Tuesday, 31 July 2012

अब तलक जखम देते हैं...




मुझसे जुदा नहीं है मेरे गुलशन की हालत
खार बाकि हैं शजर में और गुलाब चले गए

अब तलक जखम देते हैं रकीब-ऐ-हयात
मेरी मय्यत पे आये आके शिताब चले गए

खुशियाँ आई तो कभी पल दो पल के लिए
गम आये तो आते बेहिसाब चले गए

तू क्या तेरा तेरा मजकुर क्या नादान 'सुधीर'  
दुनिया से एक से एक शख्स लाजवाब चले गए 

कैसी आई हवा न रही शर्मो ह्या बाकी
तंग पैरहन हैं चेहरों से नकाब चले गए...

सुधीर मौर्य 'सुधीर'
गंज जलालाबाद, उन्नाव
२०९८६९

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