मैं ठुकरा सकता था
तुम्हारा प्रेम
ठीक वैसे ही
जैसे कभी अर्जुन ने
ठुकराया था
उर्वशी का प्रेम
ओ लड़की।
पर तूने प्रेम कहाँ किया था
तूने तो बनाया था
मुझे
आलम्बन अपने स्वार्थ का
कहो कैसे ठुकराता मै तुझे ?
जबकि तू प्रेम नहीं
चाहती थी ख़ुशी अपनी।
--सुधीर मौर्य