Tuesday 19 May 2015

कामसूत्र की नायिका - सुधीर मौर्य

तुम
चाहती हो
मैं लिक्खूँ अपनी कविताओं में
तुम्हारी रात की
वो सरकशी
जो करती हो तुम
अपने पुरुष मित्र के साथ

छोड़ जाती हो तुम
मेरे इनबॉक्स में 
रोज देर रात
तफ्सील अपने दैहिक संसर्ग की

तुम्हारे शब्दों को पढ़ता हूँ मैं
अपने सिहरते हुए रोएँ
और शिराओं में बढ़ते हुए
लहू के वेग के साथ

ओ मेरे शहर की नौखेज़ दोशीजा
ओ कामसूत्र की नायिका
मैं लिक्खूंगा तेरी दास्ताँ
अपनी नज़्मों में
बस शब्दों पे
मेरा अख्तियार तो होने दे।
--सुधीर मौर्य

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