Sudheer Maurya
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आज की रात भी
काली ही गुजरी
घना काला अँधेरा
क्यों लिख दिया
मेरे मौला
नसीब में मेरे
मेंने तो सुना था
की आसमान की धरती पर
सरहदे नहीं होती
वहां
कोई
हिन्दू या मुसलमान नहीं
वहाँ कोई
सिंध या हिन्द नहीं
तू ऊपर है
इन रिवाजों से
आखिर तू
आसमान वाला है
पर फिर क्या हुआ
जो मेरी आवाज़
तेरे कानो पे
दस्तक न दे सकी
ऐ मेरे मौला
ऐ मेरे ईश्वर
में अब भी
तुझे
आसमान वाला ही
समझती हु
पर तूने क्यों
मुझे धरती का
मजलूम न समझा
ऐ आसमान वाले
नाम याद है
न मेरा
में रिंकल कुमारी हु
या फिर
तूने भी
मेरा कोई और नाम
रख लिया है
सुधीर मौर्य 'सुधीर'
गंज जलालाबाद, उन्नाव
209869

badhiya
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति.
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