सन सात सो बारह से लेकर सन दो हजार तक मतलब सिंध पर मुहम्मद बिन कासिम से लेकर कारगिल पर पाकिस्तान का हमला इन सब लड़ाइयो में हानि किसकी हुई बस हमारे देश की. क्योंकि ये सरे के सरे युद्ध हमारी ज़मी पर लड़े गए. हम जीते या हारे ये बात ही अलग हे हम हारे तो उन कारणों की विवेचना भी अलग विषय है.
सबसे ज्यादा जो सोचने की बात है वो ये है इन लड़ाइयों में नुक्सान सिर्फ हमारा ही होता था. जो सबसे ज्यादा नुकसान हुआ वो ये है की हमारी हिन्दू लड़कियों को उनके हरम में जाना पड़ा क्योंकि हार हो या जीत ये बेचारी उनकी हाथ तो लगती ही थी. बाकि नुक्सान जो हुए वो तो हुए ही.
सात सो बारह में जब मुहम्मद बिन कासिम ने रजा दाहिर की दोनों लड़कियों को अरब भेजा तो उन्होंने अपनी चालाकी से अपनी इज्जत तो बचा ली पर अरब की गलियों में उनकी लाश सडती रही. क्या लगता है कासिम सिर्फ राज्बालाओं को ले गया होगा नहीं न जाने कितनी हिन्दू लडकियों को वो ले जाया गया और उन्हें वहां दासी बनाकर भेच दिया गया.
महमूद गजनवी ने भी माल दौलत के साथ न जाने कितनी हिन्दू औरतो को गजनी ले जाकर उन्हें मंदी में बेचा और यूँ उसने भडुएगिरी से भी दौलत कमाई . पर उन औरतो का क्या हुआ होगा ये बताने की जरुरत नहीं.
११९२ में तारायण में जब हमारी सेनाये हार गई तो और सरे राजपूत खेत रहे तो महलो में रानी संयोगिता ने जोहर किया पर तमाम औरते तुर्को के हट्टे चढ़ गई और उन्हें उनकी योने दासी बन ने को मजबूर किया होगा.
देवल देवी के साथ क्या हुआ इतिहास गवाह हे पर उस वीर राजकुमारी ने केसे अपने और अपने देश के साथ हुए अत्याचार का बदला लिया ये भी इतिहास की एक मिसाल है.
लिकने जाऊंगा तो महीनो लिखते रहूँगा पर ये सब दास्ताँ ख़तम न होंगी पर फिर भी अगले कुछ दिनों में , वापस इस विषय पर चर्चा करूँगा.
ये तो एक बानगी भर है, असे ही न जाने कितनी कहानिया होंगी जिनका इतिहास में कोई ज़िक्र नहीं. और हाँ नुक्सान का ये एक ही रूप है और रूपों में जो नुक्सान हुआ वो है हमारी ही फसलों का नस्त होना, युद्ध में मारे गए इंसान, घोड़े, हाथी और खच्चरों की शवों से जो महामारी फेली वो भी हमारे नागरिको के माथे आई. पुस्तके हमारी जलाई गई विद्यालय हमरे ख़ाक हुए आदि आदि...
अस्तु : युद्ध हमारी ही भूमि पर क्यों हमारी ही लड़किया उनके हरम में क्यों...क्या हम कभी उनकी ज़मीन पर नहीं लड़ सकते क्या हम उन्हें जेसा को तेसा का पाठ नहीं पड़ा सकते..