Thursday 17 November 2016

प्रेम के रंग - सुधीर मौर्य

न जाने कितने दिन हुए 
इन्द्रधनुष में नहीं खिलते हैं 
पूरे रंग 
तेरे सुर्ख पहिरन में
जो झिलमिलाते हैं
तेरे बदन के साथ
मैने ही इन्द्रधनुष से मांग कर
भरे हैं प्रिये ! वो रंग

तेरे लहंगे की हरी किनारी
मैने मांगी है धरती के उस पहाड़ से
जहाँ सजती हैं कतारे
सुआपंखी फूलो की
मेरे ही कहने पर आये हैं सितारे
तेरी चुनर में फूल सजाने को
देख निखारा है
तेरी चोली को
सप्तऋषियों की कुमारियों ने
बना दिया है मैने
सारे आकाश को मंडप
और वेदी में जगमगा रही है
सूरज की लौ
देख लड़की !
मैं हूँ वही लड़का
जिसे तूँ कभी
प्रेम करती थी।
--सुधीर मौर्य

Tuesday 15 November 2016

नाम तुम्हारा टुनमुन है (बाल कविता) - सुधीर मौर्य

घर के पूरे आँगन में
तुम हौले - हौले चलते हो
भईया दीदी के संग अब तुम
उनके खेल खेलते हो
बच कर मम्मी से अब
घर के बाहर आ जाते हो
अपनी अम्मा की खांसी की
हँस - हँस नक़ल बनाते हो



सबसे ज्यादा गोद तुम्हे
बड़े पापा की  भाती है
ऐ बी  सी दी कहते हो जब
बुआ तुम्हे पढ़ाती है
अब तक मुझसे लाल तुम्हारी
शायद थोड़ी अनबन है
तुम हँसते दीपक मेरे घर के
नाम तुम्हारा टुनमुन है।
(मेरे बेटे के लिए)
--सुधीर मौर्य

Monday 14 November 2016

पहला शुद्र (ऋग्वैदिक कालीन उपन्यास) - सुधीर मौर्य

इस धरती पर कुछ वीर ऐसे भी हुए जिन्हें इतिहास ने कभी याद रखना नहीं चाहा। और वे गुमनाम ही रहे।


दाशराज युद्ध का महानायक और दिवोदास पुत्र सुदास जिसने अनार्यों से भीषण संघर्ष के बाद सप्तसैंधव को आर्यवर्त का नाम दिया, जमदग्नि पुत्र परुशराम  से कहीं अधिक पराक्रमी और कोशल नरेश  राम से कहीं अधिक यशश्वी था। परन्तु समय का पहिया कुछ ऐसा घूमा कि वह एक महान योद्धा होकर भी अपने सबसे करीबी और विश्वासपात्रों के षड्यंत्र के आगे टिक न सका। ...और उस षड्यंत्र ने उसे आर्यों के एक महान प्रतापी राजा से बना दिया - पहला शूद्र। 
--सुधीर मौर्य 

Sunday 13 November 2016

पहला शुद्र (ऋगुवैदिककालीन उपन्यास) - सुधीर मौर्य

इंद्र को दिए जाने वाले हवि को प्रतिबंधित करने वाले वीर का जन्म अभी होना था। कुरुक्षेत्र में योद्धाओं का शक्ति परिक्षण में अभी सदियों का समय था। लंका पे अभी सेतु नहीं बंधा था और मेघवृत्र का वध हुए अभी कुछ ही काल बीता था। 
अनार्यो का पूर्ण न सही आंशिक दमन हो चूका था और इसके साथ ही आर्यो में कृषि, गाय और वनों के लेकर आपसी कलह आरम्भ हो गई थी। इस आपसी कलह को विश्वामित्र और वशिष्ट की पुरोहित बनने की अभिलाषा ने एक युद्ध में बदल दिया। 'दाशराज्ञ युद्ध।' इस युद्ध का महानायक था दिवोदास पुत्र सुदास। जो बाद में वशिष्ठ के कारन पतन को प्राप्त हुआ। 
सुदास, जो आर्यवर्त में राम से अधिक यश का अधिकारी था। 
--सुधीर मौर्य