Thursday 12 February 2015

प्रेम, ख़ुशी और स्वार्थ - सुधीर मौर्य



मैं ठुकरा सकता था 

तुम्हारा प्रेम 
ठीक वैसे ही 
जैसे कभी अर्जुन ने 
ठुकराया था 
उर्वशी का प्रेम


लड़की। 

पर तूने प्रेम कहाँ किया था 
तूने तो बनाया था 
मुझे 
आलम्बन अपने स्वार्थ का

कहो कैसे ठुकराता मै तुझे ?

जबकि तू प्रेम नहीं 
 चाहती थी ख़ुशी अपनी। 



           --सुधीर मौर्य