Saturday, 30 May 2015

तेरे ये चाँद से पाँव - सुधीर मौर्य

ये  दास्तान है
तेरे  खूबसूरत  पावं की
जिन्हे ख्वाब में देखा
और ख्यालो में महसूस की
उनकी लज़्ज़त

कि मेरी दहलीज़ चाहती है
सरशार होना
तेरे पाँव के लम्स से
और मैं चाहता हूँ
अपने घर के आँगन में
तेरा नक़्शे पां।

--सुधीर   

4 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (01-06-2015) को "तंबाखू, दिवस नहीं द्दृढ संकल्प की जरुरत है" {चर्चा अंक- 1993} पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

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  2. वाह क्या चाहत है ...

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