उपन्यास पहला शूद्र के साथ रामप्रसाद राजभर जी |
सप्त-सैंधव की षड्यंत्र गाथा
लेखक सुधीर मौर्या जी की सद्य: प्रकाशित कृति है !इतिहास को जितने युगो या विभागो में बांटा गया है उसमें सबकी अलग-अलग अभिरूची होती है पर इतिहास आकर्षित करता है!सप्त- सैंधव यानि सात नदियों वाला स्थान यानि पंजाब जो उनदिनों बहुत बड़ा था!इतना बड़ा कि जहां दो-दो सभ्यता अपने उत्कर्ष के बाद भूमिगत हो गयीं!
सुधीर जी ने रिगवैदिक काल की कथा को विस्तार दिया है!यहकाल ईसापूर्व तकरीबन बारह सौ साल पहिले का राहुल सांकृत्यायन ने निर्धारित किया है!पूरी पुस्तक को पढ़ने के पश्चात् सबसे पहिले मन में उन मुनियों के प्रति रोष उत्पन्न होता है जिन्हे मात्र हम मुनि मानकर आदरणीय समझा करते थे !वे वा्तव में महाषड्यंत्रकारी थे!
आज गोमांस को लेकर हो-हल्ला है पर तब लोग गोमांस भक्षी थे और सोमरस अर्थात् भांग का सेवन किया करते थे!
पहला शूद्र सुदास नामक प्रतापी व न्यायी राजा की वह कहानी है जिसे जमाना भूल गया है!सुदास के पिता दिवोदास व राजा दसरथ समकालीन थे!
मूलनिवासी पणियों और किरातों को बलात् जीतकर भूमि के साथ दूधारू पशुओ का अपहरण कर आर्यों की गाथा है जो युद्धकौशल के साथ षड़यंत्र में भी अव्वल थे!
शायद सुदास के साथ ही वैदिककाल समाप्त हुआ होगा क्योंकि उसके पश्चात जाति-व्यवस्था का जिक्र किया है सुधीरजी ने!
कुछ शब्दों के कोष्टक में अर्थ दे दिये जाते और किताब को अध्याय में विभक्त कर दिया जाता तो और उत्तम होता!
पर पुस्तक पठनीय है !रिग्वैदिक काल की कथा आज के समय में यदि पढ़ ली जाय तो समझिये की लेखक ने अच्छा व सार्थक लिखा है!
मैं बस इतना ही कहूंगा"
बहुत-बहुत बधाई बंधु सुधीर मौर्या जी को!
रामप्रसाद