Thursday, 16 May 2013

ओह मेरे देश !मुझे चकित करते हो तुम - सुधीर मौर्य



ओह 
मेरे देश !
मुझे चकित करते हो तुम 
जब देखता हूँ में 
नरपिशाच, हत्यारे और कामुक 
अफज़ल की मजार पर 
सर और घुटने देखते लोगो को 
जिसे मारा था 
वीर शिवाजी ने 
देश और धर्म की रक्षा के लिए। 

ओह 
मेरे देश !
मुझे चकित करते हो तुम 
जब देखता हूँ में 
देश की राजधानी में 
औरंगजेब रोड को 
वो औरंगजेब जिसने 
बहाई थी 
अकारण ही देश में रक्त की नदिया।

ओह 
मेरे देश !
मुझे चकित करते हो तुम 
जब देखता हूँ में  
अपने ही देश के लोगो को 
अपने ही देश में 
शरणार्थी होते। 

ओह 
मेरे देश !
मुझे चकित करते हो तुम 

(मेरी एक कविता का अंश )
---सुधीर मौर्य  





Sunday, 12 May 2013

बंगलादेश और पकिस्तान में अल्पसंखक विनाश की और- सुधीर मौर्य


आज बांग्लादेश के हालात जिस मोड़ पे खड़े है उसका अर्थ अब यही निकलता है की कट्टरपंथी वहां की ९ ० फीसदी आबादी वाले तबके को १ ० ० फीसदी आबादी बनाने की कमर कस चुके हैं। वो यकीनन  कामयाब हों जायेंगे क्योंकि उन्हें कोई भी रोकने वाला नहीं है। १ ० फीसदी वाले तबके को मौत, धर्मपरिवर्तन और पलायन जैसे आप्सन पर अमल करना होगा।

हम मूक दर्शक रहेंगे क्योंकि हम इस आग को पडोसी के घर में लगी आग समझ रहें हैं। जबकि आज पाच साल का बच्चा भी ये जनता है की पडोसी के घर की आग हमारे घर पर भी दस्तक देती है। और फिर हमारे घर में तो पहले से ही लोग पेट्रोल लेकर इस आग को हवा देने के लिए तैयार बैठे रहते हैं। 

हमने अगर अभी भी वक़्त की नब्ज़ नहीं समझी तो आने वाले वक़्त में हम कुछ भी समझने के लायक नहीं रहेंगे। बांग्लादेश और पकिस्तान में जिस निर्ममता से हिन्दुओ का  क़त्लेआम हुआ, उनकी लड़कियों के साथ बलात्कार हुआ उसे हम सब असहाय देखते रहे। भारत की अन्दर ही हम असहाय हैं कश्मीर में आज दवा के लिए भी कोई हिन्दू निवासी नहीं  मिलेगा। इन सब त्रासदी के शिकार लोगो की रूहों से हम माफ़ी मागने के भी काबिल नहीं।

जिस दिन हम इनकी रक्षा कर सकेंगे सही   अर्थों में हम उसी भारत के सच्चे निवासी कहलायंगे, पडोसी मुल्को के  अल्पसंख्यको की हमें ठीक वैसे ही रक्षा करनी होगी जैसे हम अपने मुल्क(अल्प्संखाको की रक्षा ) करते    हैं।
--सुधीर मौर्य 
  

Wednesday, 1 May 2013

सूरज तक प्रेम की राह - सुधीर मौर्य



दिसम्बर के महीने में 
लाल सायकल चलाने में 
तुम्हारे मुंह से 
निकली भाप 
मुझे 
पहाड़ो पे छाई 
धुंध की याद 
दिल देती थी।
और मै खो जाता था 
खुली आँखों में 
तुम्हारा सपना सजा कर 
कल्पनाओ के 
रास्ते पर 
जो जाते थे 
कभी मंदिर 
कभी नहर 
कभी पहाड़ 
और कभी-कभी 
अन्नत दूर 
सूरज तक।

मै बेतहाशा 
भागता रहा 
इन अधबुने 
सपनो के पीछे 
खुद को पुकारने वाली 
हर आवाज को 
अनसुना करके।

और देखो 
जब सपने बिखरे 
मै वहां खड़ा था 
जहाँ सपने थे,
तुम 
मुझे पुकारती 
आवाज़े।

सुधीर मौर्य 'सुधीर'
ग्राम और पोस्ट - गंज जलालाबाद 
जनपद - उन्नाव ( उत्तर प्रदेश )
 पिन – 209869