ओरछा के दीवान जुझार सिंह के छोटे भाई थे लाला हरदौल। सच कहूँ तो लाला हरदौल का नाम , किस्सा मैने बचपन
में ही रंगमंच की एक विधा 'नौंटकी' से जान लिया था। जहाँ भक्त हरदौल का मंचन आम बात है। जनमानस
पूरी रात टकटकी लगाये भक्त हरदौल में खोया रहता है। मैने भी कोई आधा दर्ज़न बार ये मंचन देखा होगा।
बुंदेलखंड के हर गाँव - कसबे में उनके नाम पर चौतरा होता है। वही उनका पूजा स्थल होता है। लाला हरदौल को
अपने अग्रज जुझार सिंह और भाभी पार्वती का अपार स्नेह प्राप्त था। पार्वती निसंतान थी और वह हरदौल से पुत्रवत
स्नेह रखती थी। लाला हाइडॉल के कुछ विरोधियों ने जुझार सिंह के कान भरे, हरदौल और उनकी भाभी के बीच कु -
सम्बन्ध है। लोगो के बार - बार उकसाने पर जुझार सिंह ने पार्वती को हरदौल को विषपान कराने की आज्ञा दे दी।
अब रानी के लिए परीक्षा की घडी थी। एक ओर पति की आज्ञा और दूसरी ओर पुत्रवत हरदौल। अन्तता : रानी
पार्वती ने पवित्र सम्बन्ध की रक्षा के लिए पति की आज्ञा अनुसार हरदौल को विषपान कराया। लाला हरदौल ने हँस
कर अपने प्राणो का उत्सर्ग कर दिया।
मृत्यु का आलिंगन करते ही लाला हरदौल अमर हो गए।
हरदौल की एक बहन थी, नाम कुंजावती। उसकी पुत्री का विवाह था। भाई के यहाँ 'भात' का निमंत्रण देने की प्रथा
है। कुंजावती भाई के घर गई। जुझार सिंह बंधू हत्या के दोषी थे। इसलिए कुंजावती हरदौल की समाधि पर गई। मन ही
मन भाई को आमंत्रित किया।
और फिर कुंजावती और सारे गाँव ने देखा कि लाला हरदौल की छाया विवाह की हर रस्म में उपस्थित रही।
हरदौल खुद आये और भाई होने का कृतव्य पूरा किया। हर रस्म बिना किसी रूकावट के संपन्न हो गई।
तब से ये प्रथा चल पड़ी। किसी के भी घर में विवाह या अन्य कोई मंगल कार्य होता है तो घर की औरतें लाला
हरदौल के चबूतरे पर जाती हैं और लोकगीत गा गा कर उन्हें आमंत्रित करती हैं। शुभ कार्य निर्विघ्न होने की प्रार्थना
करती है।
तब से ये प्रथा चल पड़ी। किसी के भी घर में विवाह या अन्य कोई मंगल कार्य होता है तो घर की औरतें लाला
हरदौल के चबूतरे पर जाती हैं और लोकगीत गा गा कर उन्हें आमंत्रित करती हैं। शुभ कार्य निर्विघ्न होने की प्रार्थना
करती है।
निर्विघ्नता, प्रेम और पवित्रता के लोकदेवता लाला हरदौल इस तरह सारे बुन्देलखण्ड में गणपति की तरह प्रथम पूज्य
हो गए। लाला हरदौल की कथा का मंचन आज भी भक्त हरदौल के नाम से गाँव - गाँव में होता है।
भोपाल से प्रकाशित होने वाली पत्रिका रूबरू दुनिया के जून २०१४ के अंक में प्रकशित।
सुधीर मौर्य
गंज जलालाबाद, उन्नाव ( उ प्र )- 209869
में ही रंगमंच की एक विधा 'नौंटकी' से जान लिया था। जहाँ भक्त हरदौल का मंचन आम बात है। जनमानस
पूरी रात टकटकी लगाये भक्त हरदौल में खोया रहता है। मैने भी कोई आधा दर्ज़न बार ये मंचन देखा होगा।
बुंदेलखंड के हर गाँव - कसबे में उनके नाम पर चौतरा होता है। वही उनका पूजा स्थल होता है। लाला हरदौल को
अपने अग्रज जुझार सिंह और भाभी पार्वती का अपार स्नेह प्राप्त था। पार्वती निसंतान थी और वह हरदौल से पुत्रवत
स्नेह रखती थी। लाला हाइडॉल के कुछ विरोधियों ने जुझार सिंह के कान भरे, हरदौल और उनकी भाभी के बीच कु -
सम्बन्ध है। लोगो के बार - बार उकसाने पर जुझार सिंह ने पार्वती को हरदौल को विषपान कराने की आज्ञा दे दी।
अब रानी के लिए परीक्षा की घडी थी। एक ओर पति की आज्ञा और दूसरी ओर पुत्रवत हरदौल। अन्तता : रानी
पार्वती ने पवित्र सम्बन्ध की रक्षा के लिए पति की आज्ञा अनुसार हरदौल को विषपान कराया। लाला हरदौल ने हँस
कर अपने प्राणो का उत्सर्ग कर दिया।
मृत्यु का आलिंगन करते ही लाला हरदौल अमर हो गए।
हरदौल की एक बहन थी, नाम कुंजावती। उसकी पुत्री का विवाह था। भाई के यहाँ 'भात' का निमंत्रण देने की प्रथा
है। कुंजावती भाई के घर गई। जुझार सिंह बंधू हत्या के दोषी थे। इसलिए कुंजावती हरदौल की समाधि पर गई। मन ही
मन भाई को आमंत्रित किया।
और फिर कुंजावती और सारे गाँव ने देखा कि लाला हरदौल की छाया विवाह की हर रस्म में उपस्थित रही।
हरदौल खुद आये और भाई होने का कृतव्य पूरा किया। हर रस्म बिना किसी रूकावट के संपन्न हो गई।
तब से ये प्रथा चल पड़ी। किसी के भी घर में विवाह या अन्य कोई मंगल कार्य होता है तो घर की औरतें लाला
हरदौल के चबूतरे पर जाती हैं और लोकगीत गा गा कर उन्हें आमंत्रित करती हैं। शुभ कार्य निर्विघ्न होने की प्रार्थना
करती है।
तब से ये प्रथा चल पड़ी। किसी के भी घर में विवाह या अन्य कोई मंगल कार्य होता है तो घर की औरतें लाला
हरदौल के चबूतरे पर जाती हैं और लोकगीत गा गा कर उन्हें आमंत्रित करती हैं। शुभ कार्य निर्विघ्न होने की प्रार्थना
करती है।
निर्विघ्नता, प्रेम और पवित्रता के लोकदेवता लाला हरदौल इस तरह सारे बुन्देलखण्ड में गणपति की तरह प्रथम पूज्य
हो गए। लाला हरदौल की कथा का मंचन आज भी भक्त हरदौल के नाम से गाँव - गाँव में होता है।
भोपाल से प्रकाशित होने वाली पत्रिका रूबरू दुनिया के जून २०१४ के अंक में प्रकशित।
सुधीर मौर्य
गंज जलालाबाद, उन्नाव ( उ प्र )- 209869