday, 2 January 2019

रावण वध के बाद (पौराणिक उपन्यास) - सुधीर मौर्य


#रावण_वध_के_बाद 
नायिका प्रधान पौराणिक उपन्यास है। उन्नत रक्ष संस्कृति के विनाश के उपरांत लंका की राजसी स्त्रियों ने जिस प्रकार अयोध्या और किष्किंधा से नियंत्रित विभीषण के शासन के विरुद्ध सतत संघर्ष किया, उसकी रोमांचक गाथा इस उपन्यास में कही गई है। 
रावण की दुतीय पत्नी धन्यमालिनी और कुम्भकर्ण की पत्नी वज्रज्वाला इस उपन्यास की केंद्रीय नायिका है इसके अतरिक्त रावण की पुत्री अतुलय और पत्नी श्रीप्रभा व मंदोदरी किस भांति विभीषण का विरोध करती है ये इस उपन्यास के पृष्ठों में अंकित हैं। 
रावण वध के बाद उसके जन्मे दो पुत्र बैनासुरिवंश और अरिमर्दन इस उपन्यास के नायक है। 
ये उपन्यास विश्व पुस्तक मेला 2019 में (दिनांक 05 जनवरी से 13 जनवरी 2019 तक) सुबह 10:30 बजे से शाम को 7:30 बजे तक प्रगति मैदान के गेट नंबर-10 के पास हॉल नंबर- 12/12A में ■ किताबगंज प्रकाशन ■ की स्टाॅल नंबर-92 पर उपलब्ध है। 
सुधीर

Saturday, 4 August 2018

सदियों पुरानी अनार्य स्त्री (कविता) - सुधीर मौर्य

 
तुमने बड़ी असभ्यता से
हमें घोषित कर दिया था असभ्य
तुहारी इस घोषणा के साथ ही है
तुम बन गए थे सभ्यता के प्रतीक
और फिर हमें असभ्य बताकर
तुमने छीन लिए हमसे
हमारे ही पहाड, जंगल और ज़मीन
घोषित करके नदियों को पवित्र
तुमने प्रतिबंधित कर दिया जल छूना तक हमारे लिए 
तुमने न केवल व्यंग्य कसे
हमारे रंग और देह पर
अपितु अपने मनोरंजन और सामर्थ्य प्रदर्शन के लिए
तुमने काट लिए
हमारे कान, नाक, हाथ, पाँव और स्तन
खुद को आर्यश्रेष्ठ और पुरोहित की घोषणा के साथ ही
तुम्हे मिल गया था अधिकार
हमें दासी बनाने और हमसे शैय्या सहचरी का
तुमने उजाड़ दिए छल से
हम द्रविड़ो के हँसते खेलते गढ़
तुम्हरी लिप्सा के भेंट चढ़ गए
शंबर, वृत्र , बलि और रावण से
न जाने कितने अनार्य
तुमने घोषित करके सरस्वती को देवी
छीन लिया हमसे लिखने पढ़ने का अधिकार
और बना लिया हमें
अपना जरखरीद दास सदा - सदा के लिए 
और हमने भूल कर अपन यश गौरव
कबूल कर ली तुम्हारी दासता
अपने भाग्य को सोया मानकर
किन्तु सुनो !
अब हमारे सन्तानो की नींद टूट चुकी है
बस प्रतीक्षा है उनके उठ कर खड़े होने की।
--सुधीर मौर्य 

Saturday, 7 July 2018

संजू (लघुकथा) - सुधीर मौर्य

उस समय मैं अपने लिखे जा रहे उपन्यास के किसी पात्र के ध्यान में मग्न था और मेरे होठों से हाँ निकल गया था जब उस लड़की ने मुझसे पूछा 'क्या तीन सौ से ज्यादा लड़कियों के साथ सेक्स संबंध रखने वाले संजय दत्त को तुम अच्छा समझते हो ?'
'मेरे जवाब पर जब उसने आँखे तरेर कर पूछा कैसे ?' तो बेध्यानी में दिए गए अपने जवाब के जवाब में मैने कहा 'ठीक वैसे ही जैसे अपने हरम मे पांच हजार स्त्रियों को जबरन रखने वाले अकबर को हम महान कहते हैं।'
मेरे जवाब के बाद से उस लड़की की तरेरी हुई आँखों में मुझे मरोड़ देने वाले भाव उभरे थे।

--सुधीर मौर्य 

Friday, 6 July 2018

अड्डेबाज़ी (लघुकथा) - सुधीर मौर्य

'मेरे ग्रुप को ज्वाइन करोगी ?' लड़के ने पूछा।
'नो मैं ग्रुपबाजी नहीं करती।' लड़की बेपरवाही से बोली।
'फिर क्या करती हैं ?' लड़के ने साहस बटोर कर पूछा लिया।
'अड्डेबाज़ी।' लड़की का स्वर पहले से भी ज्यादा बेपरवाह हो चला था।
--सुधीर मौर्य  

Tuesday, 9 January 2018

आनिहलवाड की राजकुमारी देवलदेवी पर आधारित उपन्यास।

मेरी स्वर्गीय मित्र निधि जैन ने मेरे उपन्यास देवलदेवी पर ये समीक्षा लिखी थी। अब जबकि इस उपन्यास का दूसरा संस्करण आया है तो मुझे निधि की कमी बहुत खल रही है।
देवलदेवी की प्रीबुकिंग अमेज़न पर शुरू है।
फेसबुक और whatsapp पर जुड़ने के बाद से मेरा मोबाइल हाथों से छोड़ना अत्यंत दुष्कर हुआ है। घर के काम करते हुए भी बीच बीच में मोबाइल उठा कर देख ही लेती हूँ। 
ऐसे में किताबें पढ़ना मेरे लिए चुनौती है। कुछ 15 दिन पहले 4 किताबें खरीदीं थीं जिनमे से अब तक बस खलील जिब्रान की ही एक कहानी पढ़ी।
ऑनलाइन बुक्स के जरिये मैंने दिसम्बर में प्रेमा,श्रीकांत दो उपन्यास और कई सारी कहानियाँ पढ़ीं..तभी दो बुक्स खरीदीं थीं गोदान और प्रेमाश्रम..गोदान तो तो दिलचस्प लगी..खत्म होने के बाद भी यही लगता रहा कि अभी और होता तो पढ़ा जाता। पर यहाँ दो महीने से प्रेमाश्रम खत्म करने की सोच रही हूँ पर नही हो पाता। वैसे भी इतनी मोटी मोटी किताबें और उपन्यास देखकर ही हाथ पाँव फूल जाते हैं मेरे 
ऐसे में एक लेखक महोदय मुझे इनबॉक्स में अपने एक उपन्यास की पीडीएफ फ़ाइल देते हैं  और बोलते हैं पढ़कर प्रतिक्रिया दीजियेगा  मन में तो आया कि कुछ बक दूँ.. पर घर आये मेहमान की इज्जत भी करनी चाहिए तो उनको बोल दिया 'जी जरूर'..फिर सोचा देखूं तो क्या है इसमें..पीडीएफ खोली #देवलदेवी दो तीन पेज नीचे आई 'उफ़ ये तो इतिहास से सम्बंधित था..'नो वे,किसी कीमत पर नही पढूंगी' सोच लिया था.. एक फ्रेंड Vivek को भी भेज दिया कि शायद ये पढ़कर प्रतिक्रिया देगा तो वो ही लिख दूंगी  ..
खैर शाम को fb पर कोई ख़ास नोटिफिकेशन नही थे तो सोचा थोडा नावेल देख ही लिया जाए.. आंय..ये क्या.. शुरू हुआ तो खत्म करने तक सांस भी न ली.. छोटा था रुचिकर था.. भाषा सुंदर.. कथानक ऐतिहासिक.. नायिका में ठोस नायिका वाले गुण.. जिसमे स्वधर्मपालन की जिजीविषा बचपन से ही दिखती है। मुझे बहुत पसंद आया यह उपन्यास इसलिए खत्म करने के बाद तुरंत लिख रही हूँ।
लेखक समीर ओह्ह सॉरी Sudheer Maurya को बहुत बहुत बधाई.. पहली बार किसी लेखक को मुझसे एक उपन्यास वो भी एक सिटींग में खत्म करवाने के लिए भी बधाई