चंद्रमा रे चंद्रमा
कैसी है मेरी प्रियतमा
आती जो होगी वो अटारी
नाचतें तो मोर होंगे
उसके होठों की खनक पर
कोयलों के शोर होंगे
उसकी आँखों की झलक को
देवता भी चोर होंगे
सूर्य की ऐ आरुनिमा
कैसी है मेरी प्रियतमा
सूरज चुराता होगा रंग
अधरों के उसके लाली से
रोशनी तारों में आई
उस बदन की दीवाली से
उसके खातिर फूल मांगे
प्रकृति ने बनमाली से
ओ जमी ओ आसमा
कैसी है मेरी प्रियतमा
उस शहर उस गावं में
जुल्फों के उसके होंगे बादल
बहती होगी ठंडी हवा
जो उड़ता होगा उसका आँचल
लाज आती होगी घटा को
लगाती होगी जो वो काजल....
'हो न हो' से....
सुधीर मौर्य 'सुधीर'
तारीफ के लिए हर शब्द छोटा है - बेमिशाल प्रस्तुति - आभार.
ReplyDeleteaap ki kavitayon per meri najar rahati hai. Nirantar aap aage badh rahe hain. Main asvasth hun aap ki rachnayen jald behtar mukam payengi.
ReplyDeletesir, aap ka bahut dhanywad jo muz pr itni kripa ki...pr me aap mera margdarshan bhi karte to kitna hi accha hota...
Deleteआपकी इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार १०/७/१२ को राजेश कुमारी द्वारा चर्चामंच पर की जायेगी आप सादर आमंत्रित हैं |
ReplyDeleteबहुत सुंदर सुधीर जी
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