Sunday, 24 May 2015

पहेली - सुधीर मौर्य

मैने ख्वाबो में
ख्यालो में
लिक्खी हैं - अनगिनत नज़्में
होठों पे,
रुखसार और कांधो पे,
कमर और स्तनों पे
पिंडलियाँ और नितम्बों पे
 चमकते हुए पाँव पे

मेरी लिखी हुई
नज़्म का
हर्फ़ - हर्फ़ पढा है उसने
मेरे साथ
कभी मेरे ख्वाबो में आकर
कभी मुझे
ख्वाबो में बुलाकर

जानती हो
फिर मैं उसे
समझ नहीं पाता

नदी सी आँखों वाली
जो तुम्हारी सहेली है
मेरे लिए वो
तुमसे भी बड़ी पहेली है।


--सुधीर मौर्य   

No comments:

Post a Comment