Wednesday, 5 August 2015

अफ़साने की नायिका - सुधीर मौर्य


मै बनता हूँ
नायिका
हर अफ़साने में तुम्हे
समेट
लेना चाहता हूँ
तुम्हारे वज़ूद की खुश्बू
पा लेना चाहता हूँ
तुम्हारी
साँसों की गरमी
तुम्हारे
होठों की नरमी
डूबना चाहता हूँ
मेरे काल्पनिक स्पर्श से
उट्ठे तुम्हारी नाभि के वलय में 

ओ मेरे अफ़साने की नायिका
मै प्यार करता हूँ
अफ़साने में तुम्हे
क्योंकि
प्रेयसी कोई ओर है
हक़ीक़त में मेरी।
--सुधीर मौर्य 


Sunday, 2 August 2015

फ्रेंडशिप बेंड - सुधीर मौर्य

लांघ कर अपनी अटारी की 
मुंडेर
मेरी अटारी पे
आके
उसने बांधा था
मेरी कलाई पे
लजाते - सकुचाते
फ्रेंडशिप बेंड
जिसका रंग था
राजहंस के पंखो जेसा।

बेंड तो बेंड था
वक़्त के साथ
टूट कर बिखर गया।
लेकिन उसका उजलापन
अब भी मेरी रातों में
चांदनी बिखेरता है
मेरी कलाई पर
तेरी अँगुलियों का लम्स
अब भी महकता है।
में जब भी देखता हूँ
अपनी कलाई
ऐ मेरे
बिछड़े दोस्त मुझे तेरी
दोस्ती
याद आती है।
--सुधीर मौर्य