Sunday, 21 July 2019

स्वपन में स्वपन मेरा पालती है - सुधीर मौर्य

स्वपन मे स्वपन मेरा पालती है
मेरी आँखों में आकर झांकती है।

वो लड़की गॉव की उडती हवा सी
कभी चंचल कभी अल्हड़ जरा सी
कि उसकी देह पर तिफ्ली का मौसम
युगुल आंखें किसी काली घटा सी।
वो एक बहती हुई अचिरावती है
स्वपन में स्वपन मेरा पालती है।

उसकी बाते किसी नटखट के जैसे
उसकी पलकें किसी पनघट के जैसे
उसके माथे पे सूरज का ठिकाना
बदन लचके किसी सलवट के जैसे।
मेरे सर पर वो साया तानती है
स्वपन में स्वपन मेरा पालती है।

जी करे उस पे कोई गीत लिख दूं
उसके पॉव मे संगीत लिख दूं
जो उसकी रूसवाई का डर न हो
अपना उसे मै मनमीत लिख दूं।
कभी देवल कभी पदमावती है।
स्वपन में स्वपन मेरी पालती है
मेरी आँखों में आकर झांकती है।
--सुधीर मौर्य

अचिरावती - रावी नदी का पौराणिक नाम
देवल - आनिहल्वाड की राजकुमारी देवलदेवी