वो कस्बे में डर
डर के रहता
था।
हालाँकि वो डरपोक
नहीं था पर
फिर भी डर
- डर के रहना
उसकी आदत हो
गई थी। उसके डर
की वजह भी
थी। कोई
आम नहीं बल्कि
खास। उस
कसबे की तीन
- चौथाई आबादी हरे रंग
की थी। वो गेरुए
रंग का था
और उसकी एक
लड़की थी। टीनएज नारंगी रंग
की।
यही वजह थी
कि वो कसबे
में डरा - सहमा
रहता था। उसने इतिहास
पढ़ा था। दुनिया देखी थी। वो
जनता था हरे
रंग के रीत
- रिवाज़ों में नारंगी
लड़की से जिस्मानी
सम्बन्ध की बड़ी
मान्यता है।
नारंगी लड़की के
कौमार्य को हासिल
करने वाले हरे
रंग के लड़के
पर इस लोक
और उस लोक
दोनों जगह इनामों
की बरसात होती
है। और ये
ईनाम हरे रंग
के लड़को के
मनोबल चार
गुना बड़ा देते
है।
उसका डर थोड़ा
और बढ़ गया
था। डर
के बढ़ने की
वजह भी थी। कसबे
में रहने वाले
गेरुए रंग की
जनसँख्या ने मिलकर
एक संगठन बनाया
था। जो
नारंगी रंग पे
छिड़के जाने वाले
हरे रंग का
विरोध करता था।
उन्होंने उन कई
नारंगी देहों की दुर्दशा
उजागर की थी
जिन पर प्यार
के नाम पर
हरा रंग छिड़का
गया था। यूँ
कहे तो वो
'लव जिहाद' की
मुहीम से नारंगी
देहों का शोषण
बचाना चाहते थे।
उसकी टीनएज लड़की जब
तक स्कूल या
बाजार से वापस
नहीं आ जाती
उसका दिल धड़कता
रहता। बुरे - बुरे
ख्याल उसे परेशान
करते रहते थे। पिता
होकर भी वो अपनी
लड़की को चोर
निगाहों से देखता। किसी
बदनीयती से नहीं। बल्कि
इसलिए कि किसी ने
उसकी लड़की पे
बदनीयती का रंग
तो नहीं छिड़क
दिया।
कभी - कभी नारंगी
लड़की मोबाईल पर
किसी से हँस
कर करती तो
उसका डर कलेजे
में धड़क उठता।
कहीं मोबाईल पे
दूसरी और कोई
हरे रंग वाला
लड़का तो नहीं। लव
जिहाद के फ़िराक
में।
लड़की के अंग
निखर रहे थे। नारंगी
देह पे नारंगियों
का कसाव बढ़
रहा था। बनाव
- गठाव अपने चरम
पर पहुँच रहा
था। और इस
के साथ ही
राह में नारंगी
लड़की से बात
करने वालो की
गिनती बढ़ रही
थी।
अचानक उसे पता
चला कि लड़की
किसी एक लड़के
से हँस कर
बोलती - बतियाती है। चुपके से उसने
लड़की का मोबाईल
चेक किया। प्रेम के मेसेज
के आदान - प्रदान
के साथ एक
ही नंबर पर
ढेर फोन काल
थे। इनकमिंग
और आउटगोइंग दोनों।
लड़के का नाम
अफ़रोज़ था। मतलब
हरे रंग वाला। उसका
डर बढ़ कर
अब हद के
करीब पहुँच गया।
000
अचानक उसका डर
थोड़ा काम हो
गया था।
कसबे में एक
हरे रंग के
बाशिंदे में साथ
उसकी उठक - बैठक
थी। कहते
है जब दिल
में डर हो
तो उसकी लकीरे
चेहरे पर नुमाया
हो जाती है। उसकी
भी हुई। और उन
डर की लकीरों
पर उस हरे
रंग के बाशिंदे
अब्दुल की भी
नज़र पड़ी।
उस दिन अब्दुल
जब उसके साथ
बैठा चाय पी
रहा था उसके
चेहरे पे उभरी
डर की लकीरों
पे नज़र चुभाते
हुए अब्दुल बोला
- 'क्यों बे विजय
तेरे चेहरे पे
हर वक़्त हवाइयां
क्यों उड़ती रहती
है। '
अब अब्दुल ने विजय
को 'बे' कोई
प्यार - मुहब्बत में तो
नहीं बोला था। सच
तो ये था
कसबे में हरे
रंग वाले बहुसंख्यक
थे। सो
अल्पसंख्यक गेरुए रंग वालो
को 'अबे
- तबे' सुनने की आदत
हो गई थी। कभी
- कभी इससे भी
ज्यादा। भौंस .... , मादर .... , आदि
- आदि।
अब विजय का
अब्दुल के साथ
उठना - बैठने था सो
अब्दुल उसे अबे
- तबे से ज्यादा
नहीं बोलता था। इतना
लिहाज़ तो लाज़िमी
था। हाँ
विजय, अब्दुल को
अबे - तबे बोले
ऐसा कोई हक़
उसे हांसिल नहीं
था।
विजय, अब्दुल के अबे
- तबे के सम्बोधन
पर न पहले
कभी उलझा था
न आज उलझा। बस
चाय सुड़कते हुए
अपने डर का
पर्दा सरकाता रहा।
पूरा पर्दा सरकने के
बाद अब्दुल ने
अपने दाये हाथ
की तर्जनी से
अपनी दाढ़ी खुजाई,
फिर अचानक हो
हो करके हंस
पड़ा। वो हँस रहा था
और विजय उसे
यूँ हँसता देख
खुद को अहमक
समझ रहा था। अब्दुल
को वो अहमक
समझे ऐसा हक़
भी उसे हांसिल
नहीं था। वो
गेरुए रंग का
जो था। गेरुया
रंग कसबे में
अल्पसंख्यक जो था।
अचानक अपनी हँसी
रोक कर अब्दुल
ने एक चपत
विजय के जांघ
पर मारी और
फिर बोला 'ये
क्या मनघडंत बवाल
पाल रखा है
मिया तुमने अपने
दिल में। ये लव
सव जिहाद कुछ
नहीं होता है। अरे
तुम्हारी लड़की को
प्यार - स्यार हुआ है,
उस लड़के से। और
तुम तो जानते
हो मियां जब
प्यार होता है
तो लड़कियों का
रंग निखरता है। सो
खुश रहो मियां
और वक़्त पे
बाँध दो अपनी
लड़की को उस
अफ़रोज़ के साथ
निकाह के फंदे
में।'
अब्दुल की बात
सुनकर विजय खामोश
बैठा रहा। उसमे न
तो 'मियां' और
'निकाह' का विरोध
करने का हौसला
था और न
उसने विरोध किया। उसे
चुप बैठा देख
कर अब्दुल हरे
रंग की वकालत
करते हुए बोला
- 'अरे भाई तुमने
पढ़ा ही होगा
जोधाबाई के नारंगी
रंग पे निखार
तब आया जब
अकबर ने उस पर
हरा रंग छिड़का। ऐसी
कई नारंगी राजकुमारी
हरी कर दी
गई। अरे
वो कोई लव
जिहाद थोड़े ही
था। अरे
भाई फ़िल्मी परदे
पे हीरोइन भी
हरे रंग में
डूबने की कामना लिये
गाती है - 'ये
मुझ पर किस
ने हरा रंग
डाला।' और रियल
लाइफ में भी
हरे रंग में
डूबती है। अब अपनी
करीना को ही
देखो।
अब्दुल की बात
सुनकर विजय ने
कहा 'वो तो
ठीक है पर …… ' अभी
विजय की बात
पूरी भी नहीं
हुई थी कि
उसकी बात काट
कर अब्दुल बोला
'पर यही न
विजय कि गेरुए
रंग के संगठन
तुम्हे सतायेंगे। अरे
वो तो फ़र्ज़ी
बकवास करते है। लव
जिहाद की। उन पर
ध्यान मत दो।
तुम एक बार
हमारे गोल में
आ गए तो
वो तुम्हारा कुछ
नहीं उखाड़ सकते।
पर .... ' विजय
ने अविश्वास से
अब्दुल की और
देखा।
'अच्छा मेरी बात
पे भरोसा नहीं।
चल में तुझे
दो कहानियाँ सुनाता
हूँ। फिर
तूँ खुद सोचना
तुझे क्या करना
है।' अब्दुल ने
दो चाय का
आर्डर और कर
दिया था।
000
एक लड़की थी
नारंगी रंग की। तुम्हारी
लड़की जैसी।
अब्दुल कहानी सुना रहा
था। मालूम
नहीं सच थी। या
फिर मनघडंत।
'तो उस तुम्हारी
जैसी लड़की का
दिल आ गया
था अपने मोहल्ले
में रहने वाले
लड़के क़ादिर पे। क़ादिर
बास्केटबाल का खिलाडी
था। उसकी जवानी
और लड़की डॉली
का बचपन जब
मिला तो प्यार के किस्से
बने। क़ादिर
बास्केटबाल के
ग्राउण्ड की सीढ़ियों
पर जब बैठता
तो डॉली वहां
पहुँच जाती। उसके काँधे
पे सर रख
कर दीन - दुनिया
से बेखबर क़ादिर
की मुहब्बत के
ख्वाब में झूलती
रहती।'
'कभी - कभी लड़की
का छोटा भाई
भी साथ होता। वो
अपनी दीदी और
क़ादिर को यूँ
हँसता - मुस्कराता देख खुश
होता। शायद
लड़की के माँ
- बाप थोड़े ज़ालिम
थे। ये तुम्हारी
तरह नारंगी और
हरे रंग में
भेद करने वाले। शायद
लड़की अपनी मुहब्बत
की वजह से
घर पे पिटती
होगी। दुखी
रहती होगी। सो जब
वो क़ादिर के
लम्स से खुश
होती तो उसके
छोटे भाई को
अच्छा लगता। वो खुश
होता।
जब क़ादिर अपने कंधे
पे झुके डॉली के नाज़ुक जिस्म पे हाथ फैरता
तो लड़की अपने छोटे भाई को 'जा छोटू थोड़ी देर में, मै आती हूँ' कह कर वहां से हटा देती। और फिर खुल कर क़ादिर की बाहों में बिखर जाती और
क़ादिर उसे अपनी बाँहों में समेट लेता।
'यूँ क़ादिर ने अपनी
मुहब्बत का पौधा डॉली के पेट में लगा दिया।
वक़्त के साथ उस पौधे की डालियाँ, डॉली के पेट में उभरी। और उन डॉली के माँ - बाप की नज़र पड़ गई।'
'लड़की की जी भर के कुटाई गई।
और उसे कमरे में बंद करके क़ादिर से दूर रहने की हिदायत देकर उसका एबार्शन करवा
दिया गया। लड़की तड़प कर रह गई।'
'तड़प तो क़ादिर भी रहा
था। अपनी महबूबा पे हो रहे बेइंतिहा ज़ुल्म ने उसे दीवाना बना दिया
था। इसी दीवानगी में वो एक दिन खिड़की के सहारे
डॉली कमरे में आ गया। क़ादिर और डॉली ने एक
दूसरे को देखा और छलकते आंसुओ के साथ एक - दूसरे को गले लगा लिया। यूँ इतने दिनों बाद क़ादिर को सामने पा कर वो
नारंगी लड़की हरे रंग की चादर ओढ़ने को मचल उठी।
'कमरे के सामने से
गुज़र रहे लड़की के बाप के कानो में लड़की के सिसकने और लड़के के हांफने की आवाज़ पड़ी। माज़रा समझ कर उसने फोन करके गेरुए संगठन के कार्यकर्त्ता
बुला लिए। उसकी गेरुए संगठन में अच्छी पैठ
जो थी।'
'गाली - गलौज और चिल्लम
- चिल्ला के बीच डॉली ने डरते - सहमते दरवाज़ा खोला और सहम कर एक और दुबक गई। क़ादिर बेड पे बैठा था। बैखौफ।
मुहब्बत करने वाले ख़ौफ़ज़दा जो नहीं होते।
बिस्तर की सिमटी चादर, डॉली और क़ादिर के अस्त - व्यस्त कपडे पूरा अफ़साना बयां कर रहे थे।'
'क़ादिर के बैखौफ अंदाज़
ने उन पाखंडी गेरुए वालिंटियर को पागल बना दिया। और वे जानवर की तरह क़ादिर को धुनने लगे।
लात - घूसों, लाठी - डाँडो और लोहे की राडो से। लड़की का बाप अपनी नारंगी लड़की के जिस्म पे नीले - हरे दाग बना रहा था। उस दिन क़ादिर ने वहशी - दरिंदो की मार से दम तोड़
दिया और उसे उसी रात कहीं दफ़न कर दिया गया। डॉली
कुछ दिनों बाद सदमे से गले में दुपट्टा डाल कर पंखे से झूल गई।'
'अब तुम्ही कहो कितने
बेरहम होते है ये गेरुए वाले जो प्यार - मुहब्बत की समझ नहीं रखते।' अब्दुल ने चाय
का आखिरी घूंट भरके विजय की और देखा।
'हम्म।' विजय ने भी
चाय ख़त्म की। उसका डर कुछ हद तक ख़त्म हुआ था। पूरा नहीं।
000
'चलो तुझे एक
कहानी और सुनाता
हूँ।' अब्दुल ने
सिगरेट जला कर
कश लेते
हुए कहा। एक सिगरेट
उसने विजय को
भी दी। अब्दुल, विजय को
पूरी तरह शीशे
में उतार रहा
था। मतलब
लोहा गर्म देखकर हथौड़ा मार
रहा था। विजय ने
भी इस अंदाज़
में अब्दुल की
और देखा मानो
वो अगली कहानी
सुनने को उत्सुक
है।
'एक बड़े गेरुए
रंग वाले घर
की खूबसूरत नारंगी
रंग की लड़की
थी। इसी
साल स्कूल से
निकल कर कालेज
गई थी। उसके घर
के सामने की
सड़क के एक
और स्कूल था
और दूसरी और
कालेज।'
'कालेज जाने वाली
सड़क के अगले
नुक्कड़ पे एक
पतंग बेचने वाली
छोटी सी लकड़ी
की दुकान थी। जिस
पे सर पे
जालीदार टोपी लगाये
एक नया जवाँ
मर्द पतंग बेचता
था। देखने
- सुनने में वो
गरीब दीखता था। उसकी
एक बूढ़ी माँ
थी जो दोपहर
को दुकान पे
ही उसे खाने
के वास्ते रोटी
दे जाती थी।
'नारंगी लड़की अपनी
स्कूटी पे उधर से गुज़रती तो उसकी उड़ती ज़ुल्फ़ें देखकर वो पतंग बेचने वाला लड़का ख्वाबों
में अपनी उड़ती पतंग के सहारे आसमान में उड़ता।
और उसके ख्वाब में वो स्कूटी वाली नारंगी लड़की भी होती। लड़की जब कभी गर्दन मोड़कर जाने - अनजाने उस पतंग
बेचने वाले लड़के को देखती तो वो लड़का अल्लाह से दुआ मांगता कि वो उस नारंगी लड़की को
हिदायत दे। और वो लड़की अपनी देह का नारंगी
रंग खुरच कर उस पर हरा रंग चढ़ा ले।'
'जरूर सज़्ज़ाद ने अल्लाह
से दुआ मन से मांगी होगी। सज़्ज़ाद उस पतंग बेचने
वाले लड़के का नाम था। तो उसकी दुआ अल्लाह ने
कबूल की और वो स्कूटी वाली लड़की जिसका नाम सारिका था एक दिन स्कूटी खड़ी करके सज़्ज़ाद
की दुकान में पहुँच गई। सारिका के होठ उस दिन
जुगाली नहीं कर रहे थे। उसे चूंगम चबाने की
आदत थी और उस दिन वो घर से च्युंगम का पैकेट लाना भूल गई थी।'
'सज़्ज़ाद ने पहली बार
अपने ख्वाबों की महबूबा को अपने इतने करीब, अपने रूबरू पाया।'
'उसने, उसकी आवाज़ भी
पहली बार सुनी। आवाज़ सुनते ही वो अपनी दुकान
से कूद कर एक और बन्दूक से निकली गोली की तरह भगा। लड़की अवाक उसे यूँ भाग कर जाता देखती रही। उसने सोचा उसने ऐसा क्या कह दिया जो दुकान पर बैठा
अच्छा खासा लड़का मिल्खा सिंह बन गया। उसने नार्मल ढंग से इतना ही कहा था - आपकी दुकान में
च्युंगम है ?'
'सोचती लड़की अभी अपनी
स्कूटी की और बढ़ना ही चाहती थी कि लड़का भाग कर
आके उसके सामने खड़ा हो गया। हांफती
साँसों के साथ लड़के ने अपनी बंद हथेली लड़की की तरफ खोली। उसकी हथेली
पे कई तरह के च्युंगम चमक रहे थे। लड़की जान
गई थी। लड़की की दुकान में च्युंगम नहीं थे
और वो किसी दूसरे से च्युंगम लेकर हाज़िर हो गया था। लड़के के हाथ से लड़की ने च्युंगम समेट। यूँ पहली बार, पहली मुलाकात में दोनों एक - दूसरे
की छुअन से सहमे। सिहरे।
लरज़े। शर्माए और मुस्कराये।'
'अब लड़की रोज च्युंगम लाना घर से भूल जाती। लड़के की दुकान पर च्युंगम लेने के बहाने पहुँचती। लड़का, लड़की के पसंद के च्युंगम दुकान पे ही रखने
लगा था। धीरे - धीरे बातों का दौर शुरू हुआ। एक - दूसरे के नाम जाने। एक - दूसरे के बारे में जाना। और यूँ नारंगी रंग की लड़की और हरे रंग के लड़के में अघोषित दोस्ती हो गई।'
'लड़का सिर्फ पतंग बेचता
ही नहीं था। बल्कि एक उम्दा पतंगबाज़ भी था। उसने कई पतंग प्रतियोगिता जीती थी। और यूँ जब शहर में अगली पतंग स्पर्धा थी तो उसने
उसमे अपनी अघोषित दोस्त सारिका को भी बुलाया। सारिका ने भी पल भर में उसका दावतनामा
कबूल कर लिया। सारिका, सज़्ज़ाद के इश्क़ में ढलने जो लगी थी। हरे रंग में रंगने को मचलने
जो लगी थी।'
'लड़की कालेज से सीधे
उस जगह गई जहाँ पतंगबाज़ी की प्रतियोगिता थी।
आज उसने फिरोज़ी साडी पहनी थी। ये रंग उसे हरे रंग वाले लड़के को पसंद जो था। लड़की की नज़रे पतंग उड़ाते लड़के से मिली और लड़की की मुस्कान से लड़के के हौसले में चार गुना इज़ाफ़ा हो
गया।'
'लड़का विजेता बना, ईनाम की ट्रॉफी ली और लड़की की फिरोज़ी
साडी में खो गया। लड़के का असली ईनाम और जीत
अभी बाकी थी। लड़की, लड़के को अपनी स्कूटी पे बिठाकर वहां से निकल गई। और लड़के का चेहरा कभी लड़की की उड़ती ज़ुल्फ़ें और कभी
लहलहाते फिरोज़ी आँचल से ढकने लगा।'
'यूँ वो स्कूटी की
सवारी अभी शहर से सात - आठ मील दूर ही थी कि बारिश और तूफ़ान ने उनकी रफ़्तार रोक दी। लड़का का एक दोस्त वहीँ पास के एक फार्महाउस में
नौकर था। सो उन दोनों ने भागकर वहां पनाह ली। बारिश में भीगते उस जोड़े की जरूर बुलंद थी जो वहां
सज़्ज़ाद के दोस्त के अलावा वहां कोई नहीं था।
सज़्ज़ाद के दोस्त ने जब भीगी लड़की सारिका को देखकर कहा भाभी बहुत खूबसूरत
है तो सज़्ज़ाद मुस्करा पड़ा और सारिका शर्म से उस बारिश में भी तप गई।'
'सारी रात तूफ़ान बाहर मचलता रहा और बंद कमरे में सारिका और सज़्ज़ाद के जज़्बात आंगड़ाई लेते रहे। सारिका की फिरोज़ी साडी न जाने कब उतर गई। न जाने कब वो आपे से बाहर हुई। न जाने कब उसने सज़्ज़ाद को अपने ऊपर खींचा। न जाने कब उसने अपना कौमार्य सज़्ज़ाद पे लुटाया। कोई खबर नहीं।
सारिका ने सज़्ज़ाद को अपना शौहर जो मान लिया था। उन दोनों
की अघोषित दोस्ती आज रात घोषित मुहब्बत में बदल गई थी।'
'सहर होते - होते बाहर
और अंदर का तूफ़ान शांत हो गया। लड़की ने ये तूफ़ान पहली बार झेला था सो उसके सम्भलते
- सँभालते दिन चढ़ गया। जैसे - तैसे उसने साडी बाँध वो घर जाने को उठी तो उसके शिथिल
अंग लरज़ गए। लड़का जनता था स्कूटी चलाना या फिर उसने लड़की के पीछे बैठकर सीख लिया था।
होशियार जो था वो। लड़के और लड़की ने लड़के
के दोस्त का शुक्रिया कहा और निकल पड़े सफर पे।
लड़की ने लड़के की पीठ पर कन्धा रखकर आँखे बंद कर ली।'
'लड़के ने लड़की के घर
के सामने स्कूटी रोकी। आलिशान माकन। राह लड़की ने ही बताई थी। लड़के के जाते वक़्त लड़की ने उसकी और मुस्कराकर हाथ
हिलाया। लड़का चला गया। पर लड़की और लड़के का मिलन समारोह और हाय - बाय आलिशान
मकान के अंदर की कुछ आँखों ने देख लिया।'
'लड़की सवालो के घेरे
में थी। घर का हर मुह उससे बीती रात और उस लड़के के बारे में दरयाफ्त कर रहा था। तमाम मारपीट के बाद लड़की ने तड़प कर कहा वो सज़्ज़ाद से प्यार करती है।'
'लड़की को कमरे में बंद कर के समझाया गया। नहीं मानने पे
उसे दूसरे शहर में किसी रिश्तेदार के यहाँ भेज दिया गया। लड़की बड़े घर की थी पर उसके घर वाले उससे भी बड़े। लड़की कसक कर रह गई।'
'आज सज़्ज़ाद का कुछ
पता नहीं है उसकी बूढ़ी माँ रात दिन अश्क़ बहाती है। और सारिका को किसी नारंगी के अधेड़ के साथ बांध दिया
गया है। जबरन। जिसकी टांगो के बीच वो दबी रहती
है। कोई नवयुवक भला नारंगी बिरादर में घर से
बाहर रात बिताई लड़की से शादी कहाँ करता है।
अब वो कमसिन लड़की सारिका अधेड़ के बच्चे
पैदा कर रही है।'
--ये दूसरी कहानी अब्दुल
ने ख़त्म की। विजय के चेहरे को देखा जहाँ उसे
हरे रंग से अब कोई खौफ नज़र नहीं आया। सिगरेट
के कश लिए गए। जाते वक़्त अब्दुल ने कहा -- 'तो मियां जो तुम्हारी
लड़की हरा रंग पसंद करती है तो उसमे कोई बुराई नहीं है। बल्कि ये तो शवाब का काम है।'
---विजय भी लघभग अब्दुल
की बात से अघोषित रूप से सहमत होकर वहां से अपने घर को आ गया। जहाँ उसकी लड़की हंस हंस कर किसी से बात कर रही थी। विजय ने सोचा जरूर दूसरी और अफ़रोज़ होगा । पर अब
इस बात ने उसे डराया नहीं था।
000
अब्दुल की कहानी सच
थी या मनघडंत। अब ये कौन जाने किसे पता।
पर अब्दुल की सुनाई
कहानियो का असर विजय पर कुछ यूँ हुआ कि उसने अपनी अल्पव्यस्क नासमझ लड़की को हरे रंग
में रंगने की मूक सहमति दे दी।
आरती अब घर देर - सवेर पहुँचती। घंटो मोबाईल में उलझी रहती। कभी - कभी अपने घर के सामने अफ़रोज़ कीबाइक के पीछे
से उतर कर हाय - बाय करती। विजय के सामने ही
गुनगुनाती हुई अपने कमरे में जाती - 'मोहे अंग लगा ले रे, मोहे रंग लगा दे रे।' विजय अपनी लड़की पे रंग चढ़ते देख रहा था। और खामोश
था। आखिर अब्दुल ने कहा था 'प्यार - मुहब्बत
को रोकना पाप होता है।' और उसकी लड़की प्यार ही तो कर रही थी। अब उसका प्रेमी
नारंगी रंग वाला था या हरे रंग वाला उससे क्या फ़र्क़ पड़ता था। वैसे भी अब्दुल के कहे अनुसार दोषी गेरुए रंग वाले
होते है हरे रंग वाले नहीं।
-- आरती नारंगी रंग
वाली लड़की का नाम।
एक दिन नारंगी लड़की
घर न आई। शाम ढली। रात हुई।
सुबह हो गई। लड़की नदारद। विजय ने इधर - उधर ढूंढा। नाते - रिश्तेदार, लड़की की सहेलियों के घर। लड़की नहीं मिली।
लड़की का पता चला। कुछ दिनों बाद। अफ़रोज़ के घर पे। अब्दुल ने सलाह दी, शांत बैठो। पुलिस और गेरुए संगठन वालो के पास मत जाना। नहीं तो
डॉली और सारिका जैसा हाल आरती का भी कर देंगे ये गेरुए रंग वाले गुंडे। विजय ने सोचा
समझा। और अपनी लड़की के सुखद भविष्य की कामना
करते हुए उसे अफ़रोज़ की बीवी कबूल कर लिया। उसने ज्यादा जानकारी भी नहीं ली बस इतना
ही जाना की अब उसकी लड़की का नाम आरती नहीं रहा और वो काले बुर्क़े में लिपटी रहती है। अफ़रोज़ की फैमली ने उसे ज्यादा जानकारी लेने भी नहीं
दी।
000
उड़ती खबर विजय के कानो
में पड़ी उसकी लड़की माँ बनने वाली है।
सोलह साल की उम्र में
लड़की का माँ बनना हरे रंग की रवायत में जायज़
है। लड़की अब हरे रंग में पूरी तरह रंग चुकी थी। पर उसका हरा रंग उसके जिस्म
पे लिपटे काले रंग के बुर्क़े ने ढक लिया था।
काले बुर्क़े ने नारंगी लड़की की ज़िन्दगी से रंगो को विदा कर दिया। उसकी आँखों से ख्वाबो रुखसत हो गए थे।
अब उसकी आँखे रात
- दिन रोटी रहती थी। लड़की दिन रात - गाली
सुनती और बात - बात पर पिटती थी। उसकी देह पर अफ़रोज़ लात - घूंसों से नील डालता। जो कुछ समय बाद हरे हो जाते। यूँ इस तरह लड़की की देह खुरच - खुरच कर नारंगी रंग
उतार कर हरा रंग चढ़ा दिया गया था। उसे क़ाफ़िर की औलाद कहकर हरे रंग के मर्द और औरतो
की सेवा करने का हुक्म दिया गया था। अब लड़की
हरे रंग के मकान में कैद रहती। और वो किसी से मिल नहीं सकती थी। अपनी लड़की के माँ बनने की ख़ुशी जताने विजय हरे रंग के घर में गया। साथ
में ढेरो फल और मेवा। पर उसे बाहर के कमरे
से टरका दिया गया। लड़की से बिना मिले ही।
विजय एक - दो बार और
गया। मुलाकात न हुई। हाँ एक
दिन राह में उसे कोई एक पर्ची पकड़ा के भाग गया। अफ़रोज़ के घर का शायद कोई नौकर। नारंगी रंग का होगा तभी उसे आरती पर दया आ गई और
वो उसकी चिट्ठी उसके बाप को दे गया।
विजय ने चिट्ठी पढ़ी। सन्नाटे में बैठा रहा। रोता रहा।
किस बेरहमी से उसकी लड़की पे हरा रंग चढ़ाया गया था। मारपीट, गाली - गलौज रोज़ के काम थे। नारंगी रंग की लड़की, हरे मकान में कैद थी नरक भोगने
को। लवजिहाद का असली रूप विजय के सामने था। वो अब अब्दुल को कोस रहा था। वो जान चूका था अब्दुल
की कहानी मनघडंत थी, सच नहीं।
कुछ देर सोचते रहने
के बाद विजय उठा और चल दिया। उसे जाना था अब पुलिस स्टेसन और गेरुए रंग के संगठन के पास। अपनी मासूम और अबोध लड़की को हरे रंग के ज़ुल्म से आज़ाद करके दुनिया को लव जिहाद
का असली रूप उसे दिखाना जो था।
सुधीर मौर्य
ग्राम और पोस्ट - गंज
जलालाबाद
जनपद - उन्नाव (उत्तर
प्रदेश)
पिन - २०९८६९
लव जिहाद को तो केरल की सरकार तक मान चुकी है, फिर तो अपनी अपनी किस्मत.
ReplyDeleteआशा है की आपकी इस कहानी से लोग संभलेंगे...
यही उम्मीद कर सकते है।
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