Sunday, 29 July 2012

खून टपकते बदन से अपने...उसर में कास फूल रही थी (३)...



कल माँ ने
उसको भेजा था  
कुछ कास काट कर लाने को
एक पिटारी की खातिर
शादी में साथ ले जाने को...

बिचड गई वो
सखियों से
सोच के बातें 
उल्लास की वो
सोचती और लजाती थी
करके कल्पना
मधुमास की वो...

नज़र गड़ाए था 
बहुत दिनों से , उस पर
गावं का लंबरदार एक
आज शिकारी 
के हाथों में था
मनपसंद उसका 
शिकार एक...

रो-रो के
मिन्नत हज़ार की
पावं में गिर
मनुहार की
पर लूटना 
उसकी किस्मत थी
हुई नीलाम 
उसकी अस्मत थी...

खून टपकते बदन से
अपने
जब वो
झाड धूळ रही थी
अश्क बहाते
हाल पे उसके
तब 
उसर में कास फूल रही थी...


'हो न हो' से... 
सुधीर मौर्य 'सुधीर' 
गंज जलालाबाद, उन्नाव
209869

1 comment:

  1. आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार को ३१/७/१२ को राजेश कुमारी द्वारा चर्चामंच पर की जायेगी आपका स्वागत है

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