तुम ने
कहा था एक दिन
शरीफे के पेड़ के नीचे
'शरीफ लड़कियों' की
निशानी है
ये देह का बुरका
मैने मान लिया था
उस शाम तुम्हारी उस बात को
मेरे गले लगते ही
चिहुंक पड़ी थी तुम
उस सुनहरी शाम में
और आँख बंद करके
तुमने उतार दिया था
वो काला बुरका अपनी देह से
आँखों में आंसू भर के
न जाने कितनी देर
तुम दिखाती रही थी
अपनी देह के वो नीले निशान
जो बनाये गए थे
तुम्हे शरीफ लड़की बनाये रखने के
लिए।
उस रात
तुम हांफती साँसों के साथ
भाग कर आ गई थी मेरे घर
मेरे हाथो के स्पर्श से हौसला पाके
तुमने कहा था सिसकते हुए
तुम्हे मंज़ूर है
शरीफ लड़की की जगह
बदनाम लड़की होना
और उस रात की सुबह
मैने लिख दिया था
अपनी डायरी के किसी कोने में
मैं प्रेम करता हूँ
दुनिया की सबसे ज्यादा शरीफ लड़की
से।
--सुधीर मौर्य