मैं तुम्हे
करता था यूँ प्यार
जैसे गाँव में करते है
किसान के बच्चे
तेल चुपड़ी उस रोटी से
जिस पर उसकी माँ
उरक देती है चुटकी भर नमक
करता था यूँ प्यार
जैसे गाँव में करते है
किसान के बच्चे
तेल चुपड़ी उस रोटी से
जिस पर उसकी माँ
उरक देती है चुटकी भर नमक
मैं तुम्हे
करता था यूँ प्यार
जैसे करते हैं गाँव के बच्चे
हवा और पानी की उन जहाज़ों से
जिसे बनाते हैं वो
घर में लाये गए सामान से निकले
अख़बार के टुकड़े से।
करता था यूँ प्यार
जैसे करते हैं गाँव के बच्चे
हवा और पानी की उन जहाज़ों से
जिसे बनाते हैं वो
घर में लाये गए सामान से निकले
अख़बार के टुकड़े से।
मैं तुम्हे
करता था यूँ प्यार।
--सुधीर मौर्य
करता था यूँ प्यार।
--सुधीर मौर्य
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (17-05-2015) को "धूप छाँव का मेल जिन्दगी" {चर्चा अंक - 1978} पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
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bahut bahut aabhar sir.
Deleteप्यार में गांव की मिठास घोल दी आपने। .
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
bahut dhanywad kavita ji..
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