Friday, 31 March 2017

ओ मेरी सुघड़ देवि ! (कविता) - सुधीर मौर्य

ओ मेरी सुघड़ देवि !

मैं कामना करता हूँ 
कि तुम लौट आओ 
मेरी ज़िन्दगी में 
और बचा लो 
मेरी बची हुई उम्र को 
शापित होने से। 

ओ मेरी सुघड़ देवि !
मैं दुआ मांगता हूँ 
सोते - जागते 
हर घडी 
कभी अपने 
तो कभी तुम्हारे देवताओं से 
कि वो भेज दें तुम्हे 
मेरे संग उस राह पे 
जिसकी मंज़िल के भाग्य में लिखा है 
कि वो तुम बिन मुझसे मिल नहीं सकती। 


ओ मेरी सुघड़ देवि !
तुम चली आना 
किसी रोज, ख्वाब के ही रस्ते 
और मुझे गढ़ना, उस लायक 
कि मै बन  संकू 
जरा सा तुम्हारे लायक। 

ओ मेरी सुघड़ देवि !
तुम पाट  देना 
मज़हब के दहकते दरिया को 
अपनी पलकों की शीतल जुम्बिश से 
और बांध लेना मुझे 
अपनी ज़ुल्फ़ों में हमेशा के लिए। 

ओ मेरी सुघड़ देवि !
देखना कहीं ऐसा न हो 
कि हमारे मज़हबों का अलग होना 
हमारी मन्नतों से बड़ा हो जाये। 
--सुधीर मौर्य  

Wednesday, 22 March 2017

मिसेज सचान (कहानी) - सुधीर मौर्य

मिसेज सचान आज मुझको दूसरी बार देख रही थी और देखते ही मुझसे मुलाकात की ख्वाहिशमंद हो उठी थी। उनकी ये ख्वाहिश मैने उनकी आँखों में बखूबी पढ़ी थी। मैं एक लेखक हूँ और लोग मुझे भावनाओ का चितेरा कहते हैं। तो भावनाओ के चितेरे रोमांटिक कहानियां लिखने वाले एक लेखक के लिए  किसी औरत की आँखों की भाषा पढ़ना कोई कठिन काम नहीं था। बल्कि ये काम उस समय अत्यंत सरल हो जाता है जब वो आँखें किसी बेहद खूबसूरत महिला की हों। सच मिसेज सचान अपनी आँखों की ही तरह एक बेहद खूबसूरत महिला थी। मैं मिसेज सचान से अपनी दूसरी मुलाकात से कहानी आगे बड़ांउ उससे पहले लाज़िमी है मैं उनसे अपनी पहली मुलाकात का ज़िक्र करता चलूँ।

मैने अपनी किताब 'स्वीट  सिक्सटीन' के प्रकाशक से पहली बार मिसेज सचान का नाम सुना था। वो उन्हें मेरी इस पुस्तक के विमोचन में बुला रहे थे। मेरी इस पुस्तक के विमोचन में कई ओर लोग भी रहे थे जीने मैं जानता था। पर मिसेज सचान मेरे लिए अनजान थी। जब मैने प्रकाशक से उनके बारे में दरयाफ्त की तो वो मेरी अज्ञानता पे हँसते हुए बोले 'प्रियजीत अब तुम अभी इतने बड़े लेखक भी नही हो जो मिसेज सचान जैसी बड़ी चित्रकार को जानने का ड्रामा करो।'
हलाकि मैं वास्तव में   किसी मिसेज सचान को नहीं जानता था जो चित्रकार हो पर उस वक़्त मैने चुप रहना ही मुनासिब समझा।   
पुस्तक के विमोचन में जब मेरी नज़र मिसेज सचान पे पड़ी तो जाने कितने लम्हे उनपर ही ठहर कर रह गई। वे तक़रीबन चालीस साल की सुगठित और गोरी देह वाली एक बेहद खूबसूरत महिला थी। यद्यपि पुस्तक विमोचन के कार्यक्रम में कई बेहद खूबसूरत लड़कियां भी आई हुई थी पर मिसेज सचान का आकर्षण कुछ ऐसा था की वहां उपस्थित हर व्यक्ति सिर्फ उन्हें  निहार रहा था, उनके करीब आने को  लालायित था, उनसे बात करना चाहता था।
मैं भी यक़ीनन मिसेज सचान की ओर आकर्षित हो गया होता जो मेरी ज़िन्दगी किसी दोशीजा के आकर्षण  से बंधी होती। यद्पि मेरी ज़िन्दगी में एक लड़की  का  आकर्षण  शामिल था फिर भी  मिसेज सचान की खूबसूरती का जादू ऐसा था कि मेरी ऑंखें कई बार मेरी इज़ाज़त के बिना ही उनकी ओर चली गई।
पुस्तक विमोचन के अपने हाथ में मेरी किताब 'स्वीट सिक्सटीन' की प्रति अपने हाथ में पकडे हुए मिसेज सचान मुस्कराती हुई मेरे सामने आकर खड़ी हो गई। 
'स्वीट सिक्सटीन' को अपने अद्भुत हाथों से मेरे सामने लगभग लहराते हुए वे बोली 'प्रियजीत ये आपकी पहली किताब होगी जो मैं पढूंगी।'
मिसेज सचान की ही तरह उनकी आवाज़ इतनी दिलकश थी कि मैं उसमे डूबकर उनकी बात का कोई जवाब तुरंत नहीं दे पाया। मुझे यूँ खामोश पा मिसेज सचान आगे बोली 'प्रियजीत क्या सिर्फ आप उपन्यास ही लिखते हो या  ... मेरा मतलब कविता, ग़ज़ल भी करते हो क्या ?' 
'नहीं मैम मेरा हाथ सिर्फ उपन्यास पे चलता है। कविता, ग़ज़ल हमसे नही बनती।' मेरी बात सुनकर मिसेज सचान अपने होठों की मुस्कान तनिक गहराते हुए बोली 'प्रियजीत जैसे ही अपने मुझे मैम कहा मैं समझ गई आप कविता, ग़ज़ल नही लिखते। क्योंकि  कवि, ग़ज़लकार मैम जैसा बोरिंग शब्द जल्दी प्रयोग नहीं करते।'
मिसेज सचान की बात में अकबका गया और कोई बात जब सूझी तो मैने कहा 'इस पुस्तक पे मुझे आपकी प्रतिक्रिया का इंतज़ार रहेगा।
'हाँ श्योर, मैं तो इस उपन्यास को आज ही पढ़ डालूंगी।'
'जी थैंक्स मिसेज सचान।अबकी बार मैने उन्हें मैम की जगह मैसेज सचान कह कर संबोधित किया था।
मेरे मिसेज सचान कहने पर उनके गुलाबी होठ तनिक गोल गए थे, वो कुछ कहना चाहती ही थी कि उन्हें प्रकाशक ने बुला लिया और बिना कुछ कहे ही मुस्कराती हुई चली गई।
उस दिन मिसेज सचान तक़रीबन पंद्रह  मिनट और उस फंक्शन में रुकी पर वो अन्य लोगो से मिलने में इतना व्यस्त थी कि मुझसे दुबारा बात ही नहीं हो पाई। मिसेज सचान के साथ वहां मौजूद लोगो को इतना व्यस्त देखकर मुझे कई बार ऐसा लगा जैसे ये प्रोग्राम मेरी पुस्तक के विमोचन का होकर मिसेज सचान की किसी पेंटिंग का हो।
खैर वहां से जाते वक़्त मिसेज सचान एक मिनट के लिए मेरे पास आई और बोली 'अबकी जब मुलाकात होगी तो मैं आपके उपन्यास स्वीट सिक्सटीन पे बात करुँगी।
जब मिसेज सचान चली गई तो मुझे भान हुआ कि सभी उनकी पेंटिग्स की इतनी तारीफ कर रहे थे और मैने उनसे इसका ज़िक्र तक नही किया। फिर मैने सोचा जब मिसेज सचान ने मुझे खुद कहा है कि वो मुझे मिलेगी तो मैं उस वक़्त उनसे जरूर उनकी चित्रकारी के बारे में बात करूँगा। बाद में मेरे प्रकाशक मित्र ने मुझे  बताया कि मिसेज सचान सिर्फ मशहूर चित्रकार है बल्कि एक बेहद कामयाब बिजनेसवोमेन भी है और काफी व्यस्त रहती है।
मेरे मित्र के ये कहने के बाद कि मिसेज सचान बेहद व्यस्त महिला है मुझे उनसे दूसरी मुलाकात की उम्मीद कम ही थी, पर आज मैने मिसेज सचान को बिलकुल तन्हा खड़ा खड़ा देखा था शहर से काफी दूर एक रिसोर्ट टाइप रेजिडेंस सोसाइटी में। सिर्फ मैने मिसेज सचान को देखा था बल्कि उन्होंने भी मुझे देख लिया था।  
ये काटेज मेरे एक मित्र की थी। मैं वैदिकालीन पे एक उपन्यास लिखना चाहता था जिसके लेखन के लिए मुझे किसी एकांत और शांत जगह की जरुरत थी। मेरी समस्या का समाधान करते हुए मेरा मित्र मुझे अपनी इस काटेज में छोड़ गया था। यहाँ आपार शांति थी। शहरों का शोरगुल बिलकुल नहीं था। मित्र के जाने के बाद मैने ज्यों ही काटेज की खिड़की खोली तो तनिक दूर सामने बने बंगले की बालकनी में मिसेज सचान को खड़ा हुआ देखा। उन्हें पहचानने में मुझे कोई परेशानी नही हुई थी। वो सुंदरता की प्रतिमूर्ति बनी खड़ी थी। लेकिन मुझे जाने क्यों वो आज मुझे किसी ठहरी हुई   नदी की तरह उदास लग रही थी।
शायद मिसेज सचान का मोबाइल बजा होगा, जो काटेज के भीतर होगा या फिर अन्य कोई कारण होगा वे अचानक ही मुड़कर बालकनी से  काटेज के भीतर जाने लगी थी। जब वो मुड़ी तो उनकी एक नज़र जरूर मेरी खिड़की से टकराई होगी तभी उन्होंने काटेज के दरवाजे पे पहुचकर अपनी मरमरी गर्दन को मोड़कर मेरी खिड़की को और देखा था। हलाकि जैसे मैं उन्हें पहचान गया था वैसे ही वो मुझे पहचान ले मुझे इसकी बिलकुल उम्मीद नहीं थी। पर मुझे देखते ही उनके होटों पे आई मुस्कान ने मुझे बता दिया था कि वे मुझे पहचान गई है।
बस मुझे देखते हुए वे एक पल को मुस्कराई और फिर काटेज में भीतर चली गई। उनके यूँ भीतर चले जाने से मेरे मन में वापस उस शंका ने जन्म ले लिया था कि मिसेज सचान ने मुझे पहचाना या नहीं।  खैर मैने अंदाज़ा लगाया कि मिसेज सचान जिस किसी भी वजह से बालकनी से काटेज के भीतर गई है उससे फारिग होकर शीघ्र ही बॉलकनी में वापस आएंगी और अपने होटों पे मुस्कान लाकर मुझे देखकर मुझे पहचान लेने की ताक़ीद कर देंगी।  इसी उम्मीद से में उनकी बालकनी को तकते हुए अपने काटेज की खिड़की पे रहा।
ज्यों ज्यों समय बीत रहा था मेरी बैचेनी बढ़ रही थी। मिसेज सचान लौट कर बालकनी में नहीं आए थी। क्या उन्होंने मुझे नहीं पहचान था  पहचान के भी उन्होंने मुझे इग्नोर कर दिया था। यक़ीनन मिसेज सचान सिर्फ एक स्थापित चित्रकार थी अपितु वे एक सफल बिजनेसवोमेन भी थी। मेरे प्रकाशक मित्र ने बताया था कि मिसेज सचान ने अपना ये बिजनेस खुद खड़ा किया है और उनके इस बिजनेस की एक ब्रांच ढाका में भी आहे। मिसेज सचान खुद महीने में एक बार ढाका जाती थी अपने बिजनेस की देखभाल के लिए।
मिसेज सचान के बालकनी में आने की वजह से मैं बैचेन जरूर था लेकिन नाउम्मीद नहीं। मुझे हलकी सी उम्मीद थी की मिसेज सचान मुझे देखने के लिए बालकनी में जरूर आएंगी। मैं अपनी एकाग्र आँखों से मिसेज सचान की सूनी बालकनी तक रहा था तभी मेरी काटेज की डोरबेल बजी। हालाकिं मेरे दोस्त ने अपनी इस काटेज में कोयल के मीठे स्वर वाली डोरबेल लगवाई थी फिर भी इस वक़्त ये आवाज़ मुझे बेहद  कर्कश लगी थी। मुझे डर था जब मैं काटेज का दरवाज़ा खोलने गया और उसी वक़्त मिसेज सचान बालकनी में आकर वापस चली गई तो पता नही मैं उन्हें फिर कब देख पाँऊगा। मैंने  मिसेज सचान के एक दीदार के खातिर  डोरबेल को इग्नोर कर दिया था। पर कुछ समय बाद डोरबेल दूसरी बार बजी फिर तीसरी बार। झुंझलाकर मैने मिसेज सचान की बालकनी पे एक नज़र डाली और फिर डोर की तरफ ये सोचते हुए बढ़ा 'कि जब मैं चित्रांगदा जैसी एक बेहद खूबसूरत लड़की की ओर आकर्षित हूँ तो फिर मिसेज सचान की एक झलक देखने को मैं इतना बैचेन क्यों हूँ।
दरवाज़े तक पंहुचते पहुँचते डोर बेल चौथी और और फिर पांचवी बार बजी, जिसने मेरी झुंझलाहट को और बड़ा दिया। इसी झुंझलाहट में मैने तेजी से दरवजा खोला। दरवाज़ा खुलते ही मेरी झुंझलाहट और गुस्सा कपूर की तरह गायब हो गया था। दरवाज़े में मेरे सामने मिसेज सचान खड़ी थी। किसी  ठहरी हुई नदी की तरह शांत। उनके होठों पर मुस्कान की कोई लकीर नहीं थी जबकि अभी कुछ देर पहले मैने उन्हें उनकी बालकनी में मुझे देखकर मुस्कराते हुए पाया था। हलाकि उससे पहले वो बालकनी में उसी तरह खड़ी थी जैसे अभी मेरे सामने दरवाज़े पे खड़ी थी, किसी ठहरी हुई नदी की तरह शांत और उदास।   
अपने हाथो में पकड़ी मेरी किताब स्वीट सिक्सटीन मेरे और बढ़ाते हुए मिसेज सचान बोली 'तुम्हारी किताब पढ़ ली मैने।'
'सच कैसी लगी आपको।' मैं उत्साहित होकर बोला 'आइये अंदर आइये न।'
इतनी घटिया किताब इससे पहले मैने नहीं पढ़ी।  आलरेडी तुम्हारी किताब मेरा काफी वक़्त ख़राब कर चुकी है अब मैं अंदर आकर अपन और समय बर्बाद नही करना चाहती।' मिसेज सचान ने बेहद रूखे लहज़े में कहा और फिर पलट कर अपने बंगले की और चल दी।
मिसेज सचान के रूखेपन से मैं इतना आहत नही हुआ था जितना उन्हें अपनी किताब के पसंद आने की वजह से हुआ था। उन्होंने मेरी किताब को सीधे सीधे घटिया करार दे दिया था। हालाँकि मैं अब तक कोई बड़ा लेखक नही था पर अब तक किसी ने भी मेरे सामने मेरी पुस्तक को यूँ घटिया नही कहा था। मिसेज सचान के जाने के बाद में काफी देर अपने को यूँ तसल्ली देता रहा कि हो सकता है मेरी ये पुस्तक वास्तव में मिसेज सचान को घटिया लगी होगी। ख़ैर मेरा मूड अपसेट हो चूका था और यूँ ढलती रात तक न ही मैने अफ़साने का एक भी अक्षर लिखा न ही मिसेज सचान के दीदार की ललक में बालकनी में गया।
अपने ख़राब मूड को दुरस्त करने की गरज़ से मैं केम्पस में मौजूद क्लब में आ गया था। बार काउंटर पे बैठकर मैं विह्स्की के घूंट भरते बज रहे धीमे संगीत का तक़रीबन आँखे बन्द करके लुत्फ़ लेने लगा।
'ओह तो आप भी रॉयल स्टेग ही पीते है।'
पहचानी हुई आवाज़ सुनकर मैने उसकी ज़ानिब आँखे उठाई तो पाया मेरे बिलकुल करीब मिसेज सचान खड़ी थी। हाफ आसितिनो और लॉन्ग स्कर्ट पहने हाथो में विह्स्की का गिलास और मदिर होठों पे मुस्कान लिए। हलके  हरे रंग के टॉप और गहरे हरे रंग की स्कर्ट में क्लब की  दूधिया रौशनी में किसी परी की मानिंद चमक रही थी। 
मिसेज सचान के दोपहर वाले व्यवहार को याद करके मैं खामोश रह गया। मुझे खामोश देखकर मिसेज सचान बोली 'प्रियजीत अपना पैग खत्म करके डांस फ्लोर  पे आ जाना।' कह कर मिसेज सचान ने गिलास की विह्स्की एक घूंट में गले में उतारी और फिर गिलास को काउंटर पे रखकर डांस फ्लोर पे जाके म्युझिक की धुन पे थिरकने लगी।
मिसेज सचान मेरे लिए एक पहेली लगी और शायद इस पहेली को सुलझाने के लिए मैं विह्स्की के शिप लेते हुए उन्हें थिरकते हुए देखता लगा।
हाथ में शराब का गिलास लिए एक अधेड़ ने अचानक मिसेज सचान की कमर पकड़ ली और मिसेज सचान ने उसके कंधे थाम लिए। दोनों के कदम म्यूज़िक पे लयबद्ध हो उठे। मिसेज सचान का सर उसे अधेड़ पे झुका देखकर मेरे दिल में एक अजब सी हूक उठी। न जाने क्यों मुझे उस आदमी जी के कंधे का सहारा लेकर मिसेज सचान डांस कर रही थी उससे ईर्ष्या होने लगी।      
हाथ में शराब का गिलास लिए एक अधेड़ ने अचानक मिसेज सचान की कमर पकड़ ली और मिसेज सचान ने उसके कंधे थाम लिए। दोनों के कदम म्यूज़िक पे लयबद्ध हो उठे। मिसेज सचान का सर उसे अधेड़ पे झुका देखकर मेरे दिल में एक अजब सी हूक उठी। जाने क्यों मुझे उस आदमी जी के कंधे का सहारा लेकर मिसेज सचान डांस कर रही थी उससे ईर्ष्या होने लगी। 
चित्रांगदा सी खूबसूरत लड़की से मैं प्यार करता था। हलाकि उसने अब तक मेरे प्यार का जवाब नही दिया था पर वो मेरीबेहद करीबी दोस्त थी। और मुझे उम्मीद थी वो जल्द ही मेरे प्यार को कबूल कर लेगी। ये उम्मीद मुझे इसलिए भी थी क्योंकि जब कुछ दिन पहले मैने किसी बात पे उत्तेजित होकर उसके होठों को चूमा तो बजाय नाराज़ होने के वो शरमा गई थी।
मिसेज सचान ने आज दोपहर मुझसे बेहद रूखा व्योहार किया था। वो बेहद धनाड्य महिला थी, स्वालाम्बी थी। ऐसी हाई सोसाइटी ज़िन्दगी उनकी रोजमर्रा की कहानी थी। मेरे जैसे व्यक्ति उनके लिए नौकर से ज्यादा हैसियत नही रखता था फिर किसी व्यक्ति के कांधे का सहारा लेकर नाचते देख मुझे बुरा क्यों लग रहा था। 
मैने अपना सर झटका। मैं जानता था ऐसा मैने अपने ख्यालो से मिसेज सचान को झटकने के लिए क्या था। पर मैं नाकाम रहा। ज्यों ही मैने अपना झटका सर सीधा किया मेरी आँखें मेरे हुक्म से आज़ाद होकर  मिसेज सचान पे जाकर ठहर गईं। मेरी  आँखें मिसेज सचान की काली गहरी आँखों से चार हुई और ठीक उसी समय उन्होंने अपनी पलकों की  जुम्बिश से मुझे आमन्त्रित किया। हालाकिं उन्होंने मुझे अपनी पलकों के इशारे से आमंत्रित किया था या फिर यूँ ही पलकें झपका दी थी फिर भी आज रात उनकी खूबसूरती के आकर्षण का आलम ये  था कि मैं मेरे कदम भी मेरी आज्ञा की अवेहलना करके मुझे डांसिंग फ्लोर पे लेकर गए थे।
मुझे अपने करीब देखते ही मिसेज सचान अपने डांस पार्टनर से आज़ाद होकर किसी लता की मानिंद मेरे सीने से आ लिपटी। मेरे शानो पे उनके नरम गुदाज़ हाथो की की पकड़ बेहद सख्त थी और उनकी मखमली देह मेरी देह से हर जाविये से सटी हुई थी।
जब मिसेज सचान ने अपनी गर्म खुशबूदार सांसे मेरे मुँह पे डालते हुए अपने नरम होठों के मेरे होठों के करीब लाकर कहा 'प्रियजीत रोमांटिक कहानी लिखने में तुम्हारा कोई जवाब नही।' तो मैने अपने ख्यालों में सोचा काश आज की ये रात इस कायनात की सबसे तवील रात हो और मिसेज सचान मेरे गले से लगे यूँ ही रक्स करती रहें। हालाकिं मैने एक बार दिल में सोचा की 'मिसेज सचान से पूछ लूँ कि उन्हें मेरी कौन सी रोमांटिक स्टोरी पसंद आई है, क्योंकि वे 'स्वीट सिक्सटीन' दोपहर ही खारिज़ कर चुकी थी।' पर मिसेज सचान की देह से झरती झरने सी खुशबू ने मुझे ऐसा करने से रोक लिया। शायद मैं इस वक़्त किसी तौर मिसेज सचान को तनिक भी नाराज़ नहीं करना चाहता था।
उस रात मिसेज सचान मुझसे रक्स करते हुए मीठी बातें करती रही। और फिर जब विह्स्की के असर से लहराती उनकी लज़्ज़तदार देह को उनके बंगले के हवाले करके अपनी काटेज जाने के लिए मुड़ा तो मिसेज सचान ने मुझे 'बाय' कहते हुए मेरे गाल पे अपने होठों के निशान छोड़ दिए।        
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मुझे इस कॉटेज में आये तीन दिन बीत चुके थे और इन बीते तीन दिनों में मैने पानी कहानी के अक्षर भी नहीं लिखे थे। मेरे कुछ भी न लिख पाने के वजह मिसेज सचान ही थी।
उस रात जब मिसेज सचान ने अपने होठों के लम्स से मेरे गाल को सरशार किया तो उससे हौसला पाके मैं अगले दिन उनसे मिलने उनके बंगले पहुंचा तो उन्होंने मुझे दरवाज़े से ही मुझे ये कहकर रुखसत कर दिया 'प्रियजीत अच्छा होगा जो तुम अपनी काटेज में जाकर अपने लेखन में सुधार का प्रयास करो।'
मैने मिसेज सचान की आवाज़ में बेहद रूखापन महसूस किया था। मैं न जाने कितनी देर अपसेट मूड के साथ काटेज में टहलता हुआ सोचता रहा मिसेज सचान की ये  आवाज़ डांस करते  वक़्त मुझसे बात करते हुए से बिलकुल अलग थी। उस वक़्त उनकी आवाज़  शहद में डूबी हुई थी।
शाम ढलते ढलते मिसेज सचान का रूखापन मुझ पे वहशत बनके टपकने लगा तो रात गहराते ही वो मेरे काटेज में आ गई। हाथ में प्लास्टिक का एक झोला उठाये। मैने दरवाज़ा खोल तो बिना कुछ कहे भीतर आके सोफे पे बैठ गई। फिर थोड़ी देर बाद झोले से 'रॉयल स्टेग' की बोटल टेबल पर रखते हुए बोली 'प्रियजीत  फ्रिज़ में आईस तो होगी न ?'
शराब के हलके हलके घूंटो ने उनकी काली आँखों को हल्का लाल कर दिया था। और जब शराब के इन घूंटो का असर बढ़ा तो उन्होंने मेरे करीब बैठ कर अपने सर को मेरे कांधे का सहारा दे दिया।
मिसेज सचान की  उम्र भले ही चालीस के आस पास हो पर वे बेमिसाल हुस्न  का नमूना थी। मेरे कांधे पे झुके उनके होठो से निकलती गर्म साँसे और उनकी रेशमी बेतरतीब ज़ुल्फे कभी भी मुझे बहका सकती थी। इसलिए मैं खाली हुए गिलास में शराब डालने के बहाने से उनका सर सोफे की पुश्त से टिका कर उनसे तनिक दूर हट गया।
'प्रियजीत जानते हो मै बमुश्किल सत्रह साल की थी जब मिस्टर सचान ने मुझसे शादी  का प्रपोस किया था।' गिलास में शराब डालते हुए मैने मिसेज सचान के ज़ानिब देखा। वे सोफे की पुश्त से आँख बन्द किया तक़रीबन अधलेटी अवस्था में थी।
'मिस्टर सचान सुंदर  थे सजीले थे, इंजीनियर थे मैं भी उनसे प्यार कर बैठी थी। जल्द ही हमने शादी कर ली। और अगले एक साल में ही मैं मां भी बन गई।' गिलास में शराब डाल के मैं एक गिलास मिसेज सचान को देते हुए उनके करीब बैठ गया। इस वक़्त मिसेज सचान की आवाज़ मुझे कहीं दूर अंतरिक्ष से आती हुई प्रतीत हो रही थी। उस रात मिसेज सचान काफी देर तक मेरे साथ काटेज में थी। आज बहुत कुछ उन्होंने अपनी ज़िन्दगी का दर्द मुझसे बाटा था।
और फिर रात में एक पहर ऐसा आया जब में शराब और रात के असर से मिसेज सचान की बाते सुनते हुए नींद के हवाले हो गया। इससे पहले कभी भी इतनी देर रात तक मैं कभी जगा भी नही था। सुबह सूरज आसमान में चढ़ने पे जब आँखें खुली तो मैं सोफे पे सो रहा था। मिसेज सचान की तलाश मेरी आँखों ने सेकेण्ड के सोवै हिस्से से भी कम समय में कमरे की तलाशी ले डाली। अगले एक मिनट में मैने सोफे से उठकर पूरी काटेज को खंगाल  डाला। पर मिसेज सचान मुझे नज़र आई उनकी बालकनी में स्लेटी रंग का स्टोल ओढे हुए छोटे छोटे पौधों को पानी देते हुए।
अगले एक घंटे में दैनिक कामो से निपट कर मिसेज सचान के बंगले पे जा धमका था।
मिसेज सचान अभी अभी नहाई थी। पानी की बुँदे उनके बालो और गर्दन पे ढुलक रही थी। गुलाबी रंग का पानी से हल्का सा भीगा तौलिया उनके कांधे पे ढलका था और घुटनो तक  नील गाउन में उनकी उन्नत देह लिपटी हुई थी। उनकी पिंडलियां बेहद आकर्षक और गुदाज़ थी और मेरी नज़रे उन रोमहीन पिंडलियों से हटने को तैयार ही नहीं थी।
मिसेज सचान सोफे के पुस्त पे  बेपरवाही से तौलिया फेंक कर आदमकद शीशे के सामने खड़े होकर अपने बाल सुलझाने लगी थी।
उन्होंने मुझसे कोई हाय हेल्लो भी नही की थी।
'आप रात को अपने बंगले में कब चली आई ?' बातचीत का एक सिरा ढूंढते मैने पूछा था।
'प्रियजीत अभी मुझे कुछ आफिस का काम निपटाना है।' वो मुझसे बेज़ारी  प्रदर्शित करते हुए बोली।
'रात पता नही कब मेरी आँख लग गई।' मैने वापस बातचीत का सिरा पकड़ने का प्रयास किया था।
'मैने कहा मुझे काम है क्या तुम्हे समझ नही आया।' मिसेज सचान मेरी और पलटकर तीखे आवाज़ में बोली।
उनकी इस तीखी और बेरुखी भरी आवाज़ ने मुझे अपनी काटेज के ओर आने पे मज़बूर कर दिया था। 
उस दिन मुझपे मिसेज सचान की बेरुखी का असर ये रहा की मै तमाम दिन अपनी काटेज में कैद रहा। हालाकिं उनकी एक झलक देखने को दिल ने बड़ी बेताबी दिखाई फिर भी मै अपने  दिल को कंट्रोल किये रहा और मिसेज सचान की बालकनी से अपनी आँखों को दूर रख पाने में  कामयाब रहा।
लेकिन जब रात ने साँझ को अपने आगोश में लेकर उसे अपना सा बना लिया तो मैं भी मिसेज सचान की सांचे में ढली देह की एक झलक पाने की अपनी दिल और आँखों की ख्वाहिश के आगे पराजित हो गया।
मिसेज सचान यक़ीनन क्लब गई होगी इसलिए मैं भी क्लब जाने के लिए काटेज से निकल कर कोलतार की बनी सड़क पर आ गया था। आसमान में चन्द्रमा मुकम्मल हो चूका था और उसकी छिटकी चांदनी में कोलतार की बनी सड़क किसी अल्हड़ के ज़ुल्फ़ों की चोटी की तरह बल खा रही थी। मैने एक नज़र आकश में में चमकते चंद्रमा पे डाली और फिर जेब में दोनों हाथ डाल के क्लब की ओर बढ़ चला।
अब जबकि मैं क्लब पहुँचने ही वाला था तो वहां से एक साये को बाहर निकलते देखा। एक तो उस सुगठित देह का असर दूसरे चन्द्रमा की छिटकी चांदनी। मैं पहली नज़र में ही उन्हें पहचान गया था।
'मिसेज सचान।' मेरे  होठों से बेसाख्ता निकला था।
न सिर्फ मैने मिसेज सचान को पहचान लिया था बल्कि छिटकी चांदनी में मिसेज सचान भी मुझे पहचान गई थी।
'प्रियजीत।' उनके होठों से निकला और फिर आगे बढ़के उन्होंने हलके से मुझे अपने गले लगा लिया।
'आज बहुत जल्द क्लब से बाहर आ गई आप ?' मैने मिसेज को गहरी नज़र से देखते हुए कहा मुझे डर था कहीं दोपहर की तरह मिसेज सचान मुझपे चिल्ला न पड़ें। 
पर मेरी उम्मीद के विपरीत वो मेरा हाथ पकड़ के बोली 'मुझे लगा तुम क्लब में होंगे प्रियजीत, तुमसे मिलने चली आई पर तुम्हे क्लब में न पाकर बोर होने लगी थी इसलिए निकल आई।' 
मिसेज सचान सच में पहेली थी। मैं सोच में पड़ गया क्या अभी सामने खड़ी वही मिसेज सचान है जिन्होंने आज दोपहर मुझसे यूँ व्योहार किया था मानो मुझे जानती तक न हो और अभी कितनी आत्मीयता से बात कर रही है।    
'प्रियजीत क्या तुम्हारी काटेज में विह्स्की पड़ी है ?' मिसेज सचान की आवाज़ सुनके मैं अपनी सोच के दायरे से बाहर निकलते हुए बोला 'हाँ मिसेज सचान चलो काटेज में चलके एक एक पेग लेते हैं।'
'नही प्रियजीत।' मिसेज सचान अपनी खूबसूरत ऊँगली से एक  पेड़ के नीचे बने ईंट के चबूतरे की ओर इशारा करके बोली 'प्रियजीत तुम जाके विह्स्की ले आओ हम आज चाँद की  चांदनी और उस पेड़ की छाँव में बैठकर बातें करेगे।' 
'हाँ ठीक है।' मैं एक नज़र पेड़ और फिर एक नज़र मिसेज सचान पे डालते हुआ बोला।
'और हाँ कुछ बर्फ और सोडा  भी।'   मिसेज सचान अपनी अंगुलिया मेरी कलाई में चुभते  हुए बोली।
मैं जब प्लास्टिक के एक थैले में शराब, सोडा और बर्फ लेकर पेड़ के पास पहुंचा तो मिसेज सचान पेड़ के नीचे बने चबूतरे के सामने पड़ी पत्थर की बेंच पे आँखें बंद किये बैठे थी। उन्हें यूँ एक पल देख के मुझे लगा  मानो स्वर्ग की कोई अप्सरा धरती में इसलिए आई हो ताकि  चंद्रमा से बरस रही चांदनी रुपी अमृत को धरती के हर जर्रे को बराबर बाँट सके।
मेरी नज़र मिसेज सचान के चेहरे पे ठहर गई। उन्हें देखके दिल में टीस उठी। उनका चेहरा उस वक़्त मुझे दर्द में डूबा लगा। मानो स्वर्ग की अप्सरा को किसी ने अभिशप्त कर दिया हो।
उनके दर्द की थाह लेते हुए मैं उनके बगल में पत्थर की बेंच पर बैठ गया था।
'प्रियजीत, छोटे - छोटे पैग बनाना।' मिसेज सचान मेरे कंधे पे सर टिका कर बोली।
मिसेज सचान मेरा हाथ पकड़ के कभी पेड़ के नीचे बने चबूतरे पे बैठती, कभी पत्थर की बेंच बैठ कर मेरे  कंधे पे सर टिकाती कभी छिटकी चांदनी में टहलने लगती। पैग खत्म होते ही नए पैग की फरमाइश करती। अपने गुज़रे दिनों की  ज़िन्दगी की दास्ताँ बयां करते हुए।
मिसेज सचान न एक सफल बिज़नेसवोमेन  थी बल्कि एक मशहूर चित्रकार भी थी। उनकी बनाई पेंटीग्स की प्रदर्शनी लगाने के लिए बड़ी बड़ी संस्थाएं लालयित रहती थी। उन्होंने अपने कई दर्द मुझसे बांटे पर मिस्टर सचान से डाइवोर्स क्यों हुआ ये नहीं बताया। मिस्टर सचान से अलग होकर  उन्होंने अपना एक अलग मुकाम बनाया था। बेहद सफल महिला के तौर पे समाज उन्हें जानता था, पहचानता था।
मिसेज सचान का एक बीटा था जो अपने पिता मिस्टर सचान के साथ रहता था और बॉलीवुड में उसकी एक फिल्म रिलीज भी हो चुकी थी। मैने वो फिल्म नही देखी थी पर ट्रेलर और पोस्टर में रत्नेश को देखा था, एकदम चॉकलेटी हीरो की तरह।
मैने जब मिसेज सचान को  एक फ़िल्मी हीरो की मां होने की बधाई दी तो वो न जाने कितनी देर बिना कुछ कहे सिर्फ हंसती रही।
'एक पैग ओर प्रियजीत।' मिसेज सचान ने जब अपना खाली गिलास मेरी ओर बढ़ाया तो मैने उनके सामने विह्स्की की खाली बोतल लहरा दी।
'ओह ठीक है, चलो फिर चलते है।' कहते हुए मिसेज सचान उठी तो शराब की  तरंग की वजह से लड़खड़ा गई। मैने उन्हें तुरंत ही संभाल लिया। सड़क पर चलते हुए मिसेज सचान मेरा सहारा लिए हुए थी। मेरे काटेज के सामने जब वो  पहुंची तो तक़रीबन मुझसे किसी लता की तरह झूलते हुए बोली 'प्रियजीत देखो चाँद अब किस तौर दिख रहा है, मानो धरती को चूमने का प्रयास कर रहा हो।'
यद्यपि मैं लेखक था, पर मिसेज सचान की ये बात सुनके मुझे लगा क़ि शराब अपना असर दिखाते हुए उनसे बहकी - बहकी बाते करवा रही है।
'चलिए मैं आपको आपके बंगले तक छोड़ देता हूँ।' कहकर मैं  अपने कंधे से झूल रही मिसेज  सचान को संभाल कर उनके बंगले की ले चला। 
मिसेज सचान को उनके बंगले में छोड़कर मैं जब चला तब उन्होंने एक बार मेरा हाथ पकड़ा और फिर तुरन्त ही छोड़ दिया।
मिसेज सचान ने दरवाज़ा बंद कर लिया और मैं अपनी काटेज में आके बिस्तर के हवाले हो गया।
अगली सुबह मेरी आँख काफी देर से खुली और मैं जब मिसेज सचान का हाल जानने के लिए उनके बंगले की और जा रहा था तो आमने उन्हें कार की ड्रायविंग सीट पे बैठा देखा। उन्होंने एक नज़र मुझ पे डाली और फिर कार ड्रायव करते हुए मेरे बगल से यूँ निकल गई जैसे मैं उनके लिए कोई अनजान शख्स हूँ।
सच में मिसेज सचान मेरे लिए एक अनजान पहेली थी। वो कभी मेरे से बहुत अपनत्व से मिलती और कभी बिलकुल बेगानो सा व्योहार करती। मैं मिसेज सचान की जाती हुई कार को देखते हुए उन्हें समझने का प्रयास कर रहा था तभी जींस की जेब में पड़ा मेरा मोबाईल बज उठा। जेब से मोबाइल निकाल के देखा तो चित्रांगदा मुझे काल कर रही थी।
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हालाँकि चित्रांगदा ने कभी भी मेरे प्यार को कबूल नही किया था पर वो मेरी बेहद करीबी दोस्त थी। हमने कुछ अवसरों पे एक दूसरे को चुम्बन किया था। चित्रांगदा एक उभरती हुई मॉडल थी। कई फिल्मो में वो छोटे - छोटे रोल भी कर चुकी थी। वो करीब बीस साल की एक बेहद सुन्दर और आकर्षक देह वाली युवती थी। चित्रांगदा से मेरी मुलाकात उस वक़्त हुई थी जब मैं एक धारावाहिक की कहानी लिख रहा था। चित्रांगदा ने उस सीरियल में एक अल्पकालिक रोल किया था। चित्रांगदा भी मेरे लेखन से बहुत  इम्प्रेस थी। जब मैं किसी कहानी के लेखन के लिए शहर के हंगामो से दूर अपने दोस्त की काटेज में था और वहां मिसेज सचान  नाम की पहेली से रूबरू हो रहा था तो उस वक़्त चित्रांगदा इटली में थी, अपने किसी फोटो शूट के लिए।
चित्रांगदा ने मुझे फोन करके बताया 'कि  उसे फोटो शूट के दौरानकिसी से प्यार हो गया और उसने तुरन्त शादी कर ली है। उसने शादी किससे की ये सुनने से पहले ही फोन कट हो गया।   चित्रांगदा यूँ किसी से शादी कर सकती है ये बात मेरे ख्वाबो तक में न थी। चित्रांगदा के यूँ गैर हो जाने से मै कई महीने अपने फ्लैट में कैद सिर्फ शराब से खेलता रहा।
ऐसे ही एक बारिश वाली शाम में जब मैं विह्स्की के शिप ले रहा था तो अख़बार की एक खबर पे मेरी नज़र पड़ी।
मिसेज सचान ने अपने चित्रों की एक प्रदर्शनी के दौरान किसी जर्नलिस्ट के किसी सवाल का जवाब देते हुए कहा था 'क़ि ये उनके चित्रों की आखिरी प्रदर्शनी है।
मिसेज सचान मेरे लिए भले ही अब तक एक पहेली रही हो और मैं उन्हें समझ पाने में असफल रहा होउ तो भी इतना समझता था कि मिसेज सचान जैसी सफल औरत के भीतर भी कोई दर्द लावा बनके बह रहा है।
मिसेज सचान...मिसेज सचान.....मिसेज सचान मेरे होटों ने ये नाम कई बार दोहराया। मिसेज सचान का नाम दोहराते हुए अचानक मैं उनसे मिलने को बेकरार हो उठा।
जब मैं मिसेज सचान के फ्लैट पे पहुंचा तो वे वहां नहीं थी। न जाने क्यों मुझे लगा मिसेज सचान कहीं अपने रिसोर्ट टाईप बंगले पे तो नहीं गई। दिल में ये ख्याल आते ही मैं अपने दोस्त के घर गया और उसे ये बता के कि मुझे एक कहानी लिखने के लिए तुरंत एकांत की जरुरत है उसके काटेज की चाभी लेकर रिसोर्ट की और चल पड़ा। कई दिनों से हो रही बरसात आज अपने पूरे शबाब पर थी पर मैं इससे बेपरवाह था। मेरे जेहन में सिर्फ मिसेज सचान घूम रही थी। मैं पहेली को हल करना चाहता था मिसेज सचान के दर्द की वजह जानना चाहता था।
रिसोर्ट पहुँचते पहुँचते रात के साये फ़िज़ा में फैल चुके थे, तेज बारिश के बीच चमकती बिजली की रौशनी में भी मिसेज सचान के बंगले में कुछ नज़र नही आया।  
काटेज में पहुचकर जब मैने मिसेज सचान का बंगले को अँधेरे में डूबा पाया तो मुझे लगा मिसेज सचान शायद यहाँ रिसोर्ट में न आकर कहीं और गई है।
क्लब... हाँ यक़ीनन मिसेज सचान क्लब में होगी। मैं सर पे अम्ब्रेला लगाए बारिश से बचने की नाकाम कोशिस करते हुए फ़ौरन क्लब पहुँच गया था। बाहर हो रही बारिश के असर से अलमस्त न जाने कितने लोग, न जाने कितने जोड़े शराब की खुमारी में डूबे सिर्फ अपने या अपनों में व्यस्त थे।
मैने पूरा क्लब छान मारा था, मिसेज सचान कहीं नज़र नही आई। मैं थक कर बार काउंटर पे बैठ गया। विह्स्की का पैग लेकर उसके सिप लेते हुए मैने मन ही मन सोचा शायद मिसेज सचान यहाँ न आकर कहीं ओर गई होगी। अब जबकि मिसेज सचान यहाँ नही थी तो मैं यहाँ क्योंकर रुकता। पर इतनी तेज बारिश में इतनी रात गए वापस जाने को दिल तयार नही हुआ। रात काटेज में बिताकर सुबह यहाँ से निकल जाऊंगा ऐसा सोचकर मैं क्लब से बाहर आ गया।    
बारिश और तेज हो चली थी। काटेज  तक पहुँचते पहुँचते मेरे सर के आलावा मेरे शरीर का हर हिस्सा भीगा था। छाते को दरवाज़े के पास रखकर मैने दरवाज़े का लॉक खोलना चाहा तो दरवाज़ा खुद ब खुद खुल गया। जेहन को झटका लगा मिसेज सचान की तलाश में क्लब जाते वक़्त में बेध्यानी में दरवाज़ा लॉक करना भूल गया था। ख़ैर मैं भीतर आकर लाइट जलाकर एक तौलिये से अपने गीले बदन को सुखाने लगा। अचानक मेरी नज़र राईटिंग टेबल पर गई। पेपर वेट के नीचे एक पेपर रखा था।
पेपर वैट के नीचे से वो कागज निकाल के मैने उसे देखा, मेरे नाम का खत था। किसने लिखा और यहाँ कब रख के गया  जानने के लिए मैने उसे पलटा तो दूसरी तरफ खत ख़त्म होने की जगह अंग्रेजी पे PS  लिखा था। ये PS  कौन है जानने के लिए मैने तुरंत खत पढ़ना चालू कर दिया।
प्रियजीत !
तुम एक अच्छे लेखक हो शायद अच्छे इंसान भी हो। जानते हो तुम इतना अच्छा लिखते हो कि मैने अब तक तुम्हारा लिखा हर अफसाना पढ़ा है। और हाँ 'स्वीट सिक्सटीन' आपकी लिखी एक बेहतरीन किताब है, जानते हो उस दिन मैने तुसे झूठ बोला था कि ये एक घटिया किताब है।  
-खत पढ़ते - पढ़ते मै रुक गया। वापस खत पलटा और मेरी निगाह PS पे ठहर गई। जहाँ तक मुझे याद था मेरी किताब स्वीट सिक्सटीन को केवल मिसेज सचान ने घटिया कहा था और किसी ने नहीं। फिर ये PS कौन है जानने के लिए मैं वापस खत पलट के उसे पढ़ने लगा।
प्रियजीत,   तुम ये नहीं जानते  मैं भी पहले कहानियां लिखती थी, चित्र नही बनाती थी। पर मिस्टर  सचान से शादी के  बाद मेरी लाइफ में एक लड़का आया। मैं मिस्टर सचान से प्यार करती थी हमारी शादी लव मैरिज थी पर शादी के बाद मुझे  पता चला की मिस्टर  सचान के और भी कई अफेयर है। मैने उन्हें रोकने की कोसिस की अपने प्यार की दुहाई थी। पर मेरी हर प्लीडिंग उनपे बेअसर रही। मैं अक्सर तनहा रहने लगी और इसी तन्हाई में  मैं एक लड़के की ओर आकर्षित हो गई। अमृत एक उभरता हुआ मशहूर चित्रकार था। 
हम अक्सर मिलने लगे। मै अमृत के चित्रों की हर एगजीबेशन में जाने लगी। उसके साथ वक़्त बिताने लगी। इसी बीच मै  गर्भवती हुई और रत्नेश हमारी दुनिया में आया।
जानते हो प्रियजीत इस समाज में पुरुष चाहे कितनी भी लड़कियों से अफेयर रखे ये जायज माना जाता है पर एक स्त्री अगर किसी पुरुष से दोस्ती भी कर ले तो ये किसी को भी हज़म नही होता। मेरे और अमृत का   मिलना झूलना मिस्टर सचान को पसन्द नही आया और उन्होंने मुझे डाइवर्स दे दिया। मैने भी उनके डायवर्स वाले फैसले का विरोध नही किया क्योंकि मुझे अमृत से बहुत उम्मीदे थी।
पर अमृत भी हर पुरुष की तरह निकला। एक बच्चे की मां और तलाक़शुदा औरत से शादी करके ज़िन्दगी बिताना उसे पसंद नही था।  मिस्टर सचान और फिर अमृत की बेवफाई से मैं टूटी जरूर पर टूट कर बिखरी नही। मैंने अपना बिजनेस खड़ा किया। रत्नेश की परवरिश किया उसे सिने इंडस्ट्रीस के लायक बनाया। ये बिजनेस मैने खड़ा किया मिस्टर सचान के पुरुषत्व वाले अभिमान को चुनोती देने के लिए और अमृत को जवाब देने के लिए मैने अपना शौक लेखन छोड़कर चित्रकारी शुरू की और  देखते ही देखते मैं अमृत से कहीं  ज्यादा सफल चित्रकार के रूप में जाने जानी लगी।
मैने सोच लिया था अब मैं कभी भी किसी तौर किसी पुरुष की ओर आकर्षित नही होउंगी। पर एक दिन रत्नेश की गर्लफ्रेंड चित्रांगदा के पास मुझे एक नावेल मिली जो तुमने लिखी थी।
खत पढ़ते -पड़ते चित्रांगदा का नाम आने से मैं चौंक पड़ा।
--चित्रांगदा, रत्नेश की गर्लफ्रेंड। क्या  रत्नेश की गर्लफ्रेंड चित्रांगदा और मेरी दोस्त चित्रांगदा एक ही लड़की है। चित्रांगदा के   पास से मेरा नावेल मिसेज सचान ने लिया था तो यक़ीनन रतनेश की गर्लफ्रेंड और मेरी दोस्त चित्रांगदा एक लड़की थी। चित्रांगदा ने एक सिने अभिनेता से शादी की थी और मिसेज सचान का लड़का रत्नेश भी एक सिने अभिनेता था।
अब तक मैं ये समझ चूका था ये खत मिसेज सचान ने लिखा था जबकि अब तक PS का मतलब मेरी समझ से बाहर था। और अब चित्रांगदा का सच....
उफ्फ्फ्फ़.....
मेरा सर चकराने लगा और मैं धम्म से सोफे पे बैठ गया। एक बार पलकें झपका के मेरी आँखें स्वत ही खत को आगे पढ़ने लगी।  
 प्रियजीत तुम्हारी किताब पढ़के मुझे अपने बीते दिन याद आ गए। मुझे लगा तुम मेरे जैसा लिखते हो। मैं तुमसे मिलना चाहती थी। और मेरी ये इच्छा तुम्हरी पुस्तक के विमोचन में पूरी भी हो गई। और मैं तुम्हारी तरफ आकर्षित हो गई जबकि मैने कभी खुद से वादा किया था कि कभी किसी पुरुष की ओर आकर्षित नही होउंगी।
पर तुम भी पुरुष हो प्रियजीत मैं ये भूल गई थी। मैने कई बार रात के अँधेरे में तुम्हारे  करीब आने की कोसिस की पर तुम मुझे ठुकराते रहे। और फिर तुम्हारी इन  हरकतों से गुस्सा होकर मैं दिन के उजालो में तुम पर बेवजह अपना गुस्सा निकाल कर अपने को शांत करती रही। और फिर उस रात तुमने पूरी तरह से सिद्ध कर दिया कि  तुम भी बाकी पुरषो की तरह हो जब तुमने मेरी पहचान मेरी सफलताओ के बजाय मेरे अभिनेता बेटे रत्नेश की मां होने की वजह से किया। वो रत्नेश जिसने अपनी शादी की सुचना शादी करने के बाद दी।
प्रियजीत अब मैं तुमसे कभी नही मिलूगी, तुम भी मुझसे नहीं मिलना क्योंकि मैं अब तम्हारे सामने नही आना चाहती क्योंकि मैं लाइफ में किसी के तरफ आकर्षित तो पहले भी हुई पर प्यार शायद मुझे पहली बार हुआ है।
PS 
PS  का मतलब कोई भी हो क्या मालूम, मुझे तो बस ये मालूम था ये खत मिसेज सचान ने ही लिखा था। मतलब मिसेज सचान यही इसी रिसोर्ट में थी। पर कहाँ ?
हाँ जरूर वो अपने बंगले में होगी। ये ख्याल आते ही मैं उनके बंगले की ओर भागा। दरवाज़े में रखा छाता लेने की भी सुध नही रही। अब बारिश अपने प्रचंड वेग पे थी। मेरे कदमो ने सेकंडो में मिसेज सचान के बंगले तक का फसल  तय कर डाला। मिसेज सचान के बंगले तक पहुँचते पहुँचते मेरे शरीर का रोयां रोयां बारिश ने भिगो डाला था।
मेरी बेक़रारी का आलम ये था कि मैने दरवाज़े को नॉक करने की जगह सीधे धक्का दिया। दरवाज़ा बेआवाज़ खुल गया। अगर थोड़ी बहुत आवाज़ हुई भी होगी तो बारिश   आवाज़ में दब गई होगी। मैं बंगले में आ गया। पूरा बंगला अँधेरे के हवाले था। मोबाईल की बैटरी जलाकर मैने लाईट का स्विच ढूंढ कर आन कर दिया। बंगला रौशनी से नहा उठा।
मैं दीवानावार पूरे बंगले में मिसेज सचान को ढूंढ रहा था। वो कहीं नहीं थी। एक टेबल में एक फोटो फ्रेम की हुई रखी थी, न्यू मैरिड कपल की। मैं उन दोनों को जानता था। एक मशहूर हीरो  मिसेज सचान का बेटा रत्नेश था और दूसरी मेरी दोस्त रही चित्रांगदा थी। मेरी नज़र एक पल के लिये उस फोटो पे ठहरी और फिर मैं वापस मिसेज सचान को तलाशने लगा।
मिसेज सचान को कहीं न पाकर मैं हताश उनके बंगले की बालकनी में आ गया। अब जबकि मिसेज सचान के बंगले का दरवाज़ा खुला था तो लाज़िमी था वो भी बंगले में होगी पर कहाँ। क्योंकि वो क्लब में तो नही थी।
अचानक मेरी नज़र नीचे की और गई।
मिसेज सचान के बंगला को पोशीर नदी को छूकर बहती थी। नदी तक नीचे जाने के लिए मिसेज सचान ने पत्थर की सीढ़ियां बनवा रखी थी जो एक लोहे के गेट से बंद रहती थी।
एकाएक बिजली चमकी और मैने देखा मिसेज सचान सीढ़ियों पर बैठी है और नदी उनके बेहद करीब से गुज़र रही है। कई दिनों से हो रही मूसलाधार बारिश ने नदी  का जल स्तर बहुत ही बढ़ा दिया था। इस नदी में रिसोर्ट वालो ने अवैध डैम बना रखा थे, रिसोर्ट में पानी की आपूर्ति के लिए। अचानक मुझे भयानक आवाज़ सुनाई दी जैसे पत्थर खिसक रहे हो। यक़ीनन पानी का तेज बहाव डैम को अपने साथ बहा ले  जाने को मचल रहा था।
मिसेज सचान !
मिसेज सचान !
मिसेज सचान !
मैने उन्हें कई आवाज़े दी पर या तो वो कुछ सुनना ही नहीं चाहती थी या फिर बारिश की आवाज़ ने मेरी आवाज़ उन तक पहुँचने ही नही दी।
अचानक डैम खिसकने की वापस पुनः कर्कश आवाज़ गुंजी। मिसेज सचान ने वो आवाज़ भी नही सुनी होगी पर मैने सुनी बिलकुल साफ साफ।
अगले ही पल मैं छलांग लगाकर भागा और कुछ समय में ही सीढ़ियां उतर के मैं मिसेज सचान के करीब पहुंचा। अगले ही पल एक भीषण ध्वनि के साथ बांध टुटा और पानी लहराते हुए हमारी और लपका। मैने झुककर दिन दुनिया से बेज़ार मिसेज सचान को  उठा के अपने कंधे पे डाला और तेजी से सीढ़ियां चढ़ने लगा।
बंगले में पहुंचकर मैने मिसेज सचान को कंधे से नीचे उतारा तो वो बिना कुछ कहे सोफे पे बैठ गई। उनके बदन से बहता पानी सोफे को गिला करने लगा। मैं उन्हें देखता हुआ खड़ा रहा चुपचाप। कुछ देर बाद वो बोली 'प्रियजीत कपडे बदल लो नहीं तो सर्दी लग जायगी।'
'अरे भाड़ में जाये सर्दी लगती है तो लग जाने दो।' मिसेज सचान की बात सुनकर मैं फट पड़ा और उनके पास सोफे के नीचे बैठते हुए बोला 'वहां अगर मुझे तनिक भी देर हो जाती तो  वो नदी आपको कहाँ बहा कर ले जाती आपको मालूम है और  यहां आप मुझे सर्दी न लग जाये इसके लिए फिक्रमंद है।'   
'बहाकर अगर ले भी जाती तो क्या होता, किसको क्या फ़र्क़ पड़ता प्रियजीत।' 
'क्या सिर्फ दुसरो को फ़र्क़ नही पड़ता इसलिए अपनी ज़िन्दगी गर्क कर देना जायज़ है मिसेज सचान।'
मेरी बात सुनकर मिसेज सचान कुछ देर खामोश बैठी रही और फिर उठकर शराब की बोतल से गिलास में शराब उड़ेलने लगी। मैने उठाकर उनके हाथ से शराब की बोतल छीन ली।
'प्रियजीत लौटा दो बोतल मुझे इसकी जरुरत है।' कहकर मिसेज सचान मेरी ओर बढ़ी।
'लौटा दूंगा मिसेज सचान पर ये बोतल नहीं बल्कि वो चीज जिसकी आपको जरुरत है।'
'कौन  सी चीज प्रियजीत ?'
वही मिसेज सचान जो आपने कभी छोड़ दी थी किसी के लिए।'
'क्या प्रियजीत ?' मिसेज सचान ने अपना हाथ शराब की बोतल की ओर बढ़ाया।
'तुम्हारा लेखन।' कहकर शराब की बोतल की और बढ़ रहा मिसेज सचान के हाथ को पकड़ के मैने अपनी ओर   खिंचा।
'मैने लेखन किसी के प्यार के लिए छोड़ा था।' मिसेज सचान मेरे  खीचने की वजह से मेरे सीने से लगते हुए बोली।
'और मैं तुम्हे प्यार करता हूँ  मिसेज सचान इसलिए तुम्हे तुम्हारा शौक लौट रहा हूँ, मैं चाहता हूँ  तुम वापस कहानिया लिखो।
'क्या कहा प्रियजीत तुम मुझे प्यार करते हो ?' मिसेज सचान ने मेरी आँखों में झांककर कहा।
'हैं मिसेज सचान मैं तुम्हे प्यार करता हूँ ।'
'झूठ कह रहे हो तुम प्रियजीत।' मिसेज सचान मुझसे अलग होते हुए बोली।
'ये सच है मिसेज सचान कि मैं तुम्हे प्यार करने लगा हूँ। मैने उन्हें खीचकर वापस अपने सीने से लगा लिया था।
'अगर ये सच होता तो तुम इसे वक़्त मुझे मिसेज सचान नही बल्कि मेरे नाम से बुला रहे होते।'
'ओह तो तुम PS की बात कर रही हो पर मैं इसका मतलब नही समझ।' मैंने अबकी बार अपनी बात के साथ मिसेज सचान नही जोड़ा था।  
'प्रियजीत अगर तुमने कभी मेरी बनाई पेंटिग ध्यान से देखी होती तो तुम्हे आज PS का मतलब पूछने की जरूरत नहीं पड़तीऔर जबकि तुम कहते हो मुझे तुम प्यार करते हो।' कहकर मिसेज सचान ने वापस मेरी बाँहों से छूटने का प्रयास किया था।
उनकी बात सुनकर मैने उनका चेहरा अपनी हथेलियों में देखकर उनकी आँखों में झांक कर कहा 'मिसेज सचान अब जबकि हर वक़्त मैं तुम्हारी आँखों को ही ध्यान से देखता रहा तो  तुम्ही कहो फिर कब मैं तुम्हारी  पेंटीग्स देखने का समय निकल पाता।' फिर मैं उनकी पीठ सहलाते हुए बोला 'कहो मिसेज सचान जब तुम सी हुस्न की देवी सामने हो तो क्या तुम्हारा प्रेमी तुम्हारे अलावा कुछ ओर भी देख सकता है।'
'प्राची  .. प्राची सचान। मिसेज सचान नही प्राची कहो।'  कह कर मिसेज सचान भी अब अपने नरम गुदाज़ हाथो  से मेरी पीठ सहलाने लगी।
'प्राची.....।'
मेरे होठों ने उनका नाम  किसी मन्त्र की तरह लिया और मेरे हाथों ने उनका खूबसूरत चेहरा अपनी ज़ानिब उठाया था। उनकी आँखे मेरी आँखों में खुद को तलाश रही थी और होठ लरज़ रहे थे।
अचानक मिसेज सचान, अरे नही नही प्राची अपने पंजों पे उचकी और उन्होंने अपने होठों से मेरेहोठो को  हलके से चूम लिया।
उनके इस प्रेम प्रदर्शन के बाद उनकी स्वर्णिम देह पे मेरी पकड़ सख्त हो गई और उनके चुम्बन का उत्तर देने के लिए मेरे होठ उनके होठो की ओर बढ़ गए।
सुधीर मौर्य
गंज जलाबाद, उन्नाव
उत्तर प्रदेश - 209869