Thursday, 18 October 2012

हुकुम उदूली




राजा बनते ही उसने फरमान जारी कर दिया जो जिस के घर में कीमती माल ओ असबाब है सब राजा के खजाने में जमा करवा दे. प्रजा को कीमती सामान रखने का भी हक नहीं है, उन्हें मिटटी के बर्तन तांत के कपडे में गुजरा करना चाहिय. क्योंकि सब कीमती सामान राजा और उसके बाद उसके दरबारियों का ही हक है.

प्रजा को घर पर भी फलदार पेड़ लगाने की मनाही थी. हाँ वो जंगली बेर,  शहतूत और मकुइया के पेड़ घर पर लगा सकते थे.

आज दोपहर को राजा की पुलिस मैकू को उसके घर से पकड़ के ले गई, राजा के सामने पेश करके जुर्म सुनाया, इसके घर में रेशम का धागा पाया गया. राजा चुंक पड़ा इतना बड़ा जुर्म. इसे कारागार में डाल दो इसने हुकुम उदूली की है.

कारागार में मैकू सोच रहा था उसने तो केवल घर में शहतूत का पेड़ लगाया था उस पर रेशम का धागा कोन डाल गया.    


सुधीर मौर्या 'सुधीर'
ग्राम और पोस्ट- गंज जलालाबाद
जनपद- उन्नाव
पिन- २०९८६९
फोन- ०९६९९७८७६३४ / ०९६१९४८३९६३


Friday, 12 October 2012

बलात धर्मपरिवर्तन- देवलदेवी और रिंकल कुमारी













कोई सात सो साल के अंतराल पर घटी दो घटनाएं. एक सात सो साल पहले तब जब भारत, पाकिस्तान और बंगलादेश एक हुआ करते थे, और तो और कुछ भाग तब हमारे अधिकार में अफगानिस्तान का भी रहा करता था. शायद हमारे अधिकार में नहीं वस्तुता : उनके अधिकार में जो शासक थे. उस वक़्त हम पर शाशन करने वाला सुल्तान था अलाउद्दीन खिलज़ी. जिसे अपने हरम में स्त्रियों की संख्या बढाने में अद्भुत आनंद आता था. इसी उद्देश्य के लिए वो भारत के विभिन्न हिस्सों में भटकता फिरा. चाहे वो राजस्थान का चित्तोर हो या फिर गुजरात का पाटन.

यहाँ कुछ इतिहासकार मेरे से असहमत हो सकते हैं, की  अल्लाउदीन ने सिर्फ वासना पूर्ति के लिए ये युद्ध नहीं किये. में इस तर्क से पूरी तरह से सहमत हु. वास्तव में उस सुल्तान में योनी सुख के साथ-साथ धन और साम्राज्य की भी लालसा थी. हा एक बात ओर है , उसका प्रन्शंश्क न होते हुए भी में ये कहूँगा की वो एक महान सेनानायक था.     

पर में सिर्फ उसके नारी देह के सुख के लिए किये गए आताचार के विरुद्ध इस वक़्त इसलिए लिख रहा हूँ क्योंकि इस के परिणामस्वरूप न जाने कितनी लड़कियों को नरक की यातना झेलनी पड़ी.जिसमे  उनका सिर्फ इतना कसूर था की वो जन्म से लड़की थी. उन्हें खिलोने की तरह एक बिस्तर से दुसरे बिस्तर पर धकेला गया. संधियों के वक़्त उन्हें दुश्मनों के आगे भी परोसा गया. ये सब इसलिए उन्हें सहना पड़ा क्योंकि वो स्त्रिया थी. सो उन्हें पुरुष वर्ग की महत्वाकांक्ष की भेंट तो चड़ना ही था.

अब कुछ चर्चा करेंगे गुजरात की राजकुमारी देवलदेवी और सिंध की फूल सी लड़की रिंकल कुमारी के दुर्भाग्य पर.

दोनों के वक़्त के बीच लगभग ७०० साल का फासला है पर ये फासला किसी भी तरह से लड़कियों पर हो रहे आत्याचार और उन्हें योनी-दासियाँ बनाने से न रोक सका है. आज भी उन्हें कभी गरीबी के नाम पर तो कभी धर्म के नाम पर अगुवा कर लिया जाता है और फिर उनका जबरन धर्मपरिवर्तन करके झोंक दिया जाता है बिस्तर पर बनी नरक की भट्टियों में.

* गुजरात से अपने राज्य और अपनी बीवी दोनों को गवाने के बाद जब रजा कर्णदेव बग्लाना में रूककर अपनी अल्पायु पुत्री के विवाह का प्रबंध देवगिरी के राजकुमार शंकरदेव के साथ कर रहा था तब तुर्क सेना ने अचानक धावा बोलकर देवलदेवी का अपहरण कर लिया और उसे तुरंत देल्ही भेज दिया जहाँ उसका जबरन धर्म परिवर्तन करके उसकी इच्छा के विरुद्ध एक नशेडी शहजादे के साथ रहने और उसकी योनी - दाशी बनने को मजबूर कर दिया गया.   

* सिंध के एक शहर मीरपुर में रहने वाली एक मासूम लड़की रिंकल जो उस वक़्त अपने भाई की होने वाली शादी की तय्यारिओं में खुश थी, अचानक एक सुबह मियां मिठो और उसके गुंडों ने उस बेचारी का अपहरण कर लिया. उसी दिन उसका जबरन धर्मपरिवर्तन करके उसे एक मुस्लिम लड़के नवेद शाह की योनी - दासी बना दिया गया, ये बात अलग है की उस वक़्त बेचारी रिंकल रो-रो कर इसका पुरजोर विरोध करती रही.  

* देवलदेवी हर तरह से मिन्नत की पर उसकी एक न सुनी गई और देल्ली सल्तनत ने उसे हरम में रहने पर मजबूर कर दिया.

* रिंकल ने हाई कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक चिल्ला-चिल्ला के अपनी माँ के पास रहने का अनुरोध किया पर सो रही न्याय की देवी ने उसे मियां मिथ्ठो के बनाये  हरम में भेज दिया.
  

 * देवल देवी के फर्जी पति खिज्र खान ने  तब के लेखक को धन दौलत और राजकीय हुक्म देकर अपनी और देवलदेवी की झूटी प्रेमकहानी 'आशिका' लिखवाई.

* रिंकल के अपहरंकर्तावं नेकुछ मीडिया वालो के सामने रिंकल को उसके माँ-बाप को जान से मर डालने  की धमकी देकर उससे झूठा ब्यान दिलवाया.

* देल्ही सल्तनत में हुई उथल-पुथल के कारण मुबारक ने अपने बड़े भाई को अँधा कर के राज्य हथिया लिया साथ ही साथ उसने देवलदेवी को भी अपनी रखेल बनने के लिए मजबूर कर दिया.

* यकीनन (खुदा न करे) मिया मिथ्ठो के हरम में रिंकल के साथ भी एसा ही हो रहा  होगा. 

वक़्त ने फासला जरूर तय कर लिया है पर लड्कियो को  अपने सुख का साधन अब भी समझा जाता है. उनके दर्द के बारे में कोई नहीं सोचता. उन्हें इस धर्म की वेदी पर कुर्बान कर दिया जाता है....

ये सब तब तक होता रहगा...जब तक हम सोते रहंगे...


सुधीर मौर्य 'सुधीर'    



Monday, 8 October 2012

काव्य संग्रह 'हो न हो' की दिलबाग विर्क के द्वारा समीक्षा..




कविता संग्रह ------ हो न हो 
कवि ----- सुधीर मौर्य सुधीर 
प्रकाशक -- मांडवी प्रकाशन , 
                 गाजियाबाद 
पृष्ठ ---- 128
मूल्य -- 100 रु 
हो न हो - युवा कवि सुधीर मोर्य सुधीर का तीसरा काव्य संग्रह है । यह उनकी पांचवीं पुस्तक है । कवि के अनुसार वे गुप्त, पन्त, निराला और दिनकर जी से प्रभावित हैं । उनके खुद के अनुसार इस संग्रह की रचनाएं उनके पहले दो संग्रहों की रचनाओं से बेहतर हैं ।
                  हो न हो वास्तव में पठनीय काव्य संग्रह है जिसमें मुक्त छंद कविता, तुकान्तक कविता और गीत हैं । पहली नजर में यह प्रेम काव्य है जिसमें प्रेमिका की खूबसूरती का निरूपण है, प्रेमिका की याद है, प्रेमिका की बेवफाई है अर्थात संयोग वियोग दोनों में कवि ने कविता लिखी है । गरीबी और जाति प्रेम में बाधक है । कविताओं में इस स्थिति का वर्णन करके कवि समाज का कुरूप चेहरा दिखाता है ।
                  हो न हो शीर्षक को उन्होंने ने कई कविताओं में प्रस्तुत किया है । वे कहते हैं-
 हो न हो / चढने लगा है /
प्रीत का रंग / किसी का इन दिनों  ( पृ - 15)
प्रेम की अभिव्यक्ति न कर पाने वाली युवती का चित्रण वे यूं करते हैं -
हो न हो / करती थी वो 
मूक प्रेम मुझसे । ( पृ - 16 )
कुम्हलाई सूरत और नीर से भरे नयन कह रहे हैं -
खाया था उसने / हो न हो / प्रेम में फरेब 
किसी से इन दिनों  ।  ( पृ - 17 )
नए प्रेमी की ओर झुकाव का वर्णन इस प्रकार है -
हो न हो / वो सवार है / प्रेम की 
दो नाव में इन दिनों ।  ( पृ - 18 )
ऊँची जाति की लडकी जब नौकर के हाथों दिल की बाजी हार जाती है तब यही होता है -
कल शाम नहर के बाँध में / उसकी ही 
लाश पाई गई / वो रो न सकी / 
कुछ कह न सकी /उसकी आँखों की नदिया 
हो न हो / शायद सूख गई ।
ऊसर में कांस फूलने को वे व्यंग्य के रूप में प्रस्तुत करते हैं । गरीब कन्या की दशा पर वे कहते हैं - 
वो बेबस चिड़िया / फडफड़ाती हुई /
दबंगों के हाथों में झूल रही थी / उस घड़ी गाँव में 
ऊसर में / कांस फूल रही थी । ( पृ - 22 )
गरीब राम पर अमीर रावण भारी पड़ता है -
जब बाँहों में रावण के / एक सीता / राम की खातिर 
झूल रही थी / तब उस कमरे के बिस्तर पर 
ऊसर में कांस फूल रही थी ।
गाँव का लम्बरदार जब मनपसन्द शिकार पा जाता है तब -
खून टपकते बदन से / अपने/ जब वो /
झाड धूल रही थी / तब उसके कमरे के बिस्तर पे
ऊसर में कांस फूल रही थी ।
गरीबी और दलित होने का दुःख जगह-जगह बिखरा पड़ा है -
वो थी दलित / यही उसका अभिशाप था ।
जातिवाद का चित्रण वो यूं करते हैं -
एक था बेटा / जमींदार का /
और एक का बाप / हाय चमार ।
गरीब को सपने देखने का हक नहीं -
बिखरे ख्वाबों की किरचें हैं / संभाल कर रखो /
तुम्हें ये याद दिलाएँगे / कि मुफलिस
आँखों में ख़्वाब / सजाया नहीं करते । ( पृ - 47 )
गरीबी प्रेम में बाधक है -
न रक्स रहा, न ग़ज़ल रही / हाय जफा ही काम आई /
भूल के प्यार गरीबों का / अपनाया महल उसने । ( पृ - 31 )
ऐसा  नहीं कि गरीबों को प्रेम नहीं मिलता लेकिन दुर्भाग्यवश ये मिलता थोड़े समय के लिए है । कवि कहता है-
यूं लगा की मुकम्मल मेरा अरमान हो गया 
मेरे घर में दो घड़ी जो चाँद मेहमान हो गया ।
चलते ही ठंडी हवा फिर हाय तूफ़ान हो गया 
ऐ मुफलिसी ये क्या हुआ / ऐ बेबसी ये क्या हुआ । ( पृ - 56 )
गरीबी के अतिरिक्त प्रेम की विफलता के ओर भी कई कारण हैं । खुद की नाकाबिलियत भी इनमें एक है -
सच इतनी प्यारी चीज / बेनसीबों के लिए /
नहीं होती । ( पृ - 74 )
भगवान की नाराजगी भी एक कारण हो सकती है -
हे कपिलेश्वर - दोष क्या है मेरा / क्या आपके दर पे आकर
उन्हें मुहब्बत की नजर से देखना / क्या यही है
आपकी नारजगी का सबब है । ( पृ - 84 )
बेवफाई सबसे बड़ा कारण है और यह कारण अनेक कविताओं का वर्ण्य विषय है -
रकीबों का थाम के दामन हंसे तुम
मेरे प्यार की बेबसी पर हंसे तुम । ( पृ - 57 ) 
बेवफा की बेवफाई आग लगाती है -
वो डोली तेरी वो सजना तेरा
वो मय्यत मेरी वो मरना मेरा
कैसे आग लगाई / अल्लाह-अल्लाह । ( पृ - 80 )
कवि खुद के और अपनी प्रेमिका के प्यार की तुलना करता है -
मैंने अपना तुझे माना / तूने सपना मुझे समझा
बस इतना-सा फर्क था / तेरी मेरी मुहब्बत में । ( पृ - 127 )
बेवफा प्रेमिका की याद प्रेमी को दिलाने के बहुत से कारण कवि को दिखते हैं -
जब कोई लडकी / प्रेम में फरेब /
निभाती है / तू मुझे याद आती है ।
तितली भी कवि को बेवफा लगती है -
देखकर तितली / मुझे न जाने क्यों
तेरी याद आ गई ।
बेवफा को देखकर वो कहते हैं -
काश वो भी / पैदा होता कीचड़ में ।
टूटा प्रेम कवि को निराश करता है । यह निराशा मोमबत्ती के माध्यम से झलकती है -
अँधेरे दूर करने की कोशिशें / बेकार ही हैं । ( पृ - 81 )
टूटे प्रेम ने कवि को इतना सिखा दिया है की वह किसी हसीन को अब तवज्जो नहीं देता । हाँ, इतना उसे जरूर लगता है कि यदि ऐसा कुछ वर्ष पहले हो जाता तो -
शायद तब / ये शफक ये शब
मेरे तन्हा न होते । ( पृ - 82 )
मुहब्बत की हार ने उसे जीवन में भी हरा दिया है -
अगर हम मुहब्बत के मारे न होते
तो गर्दिश में अपने सितारे न होते । ( पृ - 58 )
वो खुद भले प्रेमिका को याद करते हैं मगर प्रियतमा को यही कहते हैं -
कभी दिन में याद आये जो हम
तब तस्वीर मेरी जला देना तुम । ( पृ - 87  )
प्रेमिका की याद कई रूप में उन्हें सताती है -
शाम / जब कभी / छाँव-धूप से
छिपयाती है / तू मुझे याद आती है ।
याद के डर से जाम पकड़ने से भी कवि डरता है -
अब तो हाथ में / जाम लेने से भी / डर लगता है
न जाने क्यों / तेरा अक्स / मुझे अब
उसमें नजर आता है ।
चीजें नहीं बदली लेकिन सब कुछ बदला बदला लगता है जब -
तभी एहसास हुआ / कुछ तो बदल गया
क्योंकि / मुझे चाउमीन / यह आवाज सुनाई न दी । ( पृ - 76 )
याद आने पर कवि अपनी दशा का यूं ब्यान करता है -
दिन गुजरा जब रो रो के / और आँखों से बरसात हुई । ( पृ - 20 )
कवि अपने अतीत को भुला नहीं पाटा और वही गीत बन जाता है - 
मैं गीत लिख रहा हूँ अपने सुनहरे कल के 
लगते थे तुम गले जब मेरे सीने से मचल के । ( पृ - 67 )
कवि की पुकार कोई नहीं सुनता -
लो बादलों के पार गई दिल की मेरी आह 
फिर भी बेखबर है वो मेरा हमराह । ( पृ - 59 )
प्रेम दुष्कर है और प्रेमी को पाना और भी दुष्कर । कवि के सपने भी यही बताते हैं -
कल रात ख़्वाब में / जब मैंने पहाड़ पे चढ़ के 
सूरज को हाथ में पकड़ा / यूं लगा तुम्हें पा लिया ( पृ - 43 )
तभी तो प्रेमी प्रेमिका को पाकर उससे दूर नहीं होना चाहता -
रुक जाओ कुछ पल अभी अरमान अधूरा है 
गुजरने वाला वो हद से तूफ़ान अधूरा है ।  ( पृ  - 49 )
कवि का मानना है कि प्रेम एक जादू है और इसमें डूबे रहने को मन करता है , प्रियतमा भाग्य बदलने का सामर्थ्य रखती है -
उनके कदमों का लम्स 
मेरी झोंपडी को महल कर गया । ( पृ - 94 )
प्रियतमा की सुन्दरता का वर्णन करने में कवि का मन खूब रमा है -
तेरी ये मरमरी बाहें, तेरे ये चाँद से पाँव 
कि अब्र से भी बढकर है तेरे जुल्फ की छाँव 
कमर, चोटी और बोल यूं लगते हैं -
तेरी पतली कमर लचकती डालियाँ / तू बोले तो लगता बजे घंटियां 
वो कमर पे तेरे झूलती चोटियाँ । ( पृ - 105 )
आँखें, अधर और यौवन -
वही सुरमई आँखें / वही मदिर अधर 
और वही / खिलता यौवन ( पृ - 124 )
होंठ रस के सोते हैं -
तेरे होंठों से / रस के सोते बहते हैं ( पृ - 32 )
कवि इस सुन्दरता को देखकर इतना मचल उठता है की वह कह उठता है -
बिना रुखसार के बोसे, ये तेरा मेहमान अधूरा है ( पृ - 49 )
कवि को सुन्दरता का वर्णन करते हुए दुविधा भी होती है-
तुझे शमा कहूं या शबनम कहूं 
प्रकृति का चित्रण कवि ने विभिन्न रूपों में किया है । यहाँ वे प्रकृति से पूछते है कि  मेरी प्रियतमा कैसी है तो प्रकृति से ही वे ये भी पूछते हैं कि मेरी कौन हो तुम । कवि का प्रेमी मन बड़ी सहज ख्वाहिश रखता है -
कुछ फूल हैं / मेरे दामन में / मैं सोचता हूँ 
इस सावन में / इनको तुम्हें अर्पित कर दूं 
अरमान यही बस है मन में 
वह खुद को साधारण आदमी मानता है और प्यार उसकी मंजिल है -
हाँ मैं आदमी हूँ / जो तुमसे इश्क करेगा सादगी भरा 
तुम भूले न होगे कविता में कवि भारतीय परम्परा के भी दर्शन करवाता है -
वो गली जहां/ तुमने अपने कोमल हाथों से 

पहली बार मेरे / पैरों को स्पर्श किया था 
हालांकि इस कविता संग्रह का मूल विषय प्रेम है लेकिन कवि निराला की कुकुरमुत्ता कविता की तरह कैक्टस को धन्य मानता है , कमल को उच्च वर्ग का प्रतीक और पोखर को मजदूर वर्ग का प्रतीक मानता है । वह यह भी कहता है - 
इस मुहब्बत के सिवा जहां गम और भी हैं ।
कवि ने ग्रामीण जीवन के सटीक चित्र प्रस्तुत किए हैं - 
गाँव के पनघट पर ये कलरव / खन खन खन खन बजे चूड़ियाँ 
दे दे झूंक भरे सब पानी / टन टन टन टन बजे बाल्टियां ।
पछुवा शीर्षक इस गीत में कवि ने ध्वन्यात्मक शब्दों से कमाल किया है । कहीं कहीं नीरस वर्णन भी है -
वो छवि जे के टेम्पल की / वो पी पी एन का कैम्पस 
वो कल्यानपुर की बगिया । 
कुछ कविताओं को उर्दू शब्दावली बोझिल बना रही है । लेकिन उपमा, उत्प्रेक्षा, अनुप्रास जैसे अलंकारों का प्रयोग बड़ी खूबसूरती के साथ हुआ है । एकावली अलंकार का सुंदर उदाहरण देखिए  -
नदी पे / तैरते अंगारे / उन अंगारों से निकलती 
धुंए की स्याह लकीर / उन लकीरों में /
दफन होते मेरे ख़्वाब / उन दफन ख़्वाबों में 
भटकती मेरी रूह ।
सामन्यत कविताएँ मध्यम आकार की हैं , लेकिन सितारों की रात एक लम्बी कविता है और बदहाल कानपुर में तीन क्षणिकाएं हैं । कवि मध्यम आकार की कविताओं में ज्यादा सफल रहा है । 
              संक्षेप में कहें तो हो न हो संग्रह सुधीर जी का सुंदर प्रयास है । साहित्य जगत को उनसे ढेरों आशाएं हैं ।
                    --------- दिलबाग विर्क 

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Tuesday, 2 October 2012

प्रियंका चोपड़ा - कदम ऊँचाइयों की ओर...



जन्मदिन-8 जुलाई
जन्मस्थान- जमशेदपुर
कद- 5 फुट 9 फुट
कैरियर के शुरूआती लम्हों में ही ऐतराज में निगेटिव भूमिका निभाकर फिल्मी पंडितों का चौंका देने वाली प्रियंका चोपड़ा की गिनती आज इंडस्ट्री की टॉप हिरोइनों में होती है। चार वर्षो के छोटे से फिल्मी सफर में ही प्रियंका चोपड़ा ने दर्शकों के बीच अपनी प्रभावी पहचान बनायी है। आज उनके पास कई बड़े बैनर की फिल्में हैं। मिस व‌र्ल्ड प्रतियोगिता में भारत का परचम लहराने वाली प्रियंका चोपड़ा का फिल्मी कैरियर आज अपने उफान पर है। यह प्रियंका चोपड़ा की लोकप्रियता और उनकी फिल्मों को मिल रही सफलता का ही नतीजा है कि कई बड़े निर्माता-निर्देशक उन्हें अपनी फिल्म में साइन करने के लिए लालायित हैं।
निर्माताओं की इस पहल में रंग दे बसंती और मेट्रो जैसी फिल्में बनाने वाली प्रतिष्ठित प्रोडक्शन कंपनी यूटीवी मोशन पिक्चर्स ने प्रियंका चोपड़ा के साथ एक बड़ी डील साइन की है। प्रियंका चोपड़ा ने यूटीवी के साथ अगले चार वर्ष में तीन फिल्में करने की डील साइन की है। कृश और डॉन की दोहरी सफलता ने प्रियंका चोपड़ा की प्रसिद्धि में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है। प्रियंका हर तरह की भूमिका में स्वयं को ढाल लेती हैं चाहे वह ऐतराज की निगेटिव भूमिका हो या मुझसे शादी करोगी की हल्की-फुल्की भूमिका। प्रियंका चोपड़ा की इसी विशेषता ने उन्हें सभी वर्ग के दर्शकों में लोकप्रिय बनाया है। दरअसल, जब प्रियंका चोपड़ा ने फिल्म इंडस्ट्री में प्रवेश किया था, तभी से उनमें एक सफल अभिनेत्री की संभावनायें देखी जाने लगी थीं। उनमें ग्लैमर और अभिनय क्षमता का अद्भुत तालमेल है, वे एक आम घरेलू लड़की की भूमिका में भी उतनी ही सहज दिखती हैं, जितनी आइटम गर्ल की भूमिका में। हालांकि प्रियंका चोपड़ा की पिछली प्रदर्शित फिल्म सलाम-ए-इश्क बॉक्स ऑफिस पर असफल रही, पर इस बार भी उन्होंने अपने प्रशंसकों को निराश नहीं किया। आने वाले दिनों में वे अभिषेक बच्चन के साथ द्रोण और हरमन बावेजा के साथ लव स्टोरी 2050 में दिखेंगी। छोटे से शहर बरेली से मिस व‌र्ल्ड और फिर सफल अभिनेत्री तक के सफर में प्रियंका का आत्मविश्वास और उनके परिवार का साथ हमेशा ही उनके साथ रहा। अपने फिल्मी कैरियर की इन ऊंचाइयों को छूने के बाद भी प्रियंका चोपड़ा खुद को एक आम लड़की के रूप में ही देखती हैं।
करियर की मुख्य फिल्में
वर्ष फिल्म चरित्र
2003- द हीरो- शाहीन जकारिया
2003- अंदाज- जिया सिंघानिया
2004- किस्मत- सपना गोसाई
2004- असंभव- अलीशा
2004- मुझसे शादी करोगी- रानी सिंह
2004- ऐतराज- सोनिया राय
2005- ब्लैकमेल- मिसेज राठौड़
2005- करम- शालिनी
2005- वक्त- पूजा मिताली
2005- यकीन- सीमर ओबेराय
2005- बरसात- काजल कपूर
2005- ब्लफ मास्टर- सिमरन आहूजा
2006- आपकी खातिर- अनु आहूजा
2006- डॉन- रोमा
2007- सलाम-ए-इश्क- कामिनी
2007- बिग ब्रदर- आरती शर्मा
अन्य फिल्में- लव स्टोरी 2050, गॉड तुसी ग्रेट हो, गोल्डी बहल की द्रोण, मधुर भंडारकर की फैशन और साहब बीबी और गुलाम, दोस्ताना, बिल्लू, कमीने, वॉट्स योर राशि, अंजाना अंजानी, सात खून माफ, रा.वन, डॉन 2, अग्निपथ, तेरी मेरी कहानी, बर्फी।

Monday, 1 October 2012

ऐ रिंकल !





मैने जब भी छत पे खड़े होकर
तेरे देश से आती हवाओ से
तेरा हाल पूछा...
उन्होंने मुझे बचपन में पड़ी
उस कहानी की याद दिला दी
जिसमे एक दानव ने
कैद कर रखा था
एक राजकुमारी को 
ज़हर की अनगिनत सुइंया
चुभो कर...
जिसके 
अर्धचेतन मन और
पूर्ण अवचेतन  तन को
इंतज़ार था उसका
जो आकर  उसके शरीर में बिंधी
सुइयां निकलकर 
उसे आज़ाद करेगा 
दानव की कैद से...

ऐ रिंकल !
उस कहानी में 
राजकुमार था
पर यहाँ नहीं...
सो ऐ बहादुर लड़की
वो ज़हर भरी सुइयां
तुझे ही निकालनी होगी 
अपने शरीर से...
यकीन कर
कहानी का अंत
सुखद होना तो तय है
हमारे सामने 
उदाहरन है
कृष्ण की मित्र
द्रौपदी का
कृष्ण की मित्र होकर भी
दर दर भटकना पड़ा था उन्हें
पर अंत तो सुखद ही था न.. 

कभी वो हवा
जो आई हो मेरी दिशा से
वो बताय्गी
तेरा ये भाई, तेरा ये दोस्त
सलाम करता है 
तेरी जात को...
आज 'अमृता प्रीतम' होती
तो वारिस शाह से
तेरे लिए दुआ मांगती...
तेरी आज़ादी के खातिर
अफसाने लिखती...

ऐ रिंकल !
में जगाना चाहता हु
सोय पड़े लोगो को
उनकी कलम को
जो स्याही से 
वो इबारत तामीर करे
जिसके जलजले से
मीरपुर मेथलो की
वो इमारत भरभरा के
गिर पड़े
और उस इमारत से 
तुन बहार निकले 
अपने शरीर में
चुभी
आखरी सुई को
निकलते हुए

ऐ  रिंकल !