Tuesday, 31 July 2012

अब तलक जखम देते हैं...




मुझसे जुदा नहीं है मेरे गुलशन की हालत
खार बाकि हैं शजर में और गुलाब चले गए

अब तलक जखम देते हैं रकीब-ऐ-हयात
मेरी मय्यत पे आये आके शिताब चले गए

खुशियाँ आई तो कभी पल दो पल के लिए
गम आये तो आते बेहिसाब चले गए

तू क्या तेरा तेरा मजकुर क्या नादान 'सुधीर'  
दुनिया से एक से एक शख्स लाजवाब चले गए 

कैसी आई हवा न रही शर्मो ह्या बाकी
तंग पैरहन हैं चेहरों से नकाब चले गए...

सुधीर मौर्य 'सुधीर'
गंज जलालाबाद, उन्नाव
२०९८६९

Sunday, 29 July 2012

खून टपकते बदन से अपने...उसर में कास फूल रही थी (३)...



कल माँ ने
उसको भेजा था  
कुछ कास काट कर लाने को
एक पिटारी की खातिर
शादी में साथ ले जाने को...

बिचड गई वो
सखियों से
सोच के बातें 
उल्लास की वो
सोचती और लजाती थी
करके कल्पना
मधुमास की वो...

नज़र गड़ाए था 
बहुत दिनों से , उस पर
गावं का लंबरदार एक
आज शिकारी 
के हाथों में था
मनपसंद उसका 
शिकार एक...

रो-रो के
मिन्नत हज़ार की
पावं में गिर
मनुहार की
पर लूटना 
उसकी किस्मत थी
हुई नीलाम 
उसकी अस्मत थी...

खून टपकते बदन से
अपने
जब वो
झाड धूळ रही थी
अश्क बहाते
हाल पे उसके
तब 
उसर में कास फूल रही थी...


'हो न हो' से... 
सुधीर मौर्य 'सुधीर' 
गंज जलालाबाद, उन्नाव
209869

Thursday, 26 July 2012

दो छोटी नज्में...हमराह,......नई दुनिया....



१) हमराह...

वह गली जहाँ 
से गुजरी मय्यत मेरी
वहीँ से निकले वो सज-धज के
यूँ उन्हें हमराह करने की
पूरी हुई हसरत मेरी....

२) नई दुनिया में...

वो कारवां मुहब्बत का
जब मंजिल पे पहुंचा
हमने सहराओं से देखा 
उन्हें मुस्कराते हुए
कितना बेफिक्र था
मेरे हिजर से वो
नई दुनिया में
नई खुशियाँ पाते हुए...

सुधीर मौर्या 'सुधीर'
गंज जलालाबाद, उन्नाव
२०९८६९
 
 

Wednesday, 25 July 2012

बस इतना सा फर्क था तेरी मेरी मुहब्बत में...



अभी तक महफूज़ हैं रखे
फाइलों में वो मेरी सब
मेरे हर एक ख़त का 
दिया हुआ जवाब तेरा...

महकती डायरी मेरी 
अब तलक अलमारी में रखी
जिसके पन्नों में रखा था
दिया हुआ गुलाब तेरा...

मेरे आँखों के आगे ही
तेरे सुर्ख पहिरन थे
अभी तक याद है मुझको
दूर जाना शिताब तेरा...

सबब ठुकराने का मुझको
तलाशा हर जगह मैंने
खुश्की में, दरिया में,
बातिल में,  हकीक़त में.

महावर की जगह तुने
सुनहरी पायलें मांगी
कहाँ हासिल तुझे होता
ये सब मेरी मुहब्बत में.

मैंने अपना तुझे माना
तुने सपना मुझे समझा
बस इतना सा फर्क था
तेरी मेरी मुहब्बत में....

'हो न हो' से...
सुधीर मौर्य 'सुधीर'
 गंज जलालाबाद, उन्नाव
209869


Tuesday, 24 July 2012

अदेहिक प्रेम...




कल सवेरे ख्वाब में

उन्होंने पूछी मुझ से
सत्य प्रेम की परिभाषा
कुछ पल
मौन रह गया में
उनके इस सवाल पर
जो चले गए थे 
मुझे छोड़ कर कभी
रीति-रिवाजों की
जंजीर के आगे
विवश होकर

मैंने निहारा था उन्हें
वही केस,
जो फूलों के बिना मह्कतें हैं.
वही पेशानी जो
रात की कालिमा को
बिना दीपक के
रोशन कर दे.
वही सुरमई आँखें
वही मदिर अधर
और वही 
खिलता योवन.

मैंने भी सवाल किया
मुझसे बिचड़  कर भी
केसे रह पाए 
तुम इतना सुवासित

वो बोलीं 
मैंने तो आत्मा में
धारण किया है तुम्हे
सो हर पल
तुम्हारा लम्स,
तुम्हारा एहसास
पल्लवित करता है मुझे
सजाता और सवारता है मुझे

में हस कर बोला
प्रिये
जो तुमने अपनी गोद में
मेरी आत्मा के अंश को
जन्म दिया
ओ मेरे बच्चे की माँ !
मेरी प्रियतमा !  
यही है सत्य प्रेम 
यही है अदेहिक प्रेम.

जब आँख खुली मेरी
मैंने महसूस किया था
अपने बदन पर
उसके केसरिय बदन की
गंध को.... 

सुधीर मौर्या 'सुधीर'
गंज जलालाबाद, उन्नाव
२०९८६९





Monday, 23 July 2012

कमला कुशवाहा - एक साहसी लड़की...



अपने गर्भ में पल रहे भूर्ण की हत्या न करके अविवाहित कमला ने जन्म दे कर निश्चय ही एक मिसाल कायम की है.भले ही कमला ने लड़के को जन्म प्रतिशोध की भावना से दिया हो पर उसके इस साहस की सरहाना करनी होगी..जो उसने एक बिनब्याही माँ बनकर दिया है.जबकि भारतीय समाज में कोई भी लड़की क्वांरी माँ नहीं बनना नहीं चाहती. यकीनन कोई लड़की मज़बूरी में ही कदम उठाती है. अगर पुलिस ने उसे न्याय दिलाया होता तो शायद उसे ऐसा न करना पड़ता.

कमला जनपद चित्रकूट बरगद निवासी अयोध्या प्रसाद की बेटी है. कमला ने १९ अक्तूबर को कोर्ट में मंत्री दद्दू प्रसाद और उनके पी.ऐ. पर दुष्कर्म का आरोप लगाया था.कमला के इस बयां को पुलिश ने पूरी तरह से झुठलाने का प्रयास किया था. उसे मेडिकल रिपोर्ट में गर्भवती भी नहीं बताया गया था. फिर  कमला को बेटा  केसे हो गया?  

अब ये साहसी लड़की अपने बेटे को न्याय दिलाने के लिए मंत्री दद्दू प्रसाद के डी.एन.ऐ   टेस्ट की मांग कर रही है .   

Wednesday, 11 July 2012

ख़त और लालटेन की रौशनी...


आम और महुए से
झड के आती 
हवाओं ने
जब कभी 
जिन्दगी के वर्क पलते...
...मरुस्थल में
कटहल के पेड़ों से,
उसे 
बबूल के कांटे
चुनते पाया
वो बबूल के कांटे 
जो उग आये थे
उस राह के दोनों तरफ
के मखमली पेड़ों पे
जिनके बीज 
बोये थे तुमने
अपने फरेब के साथ
मेरे जले खतों की
 उर्वरा ड़ाल के 
जो कभी लिखे थे 
मैंने लालटेन की रौशनी में
वफ़ा की स्याही से....

रात के सन्नाटें को चीरती
अर्ध चंद्रमा की
नीमरोशनी में  
अब भी आती है
आवाजे 
उन मखमली बदन
पेड़ों की
जो मुझे
मेरे ख्वाबों से
जगा देती हैं
और लगाती है
मेरे बदन पे 
वो लहू
जो रिश्ता है
उनके उन ज़ख्मो से
जो मिले हैं
उन्हें
मेरी वफ़ा और तेरे फरेब 
के आलिंगन से...

यकीन कर 
तुझे तेरी दुनिया में
हँसते पा
वो सदांए बस
मुझे जगती हैं
और सजा देती हैं मुझे
तुझे पहचान न पाने की
हर रोज़, हर दिन, हर घडी...

सुधीर मौर्या 'सुधीर'
गंज जलालाबाद, उन्नाव-२०९८६९

Saturday, 7 July 2012

कैसी है मेरी प्रियतमा...



चंद्रमा रे चंद्रमा
कैसी है मेरी प्रियतमा  

आती जो होगी वो अटारी 
नाचतें तो मोर होंगे
उसके होठों की खनक पर
कोयलों के शोर होंगे

उसकी आँखों की झलक को 

देवता भी चोर होंगे 


सूर्य की ऐ आरुनिमा
कैसी है मेरी प्रियतमा  

सूरज चुराता होगा रंग
अधरों के उसके लाली से
रोशनी तारों में आई 
उस बदन की दीवाली से
उसके खातिर फूल मांगे
प्रकृति ने बनमाली से

ओ जमी ओ आसमा
कैसी है मेरी प्रियतमा  

उस शहर उस गावं में
जुल्फों के उसके होंगे बादल
बहती होगी ठंडी हवा
जो उड़ता होगा उसका आँचल
लाज आती होगी घटा को
लगाती होगी जो वो काजल....

'हो न हो'  से....
सुधीर मौर्य 'सुधीर'

Friday, 6 July 2012

जाग हिंद जाग...




              सन सात सो बारह  से लेकर सन दो हजार तक मतलब सिंध पर मुहम्मद बिन कासिम से लेकर कारगिल पर पाकिस्तान का हमला इन सब लड़ाइयो में हानि किसकी हुई बस हमारे देश की. क्योंकि ये सरे के सरे युद्ध हमारी ज़मी पर लड़े गए. हम जीते या हारे ये बात ही अलग हे हम हारे तो उन कारणों की विवेचना भी अलग विषय है.
            सबसे ज्यादा जो सोचने की बात है वो ये है इन लड़ाइयों में नुक्सान सिर्फ हमारा ही होता था. जो सबसे ज्यादा नुकसान हुआ वो ये है की हमारी हिन्दू लड़कियों को उनके हरम में जाना पड़ा क्योंकि हार हो या जीत ये बेचारी उनकी हाथ तो लगती ही थी. बाकि नुक्सान जो हुए वो तो हुए ही. 
             सात  सो बारह में जब मुहम्मद बिन कासिम ने रजा दाहिर की दोनों लड़कियों को अरब भेजा तो उन्होंने अपनी चालाकी से अपनी इज्जत तो बचा ली पर अरब की गलियों में उनकी लाश सडती रही. क्या लगता है कासिम सिर्फ राज्बालाओं को ले गया होगा  नहीं न जाने कितनी हिन्दू लडकियों को वो ले जाया गया और उन्हें वहां दासी बनाकर भेच दिया गया.
           महमूद गजनवी ने भी माल दौलत के साथ न जाने कितनी हिन्दू औरतो को गजनी ले जाकर उन्हें मंदी में बेचा और यूँ उसने  भडुएगिरी से भी दौलत कमाई . पर उन औरतो का क्या हुआ होगा ये बताने की जरुरत नहीं. 
           ११९२ में तारायण में जब हमारी सेनाये हार गई तो और सरे राजपूत खेत रहे तो महलो में रानी संयोगिता ने जोहर किया पर तमाम औरते तुर्को के हट्टे चढ़ गई और उन्हें उनकी योने दासी बन ने को मजबूर किया होगा.
           देवल देवी के साथ क्या हुआ इतिहास गवाह हे पर उस वीर राजकुमारी ने  केसे अपने और अपने देश के साथ हुए अत्याचार का बदला लिया ये भी इतिहास की एक मिसाल  है.
           लिकने जाऊंगा तो महीनो लिखते रहूँगा पर ये सब दास्ताँ ख़तम न होंगी पर फिर भी अगले कुछ दिनों में , वापस इस विषय पर चर्चा करूँगा.
           ये तो एक बानगी  भर है, असे ही न जाने कितनी कहानिया होंगी जिनका इतिहास में कोई ज़िक्र नहीं. और हाँ नुक्सान का ये एक ही रूप है और रूपों में जो नुक्सान हुआ वो है हमारी ही फसलों का नस्त होना, युद्ध में मारे गए  इंसान, घोड़े, हाथी और खच्चरों की शवों से जो महामारी फेली वो भी हमारे नागरिको के माथे आई. पुस्तके हमारी जलाई गई विद्यालय हमरे ख़ाक हुए आदि आदि...    
           अस्तु : युद्ध हमारी ही भूमि पर क्यों हमारी  ही लड़किया उनके हरम में क्यों...क्या हम कभी उनकी ज़मीन पर नहीं लड़ सकते क्या हम उन्हें जेसा को तेसा का पाठ नहीं पड़ा सकते..

Wednesday, 4 July 2012

उसर में कास फूल रही थी (२)


पड़ने में...
होशियार था वो...
पर वो पढाई कर न सका..
हाय गरीबी के चक्कर में 
पूरे आरमान कर न सका...

हँसते-इठलाते साथ में थे
वो दोनों बचपन के 
खेलों में...
वो गरीब था झोपडी का..
वो रहती थी महलों में....

वो आज डाक्टर क्लिनिक में
वो खेत जोतता हल से था
वो स्नेह भुलाने वाली थी
वो अनजान इस चल से था...

वो एक मेडिको लड़के से
जब शादी कर 
उसको भूल रही थी...
तब उसके मन मरुस्थल के
उसर में कास फूल रही थी.....


सुधीर मौर्य 'सुधीर'

'हो न हो' से....