Wednesday 19 June 2013

यहाँ मरकज़ में अब रोटी नमक है- सुधीर मौर्य




मिटाना चाहता मुझ को ज़माना
समझ कर हमको एक मुफलिस दीवाना

यहाँ रकज़ में अब रोटी नमक है
वहां सोने के बिस्कुट का खजाना

हुनर आता है तुमको ये अज़ल से
दबे कुचले गरीबों को साताना

करोडो खा के लाखो पर नज़र है
तिजोरी है कि सुरसा का मुहाना

न उलझो हम हैं उल्फत के सिपाही
हमारी बाहँ में अब है ज़माना

–सुधीर मौर्य
गंज जलालाबाद,उन्नाव – 209869
08687478569

Tuesday 18 June 2013

जरूर मेरे ग़मों से वो आगाह होगी - सुधीर मौर्य



बसंत से मेरी भी रस्मों राह होगी 
कभी तो ये जीस्त खुश्निगाह होगी 

तेरी आँखे झुक झुक के उठती होंगी 
ये वो राज है रात जो स्याह होगी 

सुना है वो भी रात भर सो  पाया 
की छुप छुप के उसने पढ़ी 'आहहोगी 

मेरी कब्र पे रौशन जो उसने शमा की 
जरूर मेरे ग़मों से वो आगाह होगी 

--  सुधीर मौर्य