Thursday, 26 July 2012

दो छोटी नज्में...हमराह,......नई दुनिया....



१) हमराह...

वह गली जहाँ 
से गुजरी मय्यत मेरी
वहीँ से निकले वो सज-धज के
यूँ उन्हें हमराह करने की
पूरी हुई हसरत मेरी....

२) नई दुनिया में...

वो कारवां मुहब्बत का
जब मंजिल पे पहुंचा
हमने सहराओं से देखा 
उन्हें मुस्कराते हुए
कितना बेफिक्र था
मेरे हिजर से वो
नई दुनिया में
नई खुशियाँ पाते हुए...

सुधीर मौर्या 'सुधीर'
गंज जलालाबाद, उन्नाव
२०९८६९
 
 

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