Saturday, 23 February 2013

पराधीन रिंकल


Sudheer Maurya
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कल 24 फ़रवरी को गरीब लड़की रिंकल को कैदी का जीवन बिताते हुए एक साल पूरा हो जायेगा। वो अब तक कैदी है, वो आज़ाद होगी भी या नहीं, मालूम नहीं। हम उसके लिए शायद बहुत कुछ कर न पाए, उसकी आज़ादी के लिए पुरे प्रयास हम न कर सके सो अगर वो कैदी है तो उसे कैद करने वालो के साथ - साथ कुछ दोषी तो हम भी हैं। उसकी आज़ादी के वास्ते जिस सपोर्ट की दरकार थी वो हुआ नहीं।
फेक्ट्री, आफिस, काम, मनोरंजन और फेसबुक और ऐसी ही गत्विधियों में मेरा विगत एक साल केसे निकल गया पता ही नहीं चला। बहुत से लोग एसे भी हैं जिन्होंने अपने दिन फाइव स्टार होटल की चकाचौंध और रातें हाथ में व्हिस्की का गिलास पकडे नाईट क्लब में गुजारी होंगी।
- ये है हमारी विकसित होती सभ्यता और व्यवस्था की बानगी।       
- पर कुछ लोग ऐसे भी हैं जो इस विकसित होती व्यवस्था में पराधीन हैं, गुलाम हैं। उन पर पाबन्दी लगा दी गई है। अब वो अपनी मर्ज़ी से   सांस भी नहीं ले सकते, हवा अब उनके बदन को छु नहीं सकती, सितारों की रौशनी उनके छत पे आकर उनके सर पर आशीष नहीं दे सकती। अब वो अपनी माँ की गोद में सर रख के सो नहीं सकते,अब वो अपने भाई की कलाई पर राखी नहीं बांध सकते।   
- क्यों ? क्योंकि अब वो पराधीन हैं, कैद में हैं।
- रिंकल कुमारी - मस्ती से पार्टी में झूमते हुए लोगो, देश के कर्णधारों, मानवाधिकार संगठनो के सड़े हुए अध्क्षो तुम सब इस एक लड़की के दर्द का अनुमान क्या लगा सकते हो। जो गुज़रे एक साल से एक प्राइवेट जेल में बंद है। जिसके बदन की नीलामी उसे कैद करने वाले रात - दिन कर रहे हैं। जिसका हर तीसरे महीने अबार्शन काराया  है जाता है, ताकि उसे सेक्स के लिए तैयार रखा जा सके। 
तसलीमा नसरीन के उस बयां पर जिसमे वो कहती है उनका योन शोषढ हुआ पूरा मीडिया और सभ्य समाज उनके लिए आवाज़ उठता है, पर इस लड़की के लिए नहीं क्योंकि वो अपने देश में एक गरीब अल्पसंखक है। रिंकल को तसलीमा से भी बहुत उम्मीदे होंगी की वो उस मासूम के लिए आवाज़ जरुर उठाय्न्गी। मुझे भी तसलीमा नसरीन से बहुत उम्मीद है की वो उस लड़की की आज़ादी के लिए आगे आयंगी। 
सुन्दर जवान लडकियों को हवस के लिए इस्तेमाल करने का खेल सिंध में सन सात सौ बारह से चालु है। यहाँ की भोली - भली मासूम लडकियों को अगुवा करके उनका योंन शोषढ़ निरंतर जारी है। मनीषा, मूमल रिंकल, विज्यन्ति, आशा और लता न जाने कितनी मासूम इस फ़ेअरिस्त में शामिल हैं जिन्हें जबरन सेक्स स्लेवरी के लिए मजबूर किया गया। 
में भारत के माननीय प्रधान मंत्री और राष्ट्रपति से अपील करता हु की वो इस मासूम को रिहाई के लिए कोई ठोस कदम उठाये। में आज की चर्चित लेखिकायं मनीषा कुलश्रेष्ठ, तसलीमा नसरीन, अरुंधती रे और सुधा मूर्ति से भी अपील करता हूँ की वो इस लड़की के लिए कुछ तो करे आखिर वो भी उन्की तरह एक स्त्री जाति से है।

ऐ रिंकल तेरी उम्मीदों ने अभी दम नहीं तोडा है, तेरी रिहाई के लिए असद चंडियो, राज कुमार, वेंगस, मारवी सरमद, सुनील दिक्षित, राकेश लखानी जैसे लोग निरंतर संघर्ष कर रहे है और यही हमारी उम्मीद है।
तू हौसला रख रिंकल तेरी रिहाई होगी - जरुर होगी।

सुधीर मौर्य 'सुधीर'
गंज जलालाबाद, उन्नाव 
209869         

Thursday, 21 February 2013

वो हिन्दू थे - सुधीर मौर्य



Sudheer Maurya
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उन्होंने विपत्ति को 
आभूषण की तरह
धारण किया 
उनके ही घरों में आये 
लोगों ने 
उन्हें काफ़िर कहा 
क्योंकि 
वो हिन्दू थे।

उन्होंने 
यूनान से आये घोड़ो का 
अभिमान 
चूर - चूर 
कर दिया  
सभ्यता ने 
जिनकी वजह से 
संसार में जन्म लिया 
वो हिन्दू थे।

जिन्होंने 
तराइन के मैदान में 
हंस - हंस के 
हारे हुए 
दुश्मनों को 
जीवन दिया 
वो हिन्दू थे।

जिनके मंदिर 
आये हुए लुटेरो ने 
तोड़ दिए 
जिनकी फूल जैसी 
कुमारियों को 
जबरन अगुआ करके 
हरम में रखा गया 
जिन पर 
उनके ही घर में
उनकी ही भगवान् 
की पूजा पर 
जजिया लगया गया 
वो हिन्दू थे।

हा वो 
हिन्दू थे 
जो हल्दी घाटी में 
देश की आन 
के लिए 
अपना रक्त 
 बहाते रहे 
जिनके बच्चे 
घास की रोटी 
खा कर 
खुश रहे 
क्योंकि 
वो हिन्दू थे। 

हाँ वो हिन्दू हैं 
इसलिए 
उनकी लडकियों की 
अस्मत का 
कोई मोल नहीं 
आज भी 
वो अपनी ज़मीन 
पर ही रहते हैं 
पर अब 
उस ज़मीन का 
नाम पकिस्तान है।

अब उनकी 
मातृभूमि का नाम 
पाकिस्तान है 
इसलिए 
अब उन्हें वहाँ 
इन्साफ 
मांगने का हक नहीं 
अब उनकी 
आवाज़ 
सुनी नहीं जाती 
'दबा दी जाती है'
आज उनकी लड़कियां 
इस डर में 
जीती हैं 
अपहरण होने की 
अगली बारी उनकी है।

क्योंकि वो उन मासूमो 
में से 
रोज़ 
कोई कोई 
रिंकल से फरयाल 
जबरन 
बना दी जाती हैं 
इसलिए 

जिनकी बेटियां हैं 
वो हिन्दू है 
और उनके 
पुर्वज 
हिन्दू थे।     

(रिंकल कुमारी को समर्पित) 

सुधीर  मौर्य 'सुधीर'
गंज जलालाबाद, उन्नाव 
209869  

     

   



Monday, 18 February 2013

रकीब संग मुस्करा रहा था..



Sudheer Maurya 
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वो दिल पे नश्तर चला रहा था 
रकीब संग मुस्करा रहा था 

गिरा के आँचल बदन से अपने 
वो हमसे दामन बचा रहा था 

पहन के जोड़ा सितारों वाला 
अहद वफा का भुला रहा था 

जफा निभाता रहा जो हरदम 
वफा का किस्सा सुना रहा था 

जो कम हुई रौशनी शमा की 
'सुधीर' के खत जला रहा था 


सोच विचार से प्रकाशित 
सुधीर मौर्य 'सुधीर' 


Thursday, 14 February 2013

यशोधरा



Sudheer Maurya 
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दण्डपाणी की 

सुकोमल कन्या 
ऐ यशोधरा 
अभी बाकी है तेरा 
यशोगान।

अभी 
लिखे जाने है 
तेरे त्याग पर 
ग्रन्थ,
वो लेख 
जिनकी तू अधिकारी है।
  
बोधिसत्व को बुद्ध 
तेरे त्याग ने ही बनाया था।
पर तू 
उपेक्षित रह गई 
कलमकारों की नज़र से।

सीता
सावित्री 
सुलोचना 
सब को 
पूजा हमने।

ऐ त्याग की देवी 
यशोधरा 
 तेरी पूजा 
बाकि है अभी। 

सुधीर मौर्य 'सुधीर'
गंज जलालाबाद, उन्नाव 
209869  
    

Tuesday, 12 February 2013

तसलीमा नसरीन - बचपन में खुद के साथ हुए यौन शोषण को उजागर करती एक बहादुर लेखिका


उस दिन 16 अगस्‍त था, सन 1967। दो दिन पहले ही पाकिस्‍तान का स्‍वाधीनता दिवस मनाया गया था । मैं स्‍कूल से घर लौटकर मां का इंतजार कर रही थी। उनके घर आने पर ही मुझे नाश्‍ता-पानी मिलना था। नानी के मकान में प्रतिदिन शाम को किताब पढने की जैसी बैठकी जमती थी, वैसी ही जमी हुई थी। *** मै मां के न रहने पर अकेली थी, दरवाजे पर जाकर खड़ी हो गई। हाशिम मामा ने कहा, 'जा, बाहर जाकर खेल।'
 ... मुझे बाहर जाकर खेलने की इच्‍छा नहीं हुई।  मुझे भूख लगी हुई थी। मां जाली की आलमारी में ताला लगा गई थीं। नानी के आंगन के कुएं की बगल से होती हुई नारियल के पेड़ के  नीचे से अपने घर के सूने आंगन की सीढि़यों पर पहुंचकर गाल पर हाथ रखकर मैं अपने पैर पसारकर बैठ गई। तभी शराफ मामला उधर आए।
... उन्‍होंने मुझसे पूछा, 'बड़ी बू कहां  हैं ?'
मैने गालों पर हाथ रखे-रखे सिर हिलाकर कहा, 'नहीं हैं।'
'कहां गई हैं?' जैसे अभी उन्‍हें किसी जरूरी काम से मां से मिलना था, उन्‍होंने इस तरह पूछा।
शराफ मामा ने सीढि़यों पर-मेरी बगल में पीठ पर हल्‍का धौल जमाते हुए कहा, 'तू यहां अकेली बैठी क्‍या कर रही है ?' 'कुछ नहीं' मैंने उदास होकर कहा।
शराफ मामा ने 'बड़ी बू कब तक आएगी?' पूछते हुए गालों से मेरा था हटाकर कोमल स्‍वर में कहा, 'इस तरह गालों पर हाथ रखकर नहीं बैठते, असगुन होता है । ' मेरा मन कहने को हुआ कि मुझे बड़े जोरों की भूख लगी है, मैं क्‍या खाऊं? मां अलमारी में ताला लगा गई हैं।
... चल तुझे एक मजे की चीज दिखाऊं ।' यह कहकर शराफ मामा खड़े हो गए और आंगन के पूरब में मेरे भाइयों के कमरे की दक्षिण दिशा में हमारे मकान के अंतिम छोर पर बने काली टीन वाले कमरे की ओर बढ़ने लगे।  उनके पीछे मैं भी चल पड़ी । ... शराफ मामा के साथ चलती हुई मैंने झाडि़यों में पैर रखने के पहले कहा, 'शराफ मामला इस जंगल में सांप रहते हैं।'
धत, डर मत ।  तू दरअसल बहुत बुद्धू है, एक बिलैया है । आ तुझे एक मजे की चीज दिखाऊं, जिसके बारे में किसी को पता नहीं ।'
... 'कैसी चीज, पहले बताओ ।' मैंने उधर जने से हिचकिचाते हुए कहा ।
'पहले बता देने से उसका मजा नहीं रहेगा ।' शराफ मामला बोले।
बाहर से अंगुली डालकर उस दरवाजे को खोलकर शराफ मामा भीतर घुसे। उनके पीछे-पीछे एक ही दौड़ में मैंने भी वह झाड़ी पार कर ली। उस मजे की चीज को देखने के लिए मै अपनी जान हथेली पर रखकर सांप वाली झाड़ी कूदकर चली आई थी। शराफ मामा की उस गोपनीय वस्‍तु को देखने का मुझमें कौतूहल जग गया था। कमरे में घुसते ही मरे चूहों की दुर्गंध से मेरी नाक सिकुड़ गई। चूहों के दौड़ने की आवाज कानों में आई। कमरे के एक तरफ जलावन की लकडि़यों का ढेर था। दूसरी तरफ एक छोटी चौकी बिछी हुई थी।
... शराफ मामा बोले, 'यह जगह बढिया है, यहां कोई नहीं है। किसी को हमारे यहां होने का पता ही नहीं चलेगा।' उनकी ऐसी आदत भी थी। वे बीच-बीच में अचानक गायब हो जाते थे। एक बार रसोई के पीछे मुझे बुलाकर ले जाने के बाद कहा था, 'एक मजे की चीज पीएगी?' उन्‍होंने अपनी जेब से दियासलाई निकालकर बीड़ी जलाई थी। शराफ मामा ने सिगरेट का कश जैसा कश लेकर मुंह से धुआं उगलते हुए उस जलती हुई बीड़ी को मुझे भी देते हुए कहा था, 'ले तू भी पी ।' मैने भी कश लेकर मुंह से धुआं निकाला था ।
... शराफ मामा की भूरी आंखों की चमक और उनके ओठों पर खेलनेवाली उस अनोखी मुस्‍कान के बारे में ठीक-ठाक बता नहीं सकती। 'अब तुझे वह मजे की चीज दिखाऊं' कहकर उन्‍होंने एक झटके में मुझे उस तख्‍त पर लिटा दिया। मैं एक इलास्टिक वाला हाफपैंट पहने हुए थी। शराफ मामा ने उसे खींचकर नीचे सरका दिया।मुझे बड़ी हैरानी हुईा अपने दोनों हाथों से मैं हाफपैंट ऊपर खींचते हुए बोली, जो मजे की चीज दिखाना है दिखाओ। मुझे नंगी क्‍यों कर रहे हो ?'
शराफ मामा ने हंसते हुए अपने शरीर का पूरा बोझ मुझ पर डाल दिया और दुबारा मेरा हाफ पैंट खींचकर अपने हाफ पैंट से अपनी छुन्‍नी बाहर निकालकर मेरे बदन से सटा दिया। मेरे सीने पर दबाव बढ़ने से मेरी सांस रुकने लगी थी। उन्‍हें ठेलकर हटाने की कोशिश करते हुए मैं जोर से बोली, 'यह क्‍या कर रहे हो? शराफ मामा हट जाओ, हटो।' अपने बदन की पूरी ताकत लगाकर भी मैं उन्‍हें हिला तक नहीं पाई।
'तुझे जो मजे की चीज दिखाना चाहता था, वह यही चीज है ।' शराफ मामा ने हंसते हुए अपना नीचे का जबड़ा कसकर भींच लिया। पता है, इसे क्‍या कहते हैं, चुदाई । दुनिया में सभी इसे करते हैं । तेरे अम्‍मा-अब्‍बू भी करते हैं, मेरे भी ।' शराफ मामा अपनी इंद्री को बड़े ताकत से ठेल रहे थे। मुझे बहुत खराब लग रहा था। शर्म से अपनी आंखों पर मैंने अपना हाथ रख लिया।
अचानक कमरे में एक चूहा दौड़ा। इस आवाज से शराफ मामा उछल पड़े। मैं अपना हाफ पैंट ऊपर खींचकर उस कमरे से बाहर भागी। झाडि़यों को पार करते वक्‍त सांप का डर मन में आया ही नहीं। मेरा दिल इतनी जोर से धड़क रहा था, जैसे वहां भी कोई चूहा दौड़ रहा हो। शराफ मामा ने पीछे से अद्भुत स्‍वर में कहा, 'यह बात किसी से कहना मत । कहेगी तो सर्वनाश हो जाएगा।'    
तसलीमा नसरीन
(आत्‍मकथा: खंड-एक: मेरे बचपन के दिन)
नोट- जिस वक्‍त की यह घटना है उस वक्‍त तसलीमा म‍हज पांच वर्ष की थीं।