तुम्हारा और मेरा नाम
अभी लिखा है
गाव से सटे जंगलो में
दरख्तों के तनो पर
बहती हुई नहर पर बने
बांध की दीवार पर
और हर उस जगह
जहाँ हम कभी साथ - साथ थे
जानती हो ? मेरे मन पे
अब भी तुम्हारा नाम लिखा है
जबकि मै जानता हूँ
तुम्हारे मन पे अब मेरा नाम नहीं।
--सुधीर मौर्य
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 7 - 5 - 2015 को चर्चा मंच पर चर्चा - 1968 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
bahut dhanywad sir
Deletebahut abhar
ReplyDeleteमन छूने वाली रचना
ReplyDeletebahut dhanywad rashmi mem ji.
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeletebahut aabhar
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