परियों, तितली, राजा-रानी की कथाएँ कभी पुरानी होती है क्या-कभी नहीं जब सुनो तब नई। एक जमाने में बुझोपुर में एक राजा था। बुझोपुर-शायद उस राज्य का पहले नाम कुछ और रहा होगा पर अब था बुझोपुर।
इसके पीछे भी
एक कथा है।
राजा था पहेलियां बूझने और
बुझवाने का बड़ा
रसिया। दरबार का
राज काज एक
तरफ सारे दरबारी
अफीम के गोले
दबा कर बुझनी,
बूझने और बुझवाने में मस्त
रहते। राजा खुश
हो गया तो
इनाम से लद-पद जाते। राजा
भी प्रसन्न रहता
अपनी प्रशंसा और
चाटुकरिता सुनकर।
दीवान विजयमान, राजा
को समझाने की
कोशिश करता पर
राजा सुना-अनसुना
कर देता विजयमान बना भी
तो था नया-नया मन्त्री होगा
बीस-बाई का
नवयुवक जो अपने
पिता की मृत्यु
के बाद मन्त्री पद पर
पदासीन हुआ था।
बेचारा विजयमान मन
मसोस कर रह
जाता। सनकी राजा
को सनक सूझी
और फरमान जारी
कर दिया गया
जिसकी बूझनी अबूझ
रहेगी, सुकुमारी राजकुमारी जिसका परस
चंदा की चांदनी
और हवाओं की
बयार तक को
न मिला है
वो उसकी हो
जायेगी।
प्रतिरोध तो विजय
मान ने किया
था और राजा
को समझाने का
यत्न किया था,
कि सुकुमारी राजबाला का मन
जान लेना चाहिये,
पर राजा मुछन
पर ताव देते
हुए बोला (जो
बोला सो बोला
अब तो ऐसा
ही होगा, उसे
अपनी बात से
पलटने पर लगा
कि उसकी हेठी;भ्नदेपद्धहोगी, हाँ राजकुमारी जो जाती
है रसातल में
सो जाये उसकी
बला से)।
सनकी ने दूसरी
शर्त भी तो
रखी थी जिसकी
बूझनी, अबूझ नहीं
रहेंगी उन्हें तीन
वर्ष तक राज
की तरफ से
पत्थर का काम
करना पड़ेगा, वो
भी बिना परिश्रमिक के।
वो राजकुमारी थी
ही ऐसी, जिसकी
चर्चा दूर-दूर
तक थी और
नितम्ब और उरोज
के ऊपर तमाम
कवि एक दर्जन
छंद बंद्ध रिसाले
लिख चुके थे।
सो अब तो
उसे कोई भी
हासिल कर सकता
था।
राजकुमारी के अनछुए
बदन की कामना
इतने लोगों को
वहाँ खींच लाई
थी कि दीवान
को उनको ठहराने
के लिए रावरी का
प्रबन्ध करना पड़ा
वो भी इतना
कि राज्य में
तम्बू-कनाते कम
पड़ गई। लोग
आते, बूझनी सुनाते,
तरह-तरह की
पर वो अबूझ
न रहती। दरबारी
उन्हें बूझाकर देते,
और फिर उन्हें
लाद दिया जाता
पत्थर तोड़ने वाली
खादानों के लिये।
उन्हें महल में
सैनिकों की सुरक्षा में खादानों की
तरफ जाते देखकर
भी लोगों का
जोश कम न
होता और उनमें
एक-दूसरे से
पहले दरबार में
पहुंच कर बूझनी
सुनाने की होड़
रहती। उन्हें हर
पल डर रहता
कि कहीं दूसरा
बाजी मार के
राजकुमारी हथिया न
ले।
दस-बीस-सैकड़ों और फिर
हजार के ऊपर
पहुंच गये पत्थर
तोड़ने के लिए,
राजकुमारी पाने की
हसरत दिल में
दबाये। राज्य के
दूर एक गांव
में रहता था
माली, छोटा सा
बगीचा, पूरे दिन
पेड़-पौधे सिंचता,
रखवाली करता। रात
को भोजन करके
चादर तान के
सोता, फिर भोर
मिनसारे उठकर फूल
चुनता और हाट
में बेच देता।
हाट से आने
की बेला वो
कुछ न कुछ
जरूर लाता अपनी
फूल सी बेटी
के लिए। जो
थी पन्द्रह-सोलह
की छरहरी अल्हड़
कलियों को उनमान
और नाम था
उसका सुमन।
वो सारे बगीचे
में तितली की
तरह उड़ती फिरती,
हंसती, इठलाती और
अपने बापू के
हाथ का बनाया
खाना बापू के
हाथ से ही
खाती। ले-दे
के दो आदमी
का परिवार था
मां तो सुमन
की बचपन में
ही गुजर ही
गई थी।
रात फिर दिन
और दिन के
बाद फिर रात,
समय तो निकल
जाता है। इधर
बूढ़े माली, भोजा
को फिकर थी
जवान होती सुमन
के हाथ पीले
करने की और
उधर दीवान विजयमान जी जान
से रोकना चाहता
था राजकुमारी के
पाने की ललक
में पत्थर की
खदानों में जाते
लोगों को।
सो दीवान ने
दिमाग के घोड़े
दौड़ाना चालू किया
पर कोई जुगत
न भिड़ी। बहुत
सोचा तो दिमाग
में घंटी बजी
सारे फसाद की
जड़ राजकुमारी है
सो क्यों न
उसे गायब कर
दिया जाये, न
रहेगा बांस और
न बजेगी बांसूरी।
महीना था सावन
का, राजकुमारी नियम
से महल के
बाहर देव महादेव
पे जाती थी
जल और बेलपत्र चढ़ाने पूरे
महीने तीसो दिन।
मन की कामना
का तो ठीक-ठाक देव महादेव
ही जाने पर
सहेलियों की ठिठोली
में यही था
कि घोड़ो पे
सवार कोई खुबसूरत राजकुमार की
तमन्ना में राजकुमारी ये नियम
पाले बैठी है।
ये ठिठोली तब
से ओर बढ़
गई जब से दूर-दराज से लोग
बुझती; इनरीदपद्धके सहारे
राजकुमारी के परस
को तरसने लगे
थे।
पता नहीं देव-महादेव ने राजकुमारी की मन
की सुन ली
थी या फिर
कोई वीद्ध बुझनी
पूछने वाला खुन्नस
खा बैठा था,
सहेलियों ने तो
यही समझा था
जब देव-महादेव
के मठिया से
बाहर निकलते ही,
एक सफेद कपड़े
जिसकी सूरत भी
सफेद कपड़े में
छिपी थी, राजकुमारी को खींच
कर घोड़े पर
बैठा लिया।
चिल्लाई तो थी
राजकुमारी, पहरूऐ दौड़े
थे पर वो
सफेद जिस ;श्रपदद्धघोड़े पर राजकुमारी को लिए
हवा हो गया।
जो उस सफेद
भूत ने राजकुमारी को लेकर
निकल गया पर
पहरूऐ पीछे थे।
वो सरपर घोड़ा
दौड़ाते एक दूर
गाँव पहुँचा, वहीं
जहाँ भोजा माली
रहता था अपनी
फूल की बेटी
सुमन के संग।
एक तो जवान
होती बेटी की
चिंता ले-दे
के किसी तरह
रोजगार का जुगाड़,
ऊपर से ये
नई नवेली आफत।
आज जो भोजा
पहुंचा था बगीचे
में पाया एक
पकरिया के पेड़
के नीचे एक
थका हारा युवक
सफेद कपड़ों में
जो जब माटी
लगने से मैली
कुचैले हो चुके
थे। उसके साथ
ही पकरिया की
जड़ पे बैठी
थी हीरे जवाहरात से लदी
मेनका की उनमान
बाला। साथ ही
खड़ा था कत्थई
रंग का घोड़ा।
सो जब सफेद
जिन ने राजकुमारी का अपहरण
किया तो वो
बहुत घबराई, रोई-चिल्लाई पर राजकुमारी के दिल
से तब डर
निकल गया जब
छीना झपटी में
जिन के सर
से मुंह तक
बंधा साफा खुल
कर जमीन पर
गिर गया वो
तो बांका दीवान
विजय मान था।
राजकुमारी ने अपना
अंग-अंग, दीवान
की बांहों में
ढीला छोड़ दिया
और आंखे मूंद
के अचीती हो
गई वो भी
पहले से ही
दिल ही दिल
में दीवान पर
मरती थी, सो
आज देव महादेव
की कृपा से
वो घड़ी आ
गई, सो राजकुमारी ने सोचा
क्यों न दीवान
की मजबूत बांहों
और सख्त छाती
का मजा घोड़े
की पीठ पर
लिया जाये।
देहाती भोजा इस
राजसी जोड़े को
देखकर अचकचा गया,
उससे कुछ बोलते
ही न बना।
सो दीवान खुद
उठा और उसने हाथ
जोड़ के भोजा
को प्रणाम किया।
कोई राजकुमार के
उनमान आदमी उसे
हाथ जोड़े ये
बात तो भोजा
के लिए सदेह
स्वर्ग जाने जैसी
होगी। वो अंदर
हाथ जोड़ के
बोला। अन्नदाता काहे
हाथ जोड़ के
जिन्दा नरक में
ढकेलत हो। आप
सब तो माई
बाप है हमार।
माथा ठनका दीवान
विजय मान का, लगा
जो इस देहाती
ने पहचान लिया
होगा सो एक
अलग मुसीबत। सो
बात बनाते अदेर
बोला। नहीं काका
वो क्या हुआ
मैं अपनी दुल्हन
का गौना लेकर
आ रहा था।
रास्ते में एक
बारहसिंगा का जोड़ा
संग क्रीड़ा में
लगा था सो
मैं लजवंती दुल्हन
की लाज दूर
करने लिए तनिक
जोरपूर्वक उसे वहां
ले गया। अभी
मैं क्रीड़ा दिखाने
के लिये नवेली
की ठोड़ी को
हथेली से उसका
सर ऊपर उठाया
ही था, कि
न जाने कहां
से मधुमक्खी की
नई डकैती की
फौज आ झपटी
सो दुल्हन को
झटपट घोड़े पे
बैठाकर वहां से
सरपर निकला। वहां
से जो निकला
सो यहां आके
रूका। बाकी पीछे
क्या हुआ सो
वो देव महादेव
जाने। सोचा कुछ
देर सुस्ता के
निकल जायेंगे।
दीवान अपनी बनाई
आपबीती सुना ही
रहा था कि
भोजा की छोरी
सुमन भी वहां
आ गई, और
उसकी आंखे बारहसिंगों के संग
क्रीड़ा की बात
सुनकर लाज से
नीचे गई, और
यही हाल राजकुमारी का भी
हुआ।
सो भोजा कुछ
सोचकर उस जोड़े
को मिट्टी के
बने घर में
ले आया और
हाथ में देखो
किस्मत वो राजकुमारी जो रात
को निकले तो
सखियां चंवर डुलाये,
पांव रखे तो
भी मखमल के
ऊपर और आज
वही सख्त जमीन
पर बिना किसी
वैभव के चल
रही थी।
दीवान और राजकुमारी दोनों के
शरीर पर ढेरों
जवाहरात थे सो
उसने उनको किया
भोजा के हवाले
और बात बनाई
वो अपने मुल्क
जाकर देखेगा वहां
सब ठीक है
तभी अपनी पत्नी
को ले जायेगा। सो एक
दिन वो राजकुमारी को वही
छोड़ रात के
अंधेरे में रूखसत
हुआ।
उधर दीवान गया
और इधर माली
की लड़की सुमन
एकांत जानकर पहुंची
राजकुमारी के पास,
और राज-कुमारी का
हाथ अपने हाथ
में लेकर बोली,
क्या कह कर
बुलाऊं तुम्हें। सो
राजकुमारी बोली बड़ा
उपकार है तुम्हारा जो ऐसे
वक्त में हमें
आश्रय दिया सो
हम बहनें हुई,
सहेली बनी आज
से और तूं
लीला कह के
बुला मुझे क्योंकि यही नाम
है मेरा। सो
दोनों सहेलियां गले
मिली साथ भोजन
किया और साथ
सोई। अगले दिन
लीला और सुमन
दोनों बगीचे में
टहल रही थी
सो सुमन ने
एक पौधे को
दिखाते बोली आज
इस पर फूल
लगा है सात
रंगों वाला वो
साल में एक
बार आता है,
और वो इसे
किसी को नहीं
देती। इतना कह
कर सुमन आगे
बढ़ गई पर
लीला फूल की
सुन्दरता देखकर वहीं खड़ी
रह गई, उसे
यूं देखकर सुमन
ने पूछा क्या
हुआ सो लीला
कुछ न बोली।
उसके मन की
जानते हुए सुमन
ने वो सतरंगी
फूल तोड़ कर
लीला के हाथ
में देती बोली
उदास न हो
जो मेरा है
वो सब तेरा।
लीला भी अपने
गुलाबी होठों पर
बच्चों की नई
हंसी लाते बोली
जो मेरा है
वो भी सब
तेरा। सो सुमन
ने मालूम नहीं
ठिठोली की या
नहीं पर बोला
तेरा पति भी।
उसकी बात पर
लीला ने होठों
से नहीं आंखों
से सहमति दी।
फिर दोनों सखियां
न जाने कितनी
देर गले लग
के खड़ी रही,
एक-दूसरे के
उरोजो के उरोजों
से दबाये हुये।
सात दिन बीते
और इन सात
दिन में लीला
और सुमन पक्की
सहेलियां बन चुकी
थी, राजकुमारी और
किसान की दोस्ती। सातवें दिन
दीवान वापस आया
और फिर भोजा
को नयी कहानी
सुनाई-
-उसके घर में
कोई न बचा
सबको डकैतों ने
लूटकर मार दिया
और जो घर
में बचा था,
वह वो साथ
ले आया।
-साथ लाये माणिक,
पन्ने हीरे-जवाहरात देखकर भोजा
की आंखें खुली
की खुली रह
गई। सो दीवान
की पीठ पर
हाथ सहलाते बोला,
इसे अपना ही
घर समझो जब
तक चाहो आराम
करो।
-अन्धे का; क्या
चाहिए दो आंखे
-सो दीवान वही
जम गया।
-बड़े जतन से
सुमन ने रनिवास
तैयार किया, सुहाग
सेज सजाई और
एक पहर रात
ढ़लते ही दीवान
के पास लीला
को पहुंचा दिया।
-दीवान को अपनी
तरफ बढ़ते देख-लीला बोली आपने
मेरा अपहरण किया
सो ठीक यहां
लाये सो वो
भी ठीक, पर
ये कोई तौर
न होगा जब
तक मैं व्याहता नहीं बन
जाती।
-सो दीवान उसे
कुछ समझा पाता,
उससे पहले ही
वे किवाड़ खोल
बाहर निकल आई।
घर से बाहर
निकल कर खेती
है कि सुमन
चमकते चांद के
उजास में टहल
रही है। लीला
को यूं बाहर
देखकर भाग कर
सुमन उसके पास
आई, और उसका
यूं रनिवास से
बाहर आने का
कारण पूछा सो
लीला बोली-मेरी
प्यारी सहेली सुन,
मेरे पति पर
तेरा भी हक
सो आज की
पहली रात तुझको
ये तेरी सहेली
की भेंट हैं।
यंू सुमन सकुचाती-लजाती
कुछ न बोली
और लीला ने
आनन-फानन उसे
अपने बदन से
सुहाग का जोड़ा
उतार कर उसे
पहना दिया, और
उसकी कोमल कलाई
पकड़ कर रनिवास
के अन्दर ढकेल
दिया।
दीवान विजय मान
ने सुहाग जोड़े
में लिपटी मालिन
को सुहाग सेज
पर लेटा दिया
और वो मालिन
सुमन भी उसकी
चौड़ी छाती में
दुबक गई। विजय
मान के तूफान
का सामना उसने
पीड़ा और सिसकारियों के साथ
किया। फिर विजय,
सुमन के उरोजों
पर सर रख
के सो गया
और सुमन भी
तृप्ति को प्राप्त कर सुख
के साथ सो
गई।
यूं अगले दिन
लीला ने सुमन
से सुहाग रात
का किस्सा पूछा
तो लजाते हुए
सुमन ने दास्तां बयां कर
दी। दास्तां सुन
के लीला के
मन में हरारत
जाग उठी और
जब सुमन ने
शरारत से उसके
गाल पर चिकोटी
काट के बोली
अब तेरी बारी
है री लीला
तो उसने सहमति
में आंखे झुका
ली।
यूं दोनों सहेलियों ने एक
पुरूष बांट लिया
और दोनों ही
उसकी व्याहता न
थी हर दूसरी
रात एक सहेली दीवान
के साथ सोती
और फिर अगली
रात-दूसरी।
यूं वक्त गुजरा
और यूं गुजरे
वक्त के साथ
सुमन की कोख
पहले फली और
पूरनमासी की रात
चमकते चांद की
रात में चांद
के ही उनमान
एक बच्चे को
उसने जन्म दिया।
यूं भोजा माली
की झोपड़ी बच्चे
की किलकारी से
गूंज उठी और
भोजा ने भी
मन में पत्थर
रख के इस
किस्मत का खेल
समझकर कबूल कर
दिया।
इधर ये बच्चा
चन्द्रमा की कला
के उनमान बढ़ने
लगा, उधर सनकी
राजा, बेटी के
अपहरण से दुखी
हो उसे ढूंढने
के लिए और
उतावला हो बैठा।
रात दिन पहरूऐ
गिद्ध-चील की
नई दीवान को
खोजते फिरते थे
और यूं एक
दिन वो उस गांव
तक पहुंच गये
जहां दीवान, लीला
के साथ आश्रय
में था।
आज लीला की
कोख फले पांच
महीने पूरे हुए
थे सो एक
छोटी सी दावत
थी। सजी-धजी
सुमन और लीला
चहक रही थी,
सुमन की गोद
में उसका डेढ़
साल का बच्चा
अजय था। भोजा
आने वालों की
तीमारदारी में जुटा
था। सो तभी
वहाँ पहरूऐ आ
पहुंचे और बात
ही बात में
दीवान को हथकड़ी
एवं बेड़ियों से
जकड़ दिया। सुमन
के पास से
लीला को खींच
लिया। भोजा आगे
बढ़ा प्रतिवाद को
तो उसके सीने
खंजर पैवस्त हो
गया, वो वहीं
तड़प कर ढ़ेर
हो गया।
भोजा का हाल
देखकर सबको सांप
सूंघ गया फिर
कोई आगे न
बढ़ा और पहरूऐ
दीवान और राजकुमारी, राजसी कैदियों को बांधकर
आनन-फानन रूखस्त
हो गये।
इधर अकेली रह
गई सुमन अपने
बच्चे के साथ
रोती तड़पती और
उधर लीला को
राजसी रनिवास में
ढकेल कर अगले
ही दिन दीवान
विजय मान को
तुरन्त बिना- किसी
सवाल-जवाब के
सनकी राजा ने
सूली पर चढ़वा
दिया।
यूं दो नारियां जो व्याहता न थी
फिर भी एक
साथ विधवा हो
गई पर उन्हें
जीवित रहना था,
एक को अपने
गोद में खेलते
बच्चे के लिए
और एक को
अपनी कोख में
पलते हुए बच्चे
के लिए।
लीला और सुमन
दोनों आंसू बहाती
रहती एक महल
में और एक
झोपड़ी में।
वक्त की चाल
कब ठहरी है
कब ठहरेगी वो
निर्बाध चलता रहा
है चलता रहेगा।
सो जब वक्त
पूरा हुआ पूरे
नौ महीने नौ
दिन अपनी कोख
में रखने के
बाद राजकुमारी लीला
ने जन्म दिया
उर्वशी , एक लड़की
को।
इधर माली अजय
अपनी मां सुमन
के साथ बगीचे
में खेलते बढ़ा
हो रहा था
और उधर वो
बच्ची जिसका नाम रखा
गया था मीनाक्षी वो बड़ी
हो रही थीं
अपनी मां लीला
के साथ महल
में।
यूं बात ही
बात में पन्द्रह सावन बीत
गये और वो
राजकुमारी मीनाक्षी सच
उर्वशी की नई
चटक कर कली
से फूल बनने
की राह पर
थी। सारे राज्य
में बनने की
राह पर थी।
सारे राज्य में
उसकी खुबसूरती के
कसीदे गढ़े जाते
थे।
इधर अजय अब
सत्तरह साल का
बांका जवान हो
चुका था, वो
जिधर से निकलता
उधर की सारी
क्वारियां ठण्डी आहे
भर के रह
जाती।
वक्त बदला, बच्चे,
जवान हो गये,
जवान बूढ़े हो
गये और बूढ़े
परलोक सिधार गये।
नहीं बदला अगर
कुछ तो वो
थी उस सनकी
राजा की सनक।
इस बार भी
वही शर्त थी
जो राजकुमारी लीला
के वक्त थी
बस फर्क इतना
था कि इस
बार इन पहेली
वाले के साथ
फेरे पड़ने थे
राजकुमारी मीनाक्षी के।
लोग आते पर
हार जाते और
भेज दिये जाते
पत्थर तोड़ने के
लिए। धीरे-धीरे
ये खबर पहुंची
वहां जहां अजय
रहता था सो
उसने भी किस्मत
आजमाने की सोची
और चल पड़ा
राजधानी की तरफ।
चकाचौंध देखकर दरबार
की एक बार
तो वो चकरा
गया था, एक
से एक दरबारी
मुछों पर तांव
फेरते, जांघों पर
तलवार रखे, नाचती
पतुरिया और सबसे
ऊपर सिंहांसन पर
बैठा था वो
सनकी।
सो चालू हुआ
वो बूझनी का
दौर।
अजय ने एक
से एक कठिन
बूझनी पूछी पर
किसी न किसी
ने उसे हल
कर दिया सो
हारकर अजय ने
वो पूछा जो
उसकी मां उसे
लोरी सुनाते हुए
गाती थी और
जिसका हल खुद
अजय को मालूम
न था।
उसने पूछा-
‘भैंस पेड़ चढ़ी
बबूल पर लप-लप गूलर खाए’
सारे दरबारी एक-दूसरे का मुंह
तकने लगे सबने
बहुत कयास लगाये
पर सब निष्फल।
सुबह से शाम
हो गई पर
बूझनी अबूझ की
अबक्ष रही। सो
थक कर राजा
ने पूछा-ऐ
लड़के तू बता
इसका मतलब।
सो हाथ जोड़
कर अजय बोला-महाराज, शर्त में
ये तो शामिल
न था कि
हल बताना जरूरी
है। सो उसकी
बात सुन वो
सनकी निरूतर हो
गया।
बड़ी धूम-धाम
से राजकुमारी मीनाक्षी के फेरे अजय
के साथ हुए।
यूं अजय का
बांकघन देखकर मीनाक्षी ने अपने
भाग्य को सराहा
उस पर गर्व
किया।
रनिवास में, सुहाग
सेज पर लजाती
बैठी थी मीनाक्षी जब वहां
अजय पहंचा अपनी
नई नवेली दुल्हन
के साथ सुहाग
रात मनाने।
घूंघट उतार कर
उसका अजय ने
उसके उधर चूमते
हुए उसे सुहाग
सेज पर लिटा
दिया।
उधर महल से
सट कर बरगद
के पेड़ पर
बैठे चकवी ने
चकवे से बोला
देखो कैसा अन्धेरा है एक
ही बाप के
जाये आज शय्या
सहचरी कर रहे
हैं।
चकवा बोला ये
तो रीत है-
ये कैसी रीत
चकवी तनिक तमक
कर बोली।
चकवा उसे समझाता
बोला, देख महल
के रनिवासों में
यहीं होता आया
है, अरे बाप
अपनी जायी के
साथ सोता है
ये तो फिर
भी गनीमत है।
चकवी बोली वो
ठीक है पर
उस बूझनी का
हल क्या है
चकवा बोला उसका
हल तो खुद
उसको लिखने वाले
अमीर खुसरांे को
भी मालूम नहीं
था, सो किसी
ओर को क्या
होगा।
चकवी बोली चलो
अच्छा हुआ इससे
पत्थर तोड़ने वालांे
की जान तो
छूटी।
चकवा चहक कर
बोला हां-
‘खुसरो अमीर के
बलि बलि जायें’
--सुधीर मौर्य