Thursday, 28 May 2015

कतरा- कतरा प्यार - सुधीर मौर्य


कतरा कतरा 
तेरी मुस्कान से सरशार है
ज़मी और आसमां का

लम्हा लम्हा
मेरी ज़िन्दगी का
मुन्तज़िर है
तेरे दीदार का

ऐ ईव !
ओ हव्वा !
मेरे  ख्वाबों की शतरूपा !
मैं डूबता हूँ
मैं तैरता हूँ
हर घडी तेरे रूप के सागर में

ओ मेरे साथ चलने वाले सफर के राही !
मैं चाहता हूँ
तुझे हमराह करना
अपनी ज़िन्दगी की सफर का

ओ जन्नत की शहज़ादी !
ऐ जमीं की राजकुमारी !
तूँ सहारा लेके देख तो मेरी बाँहों का
तेरा सहरा
फूलो से न खिल उठे तो कहना।

--सुधीर मौर्य     

8 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (30-05-2015) को "लफ्जों का व्यापार" {चर्चा अंक- 1991} पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

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  2. प्रेम का आधार लिए .... भावपूर्ण रचना ..

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  3. बहुत सुन्दर

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